मंदिर में हो रही है लंकाधिराज रावण की पूजा-अर्चना

कानपुर। विजयादशमी के मौके पर कानपुर में रावण दहन से पूर्व शक्ति के प्रतीक के रूप में शनिवार सुबह से लंकाधिराज रावण की पूजा-अर्चना और आरती हो रही है तथा श्रद्धालु अपने लिए मन्नतें मांग रहे हैं। इस मंदिर का नाम दशानन मंदिर है और इसका निर्माण 1890 के आसपास हुआ था।
दशानन मंदिर के दरवाजे साल में केवल एक बार दशहरे के दिन ही सुबह नौ बजे खुलते हैं और मंदिर में लगी रावण की मूर्ति का पहले पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ श्रृंगार किया जाता है और उसके बाद रावण की आरती उतारी जाती है तथा शाम को दशहरे में रावण के पुतला दहन के पहले इस मंदिर के दरवाजे एक साल के लिए बंद कर दिए जाते है, यह मंदिर शनिवार सुबह दशहरे के दिन सुबह नौ बजे खुला और और शाम को रामलीला में रावण वध से पहले बंद हो जाएगा।
रावण के इस मंदिर में होने वाले समस्त कार्यक्रमों के संयोजक केके तिवारी ने आज बताया कि शहर के शिवाला इलाके में कैलाश मंदिर परिसर में मौजूद विभिन्न मंदिरों में भगवान शिव मंदिर के पास ही लंका के राजा रावण का मंदिर है। यह मंदिर करीब 127 साल पुराना है और इसका निर्माण महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने कराया था। उनका दावा है कि आज शाम तक रावण के इस मंदिर में करीब 15 हजार श्रद्धालु रावण की पूजा अर्चना करने आएंगे।
इस मंदिर को स्थापित करने के पीछे यह मान्यता थी कि रावण प्रकांड पंडित होने के साथ-साथ भगवान शिव का परम भक्त था इसलिए शक्ति के प्रहरी के रूप में यहां कैलाश मंदिर परिसर में रावण का मंदिर बनाया गया था। दशानन मंदिर के तिवारी दावा करते है कि शिवाला इलाके के इस दशानन मंदिर के अलावा देश में कही भी रावण का मंदिर या उसकी मूर्ति नही है।
वह बताते है कि भक्तगण रावण की आरती के बाद सरसों के तेल का दीपक जलाकर अपने परिवार पर आने वाली मुसीबतों को दूर करने और उनकी रक्षा करने की प्रार्थना कर रहे है तथा मन्नतें मुरादें भी मांग रहे है। तिवारी कहते है कि पिछले करीब 126 वर्षों से रावण की पूजा की परंपरा का पालन हो रहा है चूंकि कैलाश मंदिर परिसर में भगवान शिव का मंदिर भी है इस लिए शिव मंदिर में जल चढ़ाने और पूजा अर्चना करने आने वाले भक्तगण शिव की पूजा के बाद रावण के मंदिर में पूजा अर्चना करते है और जल चढ़ाते हैं और शिव भक्ति का आशीर्वाद मांगते हैं।