निजी बिजली कम्पनियों से अभी भी खरीदी जा रही महंगी बिजली

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लखनऊ। एक्सचेंज में बिजली उपलब्ध होने के बावजूद निजी कम्पनियों से महंगी बिजली खरीद पर उपभोक्ता परिषद ने निशाना साधा है। परिषद का आरोप है कि उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन ने सस्ती बिजली होते हुये भी मंहगी बिजली खरीदी। जिसका नतीजा है कि प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं की बिजली दरों में व्यापक बढोत्तरी हुई। उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने मंगलवार को मंहगी बिजली खरीद के विरोध मे नियामक आयोग अध्यक्ष देश दीपक वर्मा से मुलाकात कर बिजली खरीद के पूरे मामले की सीएजी जांच कराने की मांग उठायी है। अध्यक्ष ने आयेाग के सामने यह मुददा उठाया कि जब एनर्जी एक्सचेंज द्वारा नियामक आयोग को अनेकों बार यह पत्र लिखा गया कि एक्सचेंज में सस्ती बिजली उपलब्ध होते हुये भी बिजली कम्पनियां मंहगी बिजली खरीद रही हैं। जो अपने आप में चिन्ता का विषय है। ऐसे में आयोग का नैतिक कर्तव्य बनता है कि पूरी बिजली खरीद की जांच कराये। उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने कहा कि निजी घरानों को फायदा पहुंचाने के लिये कुछ उच्चाधिकारी संगठित होकर उन्हें लाभ देने के लिये अमादा रहते हैं। जिसपर भी सरकार व नियामक आयेाग दोनों को गंभीर होकर कार्रवाई करनी पडेगी।
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि यह कैसी विडम्बना है कि एक्सचेंज में सस्ती बिजली होते हुये भी बजाज से 6.96 रुपया प्रति यूनिट व रिलायंस से 6.02 रुपया प्रति यूनिट में मंहगी बिजली खरीदी जा रही है। एनर्जी एक्सचेंज ने 19 जून को नियामक आयोग को एक पत्र लिखकर यह कहा है कि एक्सचेंज में मई महीने में 2.26 रुपए प्रति यूनिट में बिजली उपलब्ध थी लेकिन बिजली कम्पनियों द्वारा निजी घरानों व अन्य उत्पादन इकाइयों से मंहगी बिजली खरीदी गयी। एक्सचेंज ने साफ तौर पर कहा है कि अगर एक्सचेंज से बिजली खरीदी गयी हेाती और बजाज हिंदुस्तान से बिजली न ली गयी होती तो 2.48 रुपये प्रति यूनिट की बचत होती। इसी तरह रोजा पावर से बिजली न खरीदकर एक्सचेंज से खरीद की गयी होती तो लगभग 1.67 रुपया प्रति यूनिट की बचत होती। सवाल यह उठता है कि बिजली कम्पनियां ऐसा क्यों कर रही है। क्या आयोग का यह नैतिक कर्तव्य नहीं है कि वह पूरे मामले पर हस्तक्षेप करे, और दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई के लिये सरकार को पत्र लिखे। मंहगी बिजली खरीद कर अंकुश लगाकर प्रत्येक वर्ष बिजली कम्पनियां तकरीबन दो हजार करोड तक की बिजली बचत कर सकती हैं। वर्ष 2014-15 के टैरिफ आदेश में मेसर्स बजाज को मेरिट आर्डर से बाहर कर दिया गया। फिर भी साल भर उससे बिजली खरीद होती रही इसके लिये कौन जिम्मेदार है। परिषद अध्यक्ष ने कहा कि कल रिलायंस की रोजा के टैरिफ निर्धारण की प्रक्रिया पर आम जनता की सुनवाई आयोग में होनी है जिसमें उपभोक्ता परिषद द्वारा अनकों ऐसे मुददे उठाये जायेंगे जिससे भविष्य में रिलायंस की मंहगी बिजली खरीद पर अंकुश लग सके और एक ऐसा कानून बने जिससे रिलायंस व बजाज जैसे निजी घराने अपने उत्पादन से पैदा होने वाली बिजली को मंहगी दरों पर न बेच पायें।