ईद होगी कल: छायी हर तरफ रौनक

eid marketलखनऊ। ईद-उल-फि़त्र खुशियों का त्योहार है। यह त्योहार हमें मिल-जुलकर रहना सिखाता है। दरअसल ईद-उल-फि़त्र दो शब्दों से मिलकर बना है। ईद और फि़त्र।
ईद-उल-फि़त्र इस बात का ऐलान है कि अल्लाह की तरफ से जो पाबंदियां रमजान माह पर अल्लाह के बंदों पर लगाई गई थीं, वे अब खत्म की जाती हैं। इसी फि़त्र से फि़तरा बना है। फि़त्रा यानी वह रकम जो खाते-पीते, साधन संपन्न घरानों के लोग आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों को देते हैं। ईद की नमाज़ से पहले इसका अदा करना जरूरी होता है। ईद-उल-फि़त्र को मीठी ईद भी कहा जाता है।
मीठी ईद के पहले रमजान का माह चल रहा होता है। रमजान अरबी कैलेंडर का नौवां माह होता है। और नौंवे महीने की समाप्ति के बाद दसवां माह शवाल आता है। इसी माह शवाल की प्रथम तिथि को ईद मनाई जाती है। यह त्योहार रमजान के 29 या 30 रोजे की समाप्ति के बाद मनाया जाता है।
रमजान में हर सक्षम मुसलमान को अपनी सम्पत्ति के ढाई प्रतिशत हिस्से के बराबर की रकम निकालकर उसे गरीबों में बांटना होता है। इससे समाज के प्रति इसकी जिम्मेदारी पूरी तो होती ही है साथ में गरीब रोजेदार भी अल्लाह के इस पवित्र त्योहार को मना पाते हैं। ईद की वजह समाज के लगभग हर वर्ग को किसी- न- किसी तरह से फायदा होता है चाहे वह वित्तीय लाभ हो या फिर सामाजिक फायदा हो।
ईद के त्योहार के दिन मुस्लिम धर्म के अनुयायी ईदगाह में जाते हैं। जहां दो रक्आत नमाज शुक्राने की अदा करते हैं। यह खुशी खासतौर से इसलिए भी है कि रमजान का महीना जो एक तरह से परीक्षा का महीना है, वह अल्लाह के नेक बंदों ने पूरी अक़ीदत (श्रद्धा), ईमानदारी व लगन से अल्लाह के हुक़्मों पर चलने में गुजारा। इस कड़ी आजमाइश के बाद का तोहफा ईद है।