भाजपा दलितों, अतिपिछड़ों तो सपा दलितों को साधने में जुटी

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विधान सभा चुनाव-2017
सी. लाल। गोरखपुर व संतकबीरनगर में निषाद आरक्षण मुद्दे पर हुये बवाल से उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नई पहल शुरू हुयी है। इस आरक्षण आन्दोलन का दुरगामी परिणाम होगा। सपा के खिलाफ निषाद समाज में व्यापक असंतोष उत्पन्न हुआ है और पूरे प्रदेश में धरना प्रदर्शन का दौर शुरू हुआ है। भाजपा को इस बहाने एक नया मुद्दा मिल गया है तो सपा इस बड़ी आबादी वाले समाज को अपने साथ बनाये रखने के लिए निषाद नेताओं को डैमेज कन्ट्रोल में लगा दिया है।
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, बस्ती, गाजीपुर, संतकबीरनगर, देवरिया, बलिया, मऊ, आजमगढ़, जौनपुर, चन्दौली, वाराणसी, भदोही, मिर्जापुर, सोनभद्र, इलाहाबाद, सुल्तानपुर, कौशाम्बी, बांदा, फतेहपुर, हमीरपुर, रायबरेली, अम्बेडकर नगर, फैजाबाद, गोण्डा, बहराइच, बाराबंकी, लखीमपुर, शाहजहांपुर, पीलीभीत, श्रावस्ती, उन्नाव, हरदोई, कानपुर, मेरठ, शामली, मुजफ्फरनगर, आगरा, फिरोजाबाद, फरूखाबाद, मथुरा, कानपुर नगर, कानपुर देहात, औरैया, एटा, कासगंज, अलीगढ़, इटावा, हापुड़ जिले निषाद समाज के व्यापक जनाधार वाले क्षेत्र है। निषाद आरक्षण आन्दोलन का राजनीति में प्रभाव के मुद्दे पर पूछे जाने पर सामाजिक चिन्तक व राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव तथा लम्बे समय से निषाद, मछुआरों के आरक्षण के लिए संघर्ष करते आ रहें चौधरी लौटन राम निषाद ने कहा कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में इसका असर पडऩा स्वाभाविक है। सपा अपने स्तर से जो राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में है, उचित कदम उठाकर निषादों की असंतोष को दूर कर सकती है। पिछड़े वर्ग में निषाद समाज एक अच्छी जनसंख्या वाला व पूरे प्रदेश में प्रभाव रखने वाला समाज है। उन्होंने आगे कहा कि प्रदेश सरकार निषाद असंतोष के लिए कम दोषी, निषाद समाज की सपा के नेता ही अधिक दोषी है।
अतिपिछड़ों का अतिदलितों की बदौलत लोक सभा चुनाव-2014 में अप्रत्याशित सफलता हासिल करने वाली भाजपा इन वर्गों को अपने पाले में मजबूती के साथ जोड़े रखने के लिए तरह-तरह के प्रयास में जुटी हुयी है। उत्तर प्रदेश की 17 आरक्षित लोक सभा की सीटों पर भाजपा का कब्जा है तो विधान सभा की 56 सीटों पर सपा के दलितों का कब्जा है, ऐसे में दोनों दल दलितों को जोडऩे व अपने पाले में करने की कोशिशों का ताना-बाना बुन रहें है। लोक सभा की जो 17 सीटें हैं, उस पर 5 पासी, 2-2 कोरी, धोबी, 1-1 मल्लाह, खरवार, दुशाद, खटिक, वाल्मीकि, चमार/जाटव, नट, सांसदों का कब्जा है, जो सभी भाजपा के हैं। सपा के अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष व सैदपुर के विधायक सुभाष पासी को दलितों को जोडऩे की जम्मेदारी दी गयी है।
