अन्न ब्रह्म, फिर भी 58,000 करोड़ की बर्बादी

monica sharma

डॉ. मोनिका शर्मा। यह कैसी विडंबना है कि हमारे यहां भूखे लोग भी हैं और अन्न की बर्बादी भी? बीते कुछ सालों में हमारे देश में बड़ी मात्रा में खाने की बर्बादी हो रही है। ऐसे में हम सबकी जिम्मेदारी है कि सामाजिक और व्यक्तिगत स्तर पर अन्न का हर दाना सहेजने की कोशिश की जाये। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि अकेले राजधानी दिल्ली में ही हर रोज 384 टन जूठन फेंकी जाती है। बेंगलुरु पर किए गए अध्ययन के मुताबिक हर साल शहर में केवल विवाहों के दौरान 950 टन खाद्यान्न बर्बाद होता है। जिस अन्न को उपजने में समय और श्रम दोनों लगता है, उसका यूं कूड़े के ढ़ेर में फेंका जाना हम सबके लिए विचारणीय है। संयुक्त राष्ट्र के एक अध्ययन में सामने आया है कि दुनियाभर के जिन महानगरों में जूठन सबसे ज्यादा फेंका जाता है, उनमें भारत के दिल्ली और कोलकाता भी शामिल हैं। ऐसे में आज जरूरत इस बात की है कि हम फिर अपनी परम्पराओं का चिंतन करें और अपनी आदतों में सुधार लाएं। यह दुखद ही है कि भारत ही नहीं, दुनिया के हर कोने में खाने की बर्बादी होती है। हर अमेरिकी सालाना 115 किलो खाने की चीजें फेंकता है और यूरोपीय 80 किलो। जर्मनी में ही औसतन हर व्यक्ति साल में 300 यूरो का सामान कूड़े में फेंक देता है। भारत में हर साल थाली में करीब 6 से 11 कि.ग्रा. खाना बर्बाद होता है। कुछ लोगों का भूखे पेट सोना और खाने को कचरे में फेंका जाना कैसा विरोधाभासी व्यवहार है।
संयुक्त राष्ट्र की भूख संबंधी सालाना रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में सबसे ज्यादा 19.4 करोड़ लोग भारत में भुखमरी के शिकार हैं। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एएफओ) ने अपनी रपट द स्टेट ऑफ फूड इनसिक्युरिटी इन द वर्ल्ड 2015 में यह बात कही है। यह विचारणीय और चिंतनीय है कि खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर होकर भी हमारे देश में भूख से जूझ रहे लोगों की संख्या चीन से भी ज्यादा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने अपनी जनसंख्या में भोजन से वंचित रहने वाले लोगों की संख्या घटाने में महत्वपूर्ण प्रयास किए हैं लेकिन अब भी वहां 19.4 करोड़ लोग भूखे सोते हैं। इसकी एक बड़ी वजह हर स्तर पर होने वाली अन्न की बर्बादी है क्योंकि हमारे यहां हर साल करोड़ों टन अनाज बर्बाद होता है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार लगभग 58,000 करोड़ रुपये का खाद्यान्न भंडारण तकनीकी अभाव में नष्ट हो जाता है। ऐसी बर्बादी तब हो रही है जब इस देश में करोड़ों लोग भूखे पेट सो रहे हैं और छह साल से छोटे बच्चों में से 47 फीसदी कुपोषण के शिकार हैं। जिन्दगी की सबसे अहम जरूरत भोजन पर सबका अधिकार है। भारत की संस्कृति में तो यूं भी अन्न को ब्रह्म का दर्जा दिया गया है। इसीलिए थाली में जूठन छोडऩा भी अन्नपूर्णा का अपमान माना जाता है। लेकिन देखने में आता है कि घरों में ही नहीं, शादी-पार्टियों में भी जूठन के रूप में खाने की खूब बर्बादी होती है। ऐसे में आज जरूरत इस बात की है कि हम फिर अपनी परम्पराओं का चिंतन करें और अपनी आदतों में सुधार लाएं। अनाज को सहेजने की दिशा में कई देश पहल कर रहे हैं। आज जब भुखमरी और कुपोषण एक वैश्विक समस्या बन रहे हैं तो ऐसे कदम उठाये जाने जरूरी भी हैं। गौरतलब है कि दुनियाभर में 1.3 बिलियन टन खाने की किसी न किसी कारण बर्बादी होती है। यह इनसानों की जरूरत के लिए तैयार किए गए कुल भोजन का लगभग एक तिहाई हिस्सा है। कूड़े के ढेर में फेंका गया खाना और दुनिया के सात लोगों में से एक का हर रोज भूखे सोना, हम सबको अपनी जिम्मेदारी याद करवाने को काफी है। जरा सोचकर देखिये कि इस दुनिया में पांच साल से छोटे लगभग 20 हजार बच्चे हर रोज भूख के कारण दम तोड़ देते हैं। फ्रांस में एक नए नियम के तहत खाना फेंकने पर प्रतिबंध लगाया गया है। इस मामले में पहल करने वाला पहला देश बना फ्रांस दुनिया के लिए मिसाल है। वहां लागू किये गए इस नियम के मुताबिक अब बचा हुआ खाना फेंकना प्रतिबंधित है। फूड डंपिंग की समस्या से निपटने के लिए यह नया नियम लागू किया गया है। फ्रांस की नेशनल असेंबली ने इस जीरो-वेस्ट पॉलिसी को लागू किया है। जिसके तहत सभी फूड मार्केट अपने यहां बचे हुए खाद्य उत्पादों को जानवरों के लिए, खाद के लिए दान देंगे। वहां की सरकार को उम्मीद है कि इस नई पॉलिसी से 2025 तक फूड वेस्ट की आधी समस्या हल हो जाएगी।
देश कोई भी हो, आमतौर पर खाने की सबसे ज्यादा बर्बादी सामाजिक समारोहों में ही होती है। इस मामले में हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तानी कानून सराहनीय है। पाकिस्तान में भी शादी समारोहों में एक ही व्यंजन बनाने की रीत है। हमारे देश में भी इस दिशा में कुछ निजी स्वयंसेवी संस्थाएं आगे आई हैं, जिन्होंने विभिन्न पार्टियों-समारोहों आदि में बचे हुए स्वच्छ अन्न को वैज्ञानिक ढंग से रेफ्रीजरेटिड पात्रों में एकत्रित करके जरूरतमंदों तक पहुंचाने की पहल की है।