महागठबंधन-उप्र की 47 सीटों पर बसपा, 3 पर रालोद, दो कांग्रेस बाकी सपा!

बसपा अध्यक्ष को प्रधानमंत्री तो सपा अध्यक्ष को 2022 में उप्र का मुख्यमंत्री पद चाहिए,
नई दिल्ली। उप्र के लोकसभा के चुनाव में सपा-बसपा का गठबंधन होगा या नही, इस पर अटकलबाजी चल रही है। सूत्रों का दावा है कि गठबंधन होने पर उप्र की 80 लोकसभा सीटों में 47 सीटों पर बसपा लड़ेगी। बाकी सीटों में 3 राष्ट्रीय लोकदल, दो सीटें अमेठी व रायबरेली कांग्रेस के लिए छोड़ी जाएगी। पीस पार्टी व निषाद पार्टी को एक-एक सीट मिलेगी, इसके बाद जो बचेगी 26 सीटें उस पर सपा लड़ेगी।
दो उपचुनाव बसपा की मदद से जीत कर सपा ने अपनी सीटों की संख्या 7 कर ली है, कैराना का लोकसभा उपचुनाव लड़ कर रालोद ने एक सीट जीत ली। जबकि 16वीं लोकसभा में बसपा के सदस्यों की संख्या 0 से आगे नही बढ़ी है। अभी भी लेकिन 2019 के चुनाव में गठबंधन तक पहुंचने में दोनों दलों को लंबा फासला तय करना है।
ध्यान रहे कि 2014 के मोदी लहर के लोकसभा चुनाव में बसपा 34 सीटों पर दूसरे स्थान पर थी। सपा को 5 सीटें मिली थी, तथा 31 सीटों पर वह दूसरे स्थान पर थी। कांग्रेस 2 सीटें जीती व 6 पर दूसरे नंबर पर आप एक सीट पर व रालोद एक सीट पर दूसरे स्थान पर थी।
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि उप्र की 80 सीटों के लिए सपा-बसपा के बीच समझौते का खाका और संभावित उम्मीदवारों की सूची तैयार हो गई है। बसपा अध्यक्ष को प्रधानमंत्री और सपा अध्यक्ष को 2022 में उप्र का मुख्यमंत्री पद चाहिए। इस फार्मूले के आधार पर बसपा प्रदेश की आधी से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। समझौते के लिए 2014 लोकसभा के साथ 2017 के विधानसभा चुनाव में दोनों दलों को मिले वोट को ध्यान में रखा गया है। रालोद और कांग्रेस को साथ लेने की गुंजाइश भी रखी जा रही है। यह सीटें सपा को अपने कोटे से देनी होंगी।
जानकारों का कहना है कि उप्र के गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव के दौरान जिस तरह से मायावती ने सपा को समर्थन देकर चौंकाया था। सपा-बसपा गठबंधन में सीटों की घोषणा भी चौकाने वाली होगी। सूत्रों का कहना है कि दोनों दलों के प्रबंधक प्रदेश की एक-एक लोकसभा सीट पर उम्मीदवारों और जातीय समीकरण का विश्लेषण पूरा कर चुके है। हालांकि कांग्रेस के बड़े नेताओं का एक गुट उप्र में बसपा-कांग्रेस के तालमेल की संभावना पर भी काम कर रहा है। जबकि सपा का एक फार्मूला और है, जिसमें सपा-बसपा गठबंधन में कांग्रेस को शामिल करने के पक्ष में नही है। इनका मानना है कि कांग्रेस के लिए अमेठी और रायबरेली के अलावा और कोई सीट न दी जाए। सपा-बसपा की जीत को अंततः लाभ यूपीए गठबंधन को ही होना है। जबकि भाजपा नेतृत्व की एनडीए सरकार को सत्ता से बाहर करने की रणनीति बनाने में जुटे दलित चिंतक चाहते है बसपा उप्र में 45 से 50 सीटों पर चुनाव लड़े। देश के दूसरे हिस्सों में कांग्रेस के साथ तालमेल कर कुछ सीटें और हांसिल कर ले तो प्रधानमंत्री पद पर दावा ठोंका जा सकता है।
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