गुलाबी तस्वीर के किंतु-परंतु

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सतीश सिंह। उम्मीद के मुताबिक पांचवीं द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा में रिजर्व बैंक ने नीतिगत दरों जैसे रेपो, रिवर्स रेपो और सीआरआर को यथावत रखा है। ऐसा करने का कारण रेपो दर में कुल 1.25 प्रतिशत की कटौती के बावजूद बैंकों द्वारा ग्राहकों को महज 0.60 प्रतिशत का लाभ देना है। राजन का मानना है कि पूर्व में की गयी नीतिगत दरों में कटौती से बैंकिंग प्रणाली में कर्ज दर में कटौती करने लायक पर्याप्त नकदी का संचार हुआ था। बहरहाल, समस्या के निदान हेतु रिजर्व बैंक जल्द ही बैंकों के लिए नई बेस रेट प्रणाली लागू करेगा, उसके बाद बैंकों को नीतिगत दर में कटौती का फायदा ग्राहकों को तुरंत देने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
रिजर्व बैंक के अनुसार चालू वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्धि दर 7.4 प्रतिशत रह सकती है। राजन के मुताबिक अर्थव्यवस्था में सुधार की आशा है, लेकिन इसमें समय लगेगा, क्योंकि खराब मानसून के कारण कृषि क्षेत्र में सुस्ती रहने का अनुमान है। खुदरा मुद्रास्फीति के जनवरी, 16 तक 6 प्रतिशत और मार्च, 17 तक 5 प्रतिशत पर रहने का अनुमान है। मुद्रास्फीति अगर नियंत्रण में रहती है और बैंक मामले में लचीला रुख अपनाते हैं तो आगामी मौद्रिक समीक्षा में नीतिगत दर में कटौती की जा सकती है। रिजर्व बैंक चाहता है कि बचत योजनाओं और ब्याज दरों को बाजार के साथ जोड़ा जाये, ताकि मौद्रिक नीति का सकारात्मक असर अर्थव्यवस्था पर पड़े।
रिजर्व बैंक, रेपो एवं रिवर्स रेपो द्वारा बाजार की मौद्रिक स्थिति को संतुलित रखता है। केंद्रीय बैंक बाजार में नकदी की उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिये रेपो दर में कटौती करता है। इसी तरह रिवर्स रेपो दर की मदद से रिजर्व बैंक बाजार में उपलब्ध अतिरिक्त नकदी को सोख लेता है। दोनों का इस्तेमाल बाजार में नकदी पर नियंत्रण करने के लिये किया जाता है। भले ही राजन और उद्योग जगत कर्ज ब्याज दर में कटौती नहीं करने के लिए बैंकों को दोषी मान रहे हैं, लेकिन संपत्ति की गुणवत्ता में गिरावट के चलते विगत कुछ सालों से बैंक पूंजी की भारी किल्लत का सामना कर रहे हैं। एनपीए ने बीते सालों में बैंकों के मुनाफे में जबर्दस्त सेंध लगायी है। बेसल तृतीय के विविध मानकों को पूरा करने के लिये भी बैंकों को भारी-भरकम पूंजी की जरूरत है। बैंक जमा पर मिलने वाला रिटर्न आज इतना कम हो गया है कि उसे महंगाई एक झटके में निगले जा रही है। मौजूदा समय में ग्राहक को बचत राशि पर बैंक द्वारा महज 4 प्रतिशत की दर से ब्याज दिया जा रहा है। आवर्ती या सावधि जमा पर बैंक औसतन 8 से 9 प्रतिशत की दर से ब्याज दे रहा है। कम रिटर्न के कारण ग्राहक बैंक में अपनी जमा पूंजी रखने से कतरा रहे हैं।
बेमौसम बारिश के कारण तैयार खरीफ एवं खेतों में लगी रबी फसलों को नुकसान हुआ है। खाद्य वस्तुओं की कीमत में इजाफा होने से खुदरा महंगाई में बढ़ोतरी हुई है। राजन चाहते हैं कि मुद्रास्फीति के नियंत्रण में आने के बाद ही नीतिगत दर में कटौती की जाये, क्योंकि महंगाई पर नियंत्रण करके ही देश की अर्थव्यवस्था को गतिमान किया जा सकता है। महंगाई के नियंत्रित रहने से निवेशकों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर भरोसा बढ़ेगा, बचत को प्रोत्साहन मिलेगा एवं विकास की रफ्तार तेज होगी।
औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक निवेश में कमी आ रही है। चालू वित्त वर्ष में जनवरी से अगस्त महीने तक महज 37,915 करोड़ रुपये की परियोजना को कार्यान्वित किया गया था, जबकि पिछले साल की समान अवधि के दौरान 64,276 करोड़ रुपये की परियोजना लागू की गई थी। यह रकम 2012 के समान अवधि में 82,156 करोड़ रुपये से बहुत ही कम है। प्रस्तावित निवेशों की मात्रा भी बीते महीनों में घटी है। चालू वित्त वर्ष के जनवरी से अक्तूबर की अवधि में निवेश प्रस्ताव में लगभग एक लाख करोड़ रुपये की गिरावट दर्ज की गई है।
अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिये वित्तीय घाटे को नियंत्रण में रखना जरूरी है, लेकिन सातवें वेतन आयोग की सिफ़ारिशों को लागू करने के बाद वित्तीय घाटे को कम करने में सरकार को मुश्किल का सामना करना पड़ेगा। वित्त वर्ष 2017 में 3.5 प्रतिशत वित्तीय घाटे का लक्ष्य हासिल करने के लिए सरकार को बुनियादी ढांचा क्षेत्र में किये जा रहे निवेश में कटौती करनी होगी, जिससे विकास की रफ्तार में कमी आयेगी। वेतन बढ़ोतरी से केंद्र सरकार के खजाने पर तकरीबन 736 अरब रुपये का बोझ बढ़ेगा, जो जीडीपी का 0.46 प्रतिशत है। अगर रेलवे कर्मचारियों के बढऩे वाले वेतन की राशि 284 अरब रुपये या जीडीपी के 0.19 प्रतिशत बोझ को भी इसमें शामिल कर लिया जाये तो वेतन बढ़ोतरी से पडऩे वाला कुल बोझ 1 लाख करोड़ रुपये, जीडीपी का 0.65 प्रतिशत हो जायेगा। अर्थव्यवस्था की तस्वीर को गुलाबी बनाने के लिये सरकार को सुधार की राह पर एक लंबा सफर तय करने की जरूरत है।