आशो रजनीश ट्रस्ट: कोर्ट का आदेश, प्रतिवादी बने केन्द्रीय एजेंसी

 

मुंबई। बंबई उच्च न्यायालय ने ओशो रजनीश ट्रस्ट के कोष से जुड़ी कथित धोखाधड़ी और अनियमितता की जांच सीबीआई से कराने की मांग संबंधी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्रीय एजेंसी को भी इस मामले में प्रतिवादी बनाने का आज निर्देश दिया।
पुणे के रहने वाले योगेश ठक्कर ने पिछले वर्ष उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन के न्यासियों ने आध्यात्मिक गुरु की वसीयत में उनके हस्ताक्षर में धोखाधड़ी की थी। पुणे पुलिस में इस संबंध में प्राथमिकी दर्ज कराई गई है। हालांकि ठक्कर का दावा है कि पुलिस की जांच में कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई है। इसलिए उन्होंने मामले की सीबीआई से जांच कराने की मांग की है। न्यायमूर्ति आर वी मोरे और न्यायमूर्ति साधना जाधव की खंडपीठ ने ठक्कर के वकील प्रदीप हवनूर से सीबीआई और केंद्र सरकार को मामले में प्रतिवादी बनाने की मांग की है। मालूम हो कि आचार्य रजनीश की मौत 1990 में हुई थी और उन्होंने 1989 को अपनी एक वसीयत बनवाई थी। पूना निवासी ठक्कर ने 2012 में पुलिस आयुक्त को एक पत्र लिखकर इसकी शिकायत की थी जिसके बाद ट्रस्ट में शामिल लोगों के खिलाफ 2013 में एफआईआर दर्ज की गयी थी।