इस बार है मॉनसून मेहरबान

rainpaddy

मॉनसून की मेहरबानी से देश पर छाई सूखे की आशंका अब टलती दिख रही है। अभी तक मॉनसून सीजन की आधी अवधि पार हुई है और यहां तक हुई बारिश दीर्घकालिक औसत की 98 फीसदी दर्ज की गई है। किसी भी साल देश भर में सूखे की स्थिति तभी मानी जाती है जब बारिश औसत से 10 फीसदी कम हो। इस बार सीजन का पहला आधा हिस्सा तो 96 से 104 फीसदी की सामान्य श्रेणी में पहुंच गया है।
इससे धान समेत खरीफ की सारी फसलें खेत में लगाई जा चुकी हैं, लेकिन उपज अच्छी हो, इसके लिए मानसून का बाकी आधा हिस्सा कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है। जाहिर है, संकट को अभी पूरी तरह खत्म नहीं माना जा सकता। अगर मॉनसून सीजन के बाकी बचे हिस्से में बारिश कमजोर रही तो सूखा जाते-जाते लौट आएगा। एक्सपर्ट्स के मुताबिक इस आशंका की अनदेखी कम से कम अभी तो नहीं की जा सकती। 15 जुलाई के बाद यों भी एक अंतराल आता है।
देखने की बात यह है कि यह अंतराल कहीं लंबा न चल जाए। मौसम वैज्ञानिकों ने अल नीनो से जुड़ी जो आशंकाएं बताई थीं वे अपनी जगह कायम हैं। अल नीनो पिछले दिनों मजबूत हुआ है और उसके प्रभाव से प्रशांत क्षेत्र में एक साथ कई चक्रवात आ रहे हैं। इन चक्रवातों की एक विशेषता यह भी होती है कि वे भारत के दक्षिण-पश्चिमी मानसून की नमी सोख लेते हैं। अगर ऐसा हुआ तो सीजन के अगले हिस्से में बारिश की संभावनाएं प्रभावित हो सकती हैं।
बहरहाल, राहत की बात यह है कि अब तक हुई वर्षा का क्षेत्र व्यापक रहा है और इसकी बदौलत खरीफ की फसलों की रोपाई-बोआई अच्छे से हो गई है। ऐसे में सबसे ज्यादा जरूरत इस बात की है कि सरकार मॉनसून की इस सकारात्मकता का फायदा उठाते हुए सारे जरूरी इंतजाम अभी से कर ले ताकि आगे अगर मौसम बेईमान हो भी जाए तो खेती पर उसका ज्यादा बुरा प्रभाव न पड़े। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने ताजा बयान में यह बात कही है कि सरकार ने इस दिशा में कई कदम उठाए हैं। लेकिन 50 हजार करोड़ की सिंचाई योजना जैसे कदमों का जोर दूरगामी उपायों पर ज्यादा लगता है।
इसके तुरंत बाद वे अगले कुछ सालों में बनने वाली सुखद स्थितियों का उल्लेख करने लगे। उनका भाव किसानों के बजाय शेयर बाजार को यह भरोसा दिलाने का था कि 8 से 10 फीसदी विकास दर भारत की पहुंच से बाहर नहीं है। निवेशकों के बीच पॉजिटिव माहौल बनाए रखना और बाजार का भरोसा न टूटने देना कोई कम जरूरी काम नहीं है, लेकिन वित्तमंत्री को अभी अपना ध्यान किसानों को सस्ता डीजल और सस्ती खाद मुहैया कराने पर केंद्रित करना चाहिए। एक अच्छा फसली सीजन देश का समूचा आर्थिक माहौल बदल सकता है, लेकिन वित्तमंत्रियों को यह बात अक्सर बुरे दिनों में याद आती है।