जानलेवा घोटाले का सच हो उजागर

vayapam
मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले में एक के बाद एक हो रही मौतें व्यवस्था में विश्वास को ही हिला देने वाली हैं। देश में पहले भी तरह-तरह के घोटाले होते रहे हैं, लेकिन मध्य प्रदेश में व्यावसायिक परीक्षाओं और सरकारी भर्तियों में भ्रष्टाचार को उजागर करने वाला व्यापम घोटाला तो आरोपियों-गवाहों आदि के लिए अंतहीन जानलेवा सिलसिला ही बन गया लगता है। पिछले तीन दिनों में ही तीन ऐसी मौतें हो चुकी हैं, जो कहीं न कहीं व्यापम घोटाले से जुड़ती हैं। शनिवार को एक टीवी न्यूज चैनल के उस पत्रकार की मौत हो गयी, जिसने घोटाले की कवरेज के दौरान व्यापम घोटाले से जुड़ी एक दिवंगत छात्रा के परिजनों का इंटरव्यू किया था। रविवार को फर्जी परीक्षार्थियों की जांच कर रहे जबलपुर मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ़ अरुण शर्मा दिल्ली के एक होटल में मृत पाये गये तो सोमवार को एक प्रशिक्षु महिला पुलिसकर्मी ने आत्महत्या कर ली। बेशक इन मौतों की बाबत दावे के साथ अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता, लेकिन व्यापम घोटाला उजागर होने के बाद से जिस तरह अभी तक उससे जुड़े 25 लोगों की मौत हो चुकी है, उससे किसी बड़े आपराधिक षड्यंत्र का शक होता है। जुलाई, 2013 में यह घोटाला उजागर हुआ था। उसके बाद जैसे-जैसे इसकी परतें खुलती गयीं, बड़े-बड़े असरदार लोगों के नाम सामने आने लगे, और उसके साथ ही शुरू हो गया संदेहास्पद मौतों का सिलसिला, जो रुकने का नाम नहीं ले रहा। आरोपियों में पूर्व शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा से लेकर परीक्षा नियंत्रक और कॉलेज मालिक तक बड़े-बड़े लोग शामिल हैं तो संदेहास्पद मृतकों में मध्य प्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव के पुत्र शैलेश का भी नाम है।
बेशक उच्च न्यायालय की निगरानी में सेवानिवृत्त न्यायाधीश चंद्रभूषण की अध्यक्षता में विशेष जांच दल इस मामले की जांच कर रहा है। लगभग दो हजार लोग गिरफ्तार किये जा चुके हैं तो 600 अभी भी फरार हैं। जाहिर है, जांच के बावजूद सच अभी कहीं दूर है और जानलेवा सिलसिला जारी है। यही कारण है कि व्यापम घोटाले पर सियासत ही नहीं गरमा रही, बल्कि आम जनमानस में भी बेचैनी बढ़ती जा रही है। हालांकि मध्य प्रदेश भाजपा और सरकार से जुड़े कई लोग इन मौतों को स्वाभाविक बता रहे हैं, लेकिन खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान महसूस कर रहे हैं कि इस मामले में राज्य सरकार पर लोगों का भरोसा नहीं रहा। हैरत की बात यह है कि उच्च न्यायालय की निगरानी में एसआईटी जांच के बाद भी न तो मौतों का सिलसिला रुक रहा है और न ही लोगों का भरोसा बन रहा है। हालांकि कांग्रेस समेत कुछ दलों-नेताओं ने सीबीआई जांच की मांग की है, पर केंद्र में भी भाजपा सरकार होने के चलते उस पर भी कितना विश्वास होगा, आज कह पाना मुश्किल है। विश्वास का यह संकट किसी भी व्यवस्था के लिए बेहद गंभीर है। इसलिए इस पर सियासत करने के बजाय वे उपाय खोजे जाने चाहिए, जिनसे जनसाधारण का विश्वास बहाल हो, क्योंकि उसके बिना कोई भी व्यवस्था प्रभावी नहीं रह सकती।