लड़ाई में शामिल होना ही कांग्रेस की पहली चुनौती

congress2योगेश श्रीवास्तव
लखनऊ। बिहार विधानसभा के चुनाव में महागठबंधन में शामिल होकर राजद और जेडीयू की पिछलग्गू रही कांग्रेस को इस बार जो संजीवनी मिली है उससे उत्साहित होकर वह नए सिरे से उत्तर प्रदेश में अपना आशियाना दुरूस्त करने में लग गई है। फिलवक्त तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अकेले दम पर कुछ कर पाएगी इसकी संभावना कम है इसलिए उसे यहां भी बिहार जैसे सहयोगी दलों की तलाश है। यूपी में कांग्रेस को मुख्यधारा में लाने की गरज से पिछले विधानसभा चुनाव की तरह राहुल गांधी फिर सक्रिय हो गए है। 2012 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान पंचायते और किसान यात्रााएं की थी इस बार भी जब यूपी में विधानसभा चुनाव के लिए डेढसाल बाकी है तो उन्होंने सहारानपुर से पद यात्रा शुरू कर दी है। कांग्रेस को लगता है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को उसे वो सब मिल सकता है जिसकी उसे चाहत है। बिहार में मिली अपेक्षित सफलता और सरकार में भागीदारी से कांग्रेस को मानों संजीवनी मिल गई है। इसलिए बिना देर किए उन्होंने पदयात्रा शुरू करके प्रदेश के गैर भाजपा दलों के आगे बनने वाले किसी गठबंधन में शामिल होने या उसकी अगुवाई करने का पासा फेंक दिया है। हालांकि यूपी में पिछले दो ढाई दशकों में कांग्रेस हमेशा सपा या बसपा की पिछलग्गू ही बनती आई इस बार भी यदि उसे इसी स्थिति से गुजरना पड़े तो इसके लिए वह मानसिक रूप से तैयार दिख रही है। सा प्रदायिक शक्तियों को सत्ता से दूर रखने या उन्हे सत्ता में आने से रोकने के लिए कांग्रेस किसी भी दल की पिछलग्गू बनने से परहेज नहीं करेगी ऐसा कांग्रेस के ही रणनीतिकारों का मानना है। फिलवक्त तो यूपी में कांग्रेस के सामने मु य लड़ाई मे ंशामिल होने की है। पिछले ढाई दशकों से वह यहां चौथी पायदान पर ही खड़ी है। कभी सपा तो कभी बसपा की बैसाखी बनी कांग्रेस को इस बार अपने भाग्योदय की उ मीद दिख रही है। हालांकि लोकसभा चुनाव में उसका प्रदर्शन बहुत बेहतर नहीं रहा। विधानसभा चुनाव के बाद जितने भी उपचुनाव हुए उनमें कहीं भी कांग्रेस मुकाबले में ही नहीं ठहरी। पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंहराव की पहल पर 1996 में कांग्रेस बसपा से मिल कर यूपी में विधानसभा चुनाव लड़ चुकी है। तब बसपा ने 300 और कांग्रेस ने 125 सीट पर चुनाव लड़ी थी।
बाद मे 1997 में कांग्रेस से गठबंधन तोड़कर भाजपा से मिलकर सरकार बना ली थी। हालांकि बसपा से कांग्रेस को मिला यह कोई पहला धोखा नहीं था इससे पहले भी 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सपा से साथ टूटने का कारण यह भी था कि उस समय सपा कांग्रेस को मात्र सात सीटे ही दे रही थी। राहुल गांधी की पहली चुनौती यूपी में लकवाग्रस्त कांग्रेस को फिर से खड़ी करना है। राहुल की सहारनपुर यात्रा पर राजनीतिक पंडितों का मानना है कि यहां कांग्रेस तब तक नहीं मुख्य लड़ाई में आ पायेगी जब तक समाजवादी पार्टी से मुस्लिमों बहुजन समाज पार्टी से अतिदलितों और भारतीय जनता पार्टी से सवर्णों की दूरी नहीं बढ़ेगी। यूपी कांग्रेस को उन नेताओं ने लगातार कमजोर किया जो कांग्रेस में रह कर उसके सिद्धांतों को तिलांजलि देकर प्रदेश की सत्तारूढ़ पार्टियों की दलाली में लग गए। ऐसे लोगों ने ही कांग्रेस को दलदल में ढकेल दिया। राहुल ये कोई नई कवायद नहीं कर रहे हैं, जब से कांग्रेस में राहुल का उदय हुआ तब से 2009 का लोकसभा चुनाव को छोड़ कर वह भी यूपी में कांग्रेस को उबारने में फुस्स साबित हुए हैं।