विवाह के मायनों पर प्रश्नचिह्न्

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ऋतुपर्ण दवे।
भारत में विवाह को करार का रूप दिया जाना अटपटा जरूर लगता है, लेकिन बदलते परिवेश में यह अपरिहार्य हो गया है। जिस तेजी से समाज, उसकी सोच और मान्यताओं में बदलाव आया है, उसके चलते विवाह का एग्रीमेंट भी जरूरी हो गया है। सोशल मीडिया के दखल, संचार क्रांति और अपरिचितों से साइबर संपर्क के बाद 5-10 वर्षो में देखते-देखते ऐसी अनगिनत घटनाएं हो चुकी हैं, जिनसे विवाह के मायनों पर ही प्रश्नचिह्न् लग गए हैं। दहेज उत्पीडऩ, घरेलू हिंसा, महिलाओं के प्रति क्रूरता, विश्वास का उल्लंघन और काल्पनिक दुनिया के छद्म की सच्चाई जब सामने होती है, सुंदर सपना पल भर में टूटकर नारकीय हो जाता है। चर्चित कुछ उदाहरण ही काफी हैं, राहुल-पायल-डिम्पी और अमनमणि-सारा। यकीनन विवाह एक तमाशा बन जाता है, खबरों की सुर्खियां और चटखारों के बीच तार-तार होते रिश्ते, बहुत ही भयावह हो जाते हैं जो समाज, देश के लिए बुरा संदेश और चिंता का कारण हैं। जाहिर है, बहुत से मामलों में पति-पत्नी एक-दूसरे को धोखा देते हैं, क्रूरता करते हैं, यहां तक कि कानून का दुरुपयोग कर किसी एक पक्ष को सामाजिक-मानसिक दोनों तरह से प्रताडि़त करते हैं। कहने का सार यह कि सुकून किसी को नहीं मिलता और शादी कानूनी उलझनों, नैतिकता या सामाजिक मान-मर्यादा के नाम पर जल्द टूटती ही नहीं, तिल-तिलकर जीने की स्थिति बन जाती है। 2010 में कनाडा में ऐशली मेडिसन डॉट कॉम वेबसाइट शुरू हुई जो शादीशुदा पुरुषों-स्त्रियों को विवाहेतर संबंध बनाने का जरिया बनी। वेबसाइट के नाम पर इसके संचालकों ने जमकर कमाया। बीते महीने ही नैतिकतावादियों द्वारा यह हैक हुई और लगभग दो करोड़ वे लोग बुरी तरह घबरा गए, जो इससे जुड़े थे और अपने जीवनसाथी को धोखा दे रहे थे। इसमें लाखों की तादाद में भारतीय भी हैं, जिनकी शादीशुदा जिंदगी के लिए खतरा पैदा हो गया। हालांकि कितने परिवार बिखरे या प्रभावित हुए, इसका आंकड़ा फिलाहाल सामने नहीं आया है, लेकिन यह सच है कि बहुत सी शादियां खतरे में जरूर होंगी। कहने का मतलब यह कि आजादी, स्वच्छंदता, उन्मुक्तता के नाम पर पति-पत्नी के बीच धोखा, रिश्तों में दरार और संतुष्टि-असंतुष्टि तथा मेरी मर्जी के नाम किसी एक पक्ष का प्रताडि़त होना, विवाह की नई परिभाषा नहीं हो सकती। ऐसे बढ़ते मामलों से दोनों पक्ष मानसिक और सामाजिक तौर पर उलझन, तनाव से परेशान तो रहते हैं, इनसे जने बच्चे बेवजह घिसटते हैं और जबरदस्त सामाजिक-पारिवारिक यंत्रणाओं को भुगतते हुए अंधकारमय जीवन को मजबूर भी हो जाते हैं, जबकि उनका कोई कसूर नहीं। निरंतर बढ़ रहे मामलों और आपसी सुलह, समझौते का आभाव, दोनों पक्षों के बीच बनते नाक के सवाल ने सरकार की भी चिंता बढ़ा दी, जो बढऩी भी चाहिए। अगर सरकार भारत में होने वाले हर विवाह का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य करे, विवाह करने जा रहे स्त्री-पुरुष के बीच पहले ही एग्रीमेंट कराए तो क्या बुरा? किस पार्टनर की क्या जिम्मेदारी होगी, शादी टूटने पर किसे कितना गुजारा भत्ता देना होगा, बच्चों की जिम्मेदारी किसकी होगी, यानी कुल मिलाकर तलाक आपसी रजामंदी से होगी, अदालतों तक बहुत ही कम मामले पहुंचेंगे और समाज में हंसी या दया का पात्र कोई भी पक्ष नहीं होगा। अभी भारत में विवाह को धार्मिक संस्कार के रूप में देखा जाता है, इस कारण यह समझौता या कांट्रेक्ट की श्रेणी में नहीं आता। फिर भी, विवाह के पहले, उभयपक्षों ने समझौतानामा बनाकर उस पर हस्ताक्षर कर ही दिए तो भी उसके भारतीय संविदा अधिनियम (इंडियन कांट्रैक्ट एक्ट) में कोई मायने नहीं होते। भारत की महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी का भी मानना है कि शादी टूटने पर सबसे ज्यादा दिक्कत महिलाओं को होती है, गुजारा भत्ते के लिए उन्हें अदालतों के चक्कर काटने पड़ते हैं, कई और तकलीफदेह मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। अत: सरकार कोशिश कर रही है कि शादी से पहले ही सारी शर्ते तय हो जाएं।
बिल्कुल शादी से पहले ही सारी शर्ते तय हो जानी चाहिए। वर्तमान समय में यह बेहद जरूरी और उचित कदम होगा, क्योंकि जिस तेजी से परिवारों के टूटने, बिखरने की संख्या बढ़ रही है, किसी भी कीमत पर कम से कम भारत के लिए ये शुभ संकेत नहीं हैं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं टिप्प्णीकार हैं)