सपा विधान सभा चुनाव 2017 को ध्यान में रखकर प्रदेश में क्षेत्रवार 18 दलित महासम्मेलन का खाका तैयार किया है पहला दलित महासम्मेलन 28 जून को आजमगढ़ में निश्चित है। जिसमें सपा सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव व प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सिरकत करेंगे। दूसरा सम्मेलन 15 से 17 जुलाई के बीच वाराणसी में करने पर विचार चल रहा है। सामाजिक न्याय समिति-2001 के अनुसार प्रदेश में दलितों की संख्या -24.95 प्रतिशत व अनुसूचित जनजातियों की संख्या 0.6 प्रतिशत है। जिसमें चमार/जाटव की कुल दलित संख्या में 55.70 प्रतिशत भागीदारी है। अन्य दलित जातियों में पासी, तड़माली- 15.91 प्रतिशत, धोबी-6.51 प्रतिशत, कोरी-5.39 प्रतिशत, वाल्मीकि-2.96 प्रतिशत, खटिक-1.83 प्रतिशत, धानुक-1.57 प्रतिशत, गोड़-1.25 प्रतिशत, कोल-1.11 प्रतिशत तथा श्ेाष 57 दलित जातियों की संख्या-7.78 प्रतिशत है। वैसे देखा जाय तो दलितों में चमार/जाटव बसपा का काडर वोट बैंक और अभी भी वह बसपा से दूर जाता नहीं दिख रहा है। पासी/तड़माली किसी एक पार्टी विशेष के साथ नहीं रहता इस वर्ग के मतों में बिखराव निश्चित है।
खटिक जाति में उदित राज, दिल्ली से भाजपा के सांसद है और इन्हें दलित चेहरा माना जाता है। खटिक, वाल्मीकि, गोड़, दुसाध आदि बहुमत के साथ भाजपा के ही साथ रहते हैं और आगामी विधान सभा चुनाव में भी भाजपा के साथ ही जाने की पूरी सम्भावना है। 2002, 2007 व 2012 के विधान सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में सत्ता का परिवर्तन 2.5 से 3.5 प्रतिशत मतों के ही उलट फेर से हुआ है, ऐसे में दलित मत निर्णायक है जिसके कारण सपा, भाजपा की गिद्ध दृष्टि दलित मतदाताओं को रिझाने में लगी है। भाजपा ने दलित समाज का ध्रुवीकरण अपने पाले में करने के लिए डॉ0 अम्बेडकर व सुहेल देव की जयन्ती विशेष तौर पर मनाकर दलितों के बीच पैठ बढ़ाने का प्रयास किया। दलित बस्ती में स्वच्छता अभियान चलाने व उन्हें पार्टी से जोडऩे के लिए भाजपा ने पिछड़े-सवर्ण समाज को लगाने के लिए एक 12 सदस्यीय कमेटी का गठन किया है। उत्तर प्रदेश में वही दल सत्ता पाने में सफल होगा जो दलितों, अतिपिछड़ों को अधिक प्रतिशत में अपने पाले में लाने में सफल होगा।
उत्तर प्रदेश की जातीय समीकरण में सामान्य वर्ग-20.94 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग -54.05, अनुसूचित वर्ग-24.95 प्रतिशत, जनजाति वर्ग-0.06 प्रतिशत है। उत्तर प्रदेश में सत्ता परिवर्तन कुल जनसंख्या के 43 प्रतिशत से अधिक गैर यादव पिछड़ों, अतिपिछड़ों के ऊपर निर्भर है। लोक सभा चुनाव में सपा बसपा ने 6-6 अतिपिछड़ों को उम्मीदवार बनाया था वहीं भाजपा ने पिछड़ा कार्ड खेलते हुए एक यादव सहित 24 गैर यादव पिछड़ों, अतिपिछड़ों को उम्मीदवार बनाकर जातिगत समीकरण को बेहतर तरीके से साधा। सपा सरकार की रवैया से गैर यादव पिछड़ा, अतिपिछड़ा वर्ग काफी रूष्ट चल रहा है। कारण कि उसे कोई महत्व नहीं मिल रहा है। गैर यादव पिछड़ों में राम मूर्ति वर्मा (कुर्मी) व गायत्री प्रसाद प्रजापति कैबिनेट मंत्री हैं, परन्तु मांझी, लोधी, किसान, शाक्य, पाल, जाति के राज्यमंत्री बनाकर दोयम दर्जे का राजनीतिक बर्ताव किया गया है। जिससे यह वर्ग राजनीतिक रूप से बेहद उपेक्षित मान रहा है।
उत्तर प्रदेश में राजनीतिक हालात पर पिछड़ा वर्ग चिन्तक व राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव चै0 लौटन राम निषाद से जब विधान सभा चुनाव 2017 के बारे में पूछा गया तो उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि अतिपिछड़ों का 60 फीसदी से अधिक हिस्सा जो दल अपने तरफ करने में सफल होगा, वहीं सत्ता पाने में का हकदार होगा। अतिपिछड़ा वर्ग भी सामाजिक-राजनीतिक रूप से जागरूक हुआ है, उसमें सम्मान की भूख जागृत हुयी है, राजनीतिक सम्मान देने वाले दल के साथ इनका ध्रुवीकरण स्वाभाविक तौर पर होगा। 17 अतिपिछड़ी जातियां का आरक्षण मुद्दा भी 2017 में खास भूमिका निभायेगा।
