यूपी के भाजपाईयों को मोदी मैजिक की आस

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योगेश श्रीवास्तव
लखनऊ। बिहार चुनाव में बुरी तरह शिकस्त खाने के बाद भी यूपी के भाजपाइयों की आंखे नहीं खुल रही है। दिल्ली के बाद बिहार में मोदी मैजिक फेल होने के बाद भी यूपी के भाजपाइयों को लगता है कि कुछ भी हो यूपी में तो मोदी मैजिक ही चलेगा। इसीलिए वे सपा-बसपा समेत बाकी दलों की चुनावी तैयारियों से बेपरवाह होकर अभी हाथ पर हाथ पर धरे बैठे है। पीएम नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री राजनाथ सिंह सहित कैबिनेट मे छह,दो स्वतंत्र प्रभार और चार राज्यमंत्री है। बावजूद इसके यूपी में भाजपा की स्थिति काफी नाजुक है। यदि यही हाल रहा तो प्रदेश में सरकार बनाना को दूर रहा मुख्य विपक्षी दल के रूप में आ जाए तो यह भाजपा के बड़ी उपलब्धि होगी। इस समय प्रदेश में भाजपा सदन में तीसरे नंबर की ही पार्टी है। मोदी के केन्द्र में संभालने के बाद जितने भी योजनाएं शुरू हुई में उनमें सांसदों द्वारा एक-एक गांव को गोद लेकर उनका समग्र विकास किए जाने की महत्ती योजना रही। लेकिन इस योजना का यूपी में ही दम निकलता दिख रहा है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पंचायत चुनावों में नरेन्द्र मोदी के वाराणसी स्थित जयापुर और गृहमंत्री राजनाथ सिंह के लखनऊ के बेतीगांव में भी यहां भाजपा समर्थिक उम्मीदवारों को शिकस्त का सामना करना पड़ा। जानकारों की माने यदि यही रवैया रहा तो सांसदों द्वारा गांवों को गोद लेने के बाद उसकी सुधि न लेने का खामियाजा आने वाले विधानसभा चुनाव में भी भुगतना पड़ सकता है। भाजपा के सांसदों द्वारा पीएम मोदी के द्वारा गांवों को गोद लिए जाने की योजना का जोरशोर से आगाज किया गया लेकिन लेकिन बाद में सब कान में तेल डालकर बैठ गए। यदि गोद लिए गांवों की ओर ध्यान दिया गया होता तो शायद मोदी के जयापुर और राजनाथ के बेंतीगांव में भाजपा को हार का मुंह न देखना पड़ता। जिन भी सांसदों द्वारा गांवों को गोद लिया गया उनका हाल या तो जस का तस है या पहले से बदतर हुआ है। गोद लिए गए ज्यादातर गांवों की स्थिति में कोई ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है। बिहार में भाजपा की हार के बाद अब नरेंद्र मोदी और अमित शाह पर हमले भी तेज होने लगे हैं। दिल्ली के बाद बिहार में मिली हार से गुस्सा थामे लोगों के सुर फूटने लगे है। भाजपा के सलेमपुर से सांसद रवींद्र कुशवाहा तथा मऊ से सांसद हरिनारायण राजभर ने भी मोदी पर हमला बोला है। मोदी की गांवों को गोद लिए जाने की योजना पर काम न कर पाने वाले सांसद भी इसका ठीकरा मोदी के सिर ही फोड़ रहे है उनका कहना है कि जनता में विकास की उ मीद जगाकर पीएम बने मोदी ने सांसदों को गांव गोद लेने की जि मेदारी तो दे दी। लेकिन अलग से किसी फंड की व्यवस्था नहीं की। संचालित सरकारी योजनाओं और स्वयंसेवी संस्थाओं के सहयोग से गांवों का विकास करने की जिम्मेदारी दे दी। मोदी ने पांच साल में तीन गांवों के कायाकल्प की बात की थी। ज्यादातर सांसद तो अभी पूरी निधि भी खर्च नहीं कर सके हैं। पीएम नरेन्द्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी से सटे चंदौली से सांसद चुने गए डा. महेंद्र नाथ पांडेय को लेकर तो लापता सांसद के पंपलेट तक चिपकाए जा चुके हैं। डा. पांडेय ने चंदौली संसदीय क्षेत्र में जरखोर गांव को गोद लिया है। लेकिन डेढ़ साल भी इसकी हालत जस की तस है। गोद लिए गए गांव भाजपा सांसदों के कार्यशैली और किए गए उनके कामों के सबसे अच्छे उदाहरण हैं। इन गांवों को देखकर आसानी से समझा जा सकता है कि सांसद अपनी जिम्मेदारियों के प्रति कितने संजीदा हैं।