सुधीर जैन, जगदलपुर। बस्तर के विश्व प्रसिद्ध दशहरा पर्व को मनाने के लिए इस बार कांटों के झूले पर झूलकर नारायणपुर की 13 वर्षीया पनिका जाति की बालिका अनुमति देगी। 12 अक्टूबर सोमवार को पथरागुड़ा के भंगाराम चौक स्थित काछनगुड़ी में यह पर्व धूमधाम के साथ संपन्न किया जायेगा तथा इस अवसर पर बस्तर दशहरा समिति के तमाम पदाधिकारी, मंदिर पुजारी, राजगुरू सहित बस्तर के जनप्रतिनिधि बाज-गाजे तथा आतिशबाजी के साथ शामिल होंगे। इस अवसर पर देशी-विदेशी पर्यटकों का भी जमावड़ा होगा। सोमवार को 13 वर्षीय बालिका विशाखा के शरीर पर काछन देवी की सवारी आयेगी, जिसे कांटों के झूले में झुलाया जाएगा। विशाखा कक्षा छटवीं में अध्ययनरत है, जो काछनगुड़ी में आकर उपवास कर रही है। काछन देवी का पूजा पाठ रोज किया जा रहा है। गौैरतलब है कि विगत पांच वर्षांे से काछनगुड़ी में विशाखा ही कांटों के झूले में झूलती आ रही है, पर उसके परिजनों को किसी प्रकार की सुविधा नहीं दी गई है, न कोई पूछपरख की जाती है।
काछनगादी इस लिए मनायी जाती है कि चौदहवीं शताब्दी में जब दिल्ली में अल्लाउद्दीन खिलजी राज्य कर रहा था तो उसने वारंगल में काकतीयों से युद्ध करने अपनी सेनापति मलिक काफूर को भेजा। वारंगल के युद्ध में अन्नमदेव के बड़े भाई प्रतापरूद्र मारे गये तथा उनकी बहन रैलादेवी ने युद्ध की कमान संभाली, लेकिन भारी मुगल सेना के सामने टिक नहीं सकी। युद्ध के बाद मुसलमानों ने रैलादेवी का सतीत्व भंग कर दिया था, तब राज परिवार ने उन्हें अपनाने से इंकार कर दिया था। उस वक्त महार जाति के लोगों ने रैला देवी को आश्रय दिया था, इसलिए महार जाति के लोगों को सम्मानित करने काछनगादी का त्यौहार मनाया जाता है। भारी उल्लास के साथ बस्तर के शहरी तथा आदिवासी जन इस त्यौहार को धूमधाम से मनायेंगे।