सुप्रीम कोर्ट ने कहा: राष्ट्रगान जरूरी नहीं

 

 

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि देशभर के सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने को नियंत्रित करने के लिए वह राष्ट्रीय ध्वज संहिता में संशोधन करने पर विचार करे। मामले की अगली सुनवाई 9 जनवरी को होगी, तब तक सिनेमाघरों में राष्ट्रीय गान बजना जारी रहेगा। सीजेआई दीपक मिश्रा, एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार को सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने के बारे में उसके पहले के आदेश से प्रभावित हुए बगैर ही इस पर विचार करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी को भी देशभक्ति साबित करने के लिए उसे हर वक्त बाजू में पट्टा लगाकर घूमने की जरूरत नहीं है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि देशभक्त होने के लिए राष्ट्रगान गाना जरूरी नहीं है। ये टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गत वर्ष नवंबर में दिए उस अंतरिम आदेश में बदलाव के संकेत दिए हैं जिसमें देशभर के सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने और दर्शकों को उस दौरान खड़े होने के लिए कहा गया था। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि सिनेमाघरों में राष्ट्रगान न गाने और उस दौरान खड़े न होना राष्ट्रविरोधी नहीं है। किसी को भी देशभक्ति का प्रमाण देने के लिए बाजू में पट्टा लगाकर घूमने की जरूरत नहीं है।
पीठ अपने 1 दिसंबर 2016 में दिए सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने के आदेश को वापस लेने के लिए दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि भारत एक विविधता वाला देश है और एकरूपता लाने के लिए सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि संवधिान में अनुच्छेद 51 ए, जिसमें राष्ट्रीय कर्तव्य लिखे हैं, उन्हें देखते हुए सुप्रीम कोर्ट इस तरह का आदेश दे सकता है। हालांकि उन्होंने कहा कि कोर्ट आदेश में संशोधन कर राष्ट्रीय गान बजाने के आवश्यक निर्देश को स्वेच्छा से बजाने के निर्देश में बदल सकता है, लेकिन कोर्ट ने कहा कि आप ही क्यों नहीं इस मामले में फैसला लेते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार इस बारे में विचार करेगी और कोई न कोई रास्ता निकालेगी।