सपनों की रहस्यमय दुनिया में ले जाती है ‘द फाइनल एक्जि़ट’

अनिल बेदाग
फीचर डेस्क। हॉरर फिल्मों का एक खास दर्शक वर्ग है। ऐसी फिल्में, जिनमें थ्रिल भी हो और सस्पैंस भी। इन फिल्मों का कॉन्सेप्ट ही इन्हें सुपर नेचुरल थ्रिलर फिल्म का रूप देता है जिन्हें बनाना भी खतरे से खाली नहीं क्योंकि ऐसी फिल्मों की पटकथा को बांधे रखना आसान नहीं है। जितना अहम फिल्म की विषय-वस्तु है, उतना ही महत्वपूर्ण है फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक़, जो हॉरर पैदा करता है। बतौर निर्माता विशाल राणा की पहली फिल्म ‘द फाइनल एक्जि़ट’ भी सुपर नेचुरल थ्रिलर है। म्रुणाल झावेरी ने भी बतौर निर्माता उनका साथ दिया है और निर्देशक हैं ध्वनिल मेहता। विशाल इससे पहले तीन मराठी फिल्मों का निर्माण कर चुके हैं। करीब दर्जनों धारावाहिकों के लाइन प्रोड्यूसर रह चुके विशाल आज उन्हीं अनुभवों की बदौलत फिल्म जैसे बड़े कैनवास तक पहुंचे हैं। विशाल कहते हैं कि मुझे बचपन से ही हॉरर फिल्में देखने का शौक था इसलिए जब हिंदी में फिल्म निर्माण का वक्त आया तो उन्होंने हॉरर जैसे ज़ोनर को ही आर्थिक रूप से सुरक्षित समझा और और मां के आशीर्वाद से फाइनल एक्जिट पर काम शुरू किया, जिसमें एक युवक सपनों की दुनिया में खो जाता है।
ये ऐसी रहस्यात्मक दुनिया है जहां उसे आगे बढऩे से रोका जाता है। सपने में ही उसे यह अहसास दिलाने की कोशिश की जाती है कि लौट जाओ। सपनों की उस दुनिया में युवक की मौत हो चुकी है और वो इस दुविधा में है कि मोक्ष प्राप्त करे या फिर जीवनधारा में लौट जाए। विशाल राणा का कहना है कि फिल्म देखे बिना इसके रहस्य को जान पाना आसान नहीं क्योंकि यह हॉरर में उलझी हुई एक दिलचस्प कहानी है जिसे हम हॉरर से ज्यादा सुपर नैचुरल थ्रिलर फिल्म कहेंगे। मौत के बाद एक ऐसा रहस्य है जो अब तक कोई नहीं जान पाया। क्या यह फिल्म मौत से जुड़ा कोई गहरा राज़ खोलेगी! आखिर उस सपने की असली सच्चाई क्या है! यही तो एक ऐसा थ्रिल है, जो सस्पैंस के साथ-साथ रोमांच पैदा करता है। फिल्म में कुणाल रॉय कपूर, अनन्य सेनबगुप्ता, स्कारलेट विसलन, ऐलना कजऩ, अर्चना और रेहाना मल्होत्रा की भी अहम भूमिकाएं हैं।