उत्तर प्रदेश में निषाद, केवट, मल्लाह, बिन्द, पाल, बघेल, गड़ेरिया, धनगर, कुशवाहा, मौर्य, शाक्य, सैनी, लोधी, किसान, जैसी मजबूत आधार वाली जातियां सपा से खासा नाराज है जिसका असर 2017 के विधान सभा चुनाव में पडऩा स्वाभाविक है। निषाद आरक्षण आन्दोलन के कारण प्रदेश की राजनीति को प्रभावित करने वाली 12.91 प्रतिशत आबादी वादी निषाद/कश्यप/बिन्द, जातियां सपा से खासी नाराज है जिसका लाभ उठाने के लिए भाजपा पूरी तरह जुट गयी है। सपा भी निषादों उपजे असंतोष व नाराजगी के डैमेज कन्ट्रोल के लिए चिन्तन में डूबी हुयी है।
सामाजिक न्याय समिति-2001 के अनुसार पिछड़े वर्ग की 54.05 प्रतिशत आबादी में यादव/अहिर-19.40 प्रतिशत, निषाद (मल्लाह, केवट, बिन्द, कश्यप, धीवर,)-12.91 प्रतिशत, मौर्य/कुशवाहा (माली, सैनी, काछी, कोयरी, मुराव)-8.35 प्रतिशत, गड़ेरिया, बघेल-4.43 प्रतिशत, कुर्मी/पटेल, सैन्थवार-7.46 प्रतिशत लोधी/किसान/खागी-6.06 प्रतिशत, तेली/साहू-4.01 प्रतिशत, जाट-3.61 प्रतिशत, कुम्हार/प्रजापति-3.42 प्रतिशत, नाई, सविता-3.01 प्रतिशत, राजभर-2.44 प्रतिशत, बढ़ई/विश्वकर्मा-2.37 प्रतिशत, नोनिया/चैहान-2.33 प्रतिशत लोहार/सैफी-1.81 प्रतिशत, गूजर-1.71 प्रतिशत, भुर्जी/कांदू-1.44 प्रतिशत, शेष हिन्दू अतिपिछड़ी जातियों की संख्या पिछड़ों में 12-13 प्रतिशत है।
भाजपा से 5-5 लोधी, कुर्मी, जाट, 3-3 निषाद/कश्यप, कुशवाहा/मौर्य/सैनी, 2 गूजर, 1-1 राजभर, तेली, सांसदों सहित 24 अतिपिछड़े सांसद हैं। पूर्व में कोयरी/काछी, मतदाता, बसपा का दूसरा आधार वोट माना जाता था पर अब भाजपा के साथ जाता दिख रहा है। पिछड़ों ने जाट, लोधी, किसान, गूजर, तेली, पाल, साहू, विश्वकर्मा, राजभर, चैहान भाजपा के ही साथ जाने का मन बनाये है। पिछड़ों में यादव के बाद निषाद, सपा का खास वोट बैंक माना जाता था परन्तु इस समय खास बड़ा वोट बैंक सपा से खासा नाराज है। कारण कि इस समाज की पूर्व से भी कहीं अधिक उपेक्षा हो रही है। अनुसूचित जाति आरक्षण सवाल पर 17 अतिपिछड़ी जातियां विधान सभा चुनाव-2012 में सपा के साथ बहुमत के साथ गयी थी परन्तु इन्हें अभी तक मिला कुछ नहीं। सपा के एक सूत्र ने बताया कि पार्टी नेत्रृत्व लौटन राम को विशेष महत्व देने का मन बनाये था परन्तु मण्डल कमीशन की पूरी रिपोर्ट लागू करने की मांग उठाये जाने से सपा की भौहे तन गयी। पिछड़ा मत को ध्यान में रखकर भाजपा कुछ नया कर पिछड़ों को रिझाने की कवायद में जुटी है। 8 जून को सुहेल देव जयन्ती के अवसर पर गृह मंत्री राजनाथ सिंह का बयान आया था कि उत्तर प्रदेश सरकार की सामाजिक न्याय समिति-2001 के आधार पर केन्द्रीय पिछड़ा वर्ग सूची का तीन वर्गों में विभाजन किया जायेगा। अगर भाजपा सरकार ऐसा कदम उठाती है तो निश्चित रूप से उसे विधान सभा चुनाव-2017 में राजनीतिक लाभ मिलेगा। अब देखना है कि भाजपा, सपा, कांग्रेस, बसपा आदि दल अतिपिछड़ों, दलितों को अपने-अपने पाले में करने के लिए कौन-कौन से टोटके करते हैं।