गुजरात चुनाव: खाम के बाद पोडा समीकरण के सहारे कांग्रेस की नैया

डॉ. राम सुमिरन विश्वकर्मा। 1985 के विधान सभा चुनाव में माधव सिंह सोलंकी ने खाम ;के-क्षत्रिय$, हरिजन$, आदिवासी$, मुस्लिम समीकरण के सहारे गुजरात में अब तक की सबसे बड़ी जीत हासिल किये थे। उस समय कांग्रेस को 182 में 149 सीटें मिली थीं। इस बार कांग्रेस रणनीतिकार नये जातिगत समीकरण को लेकर 22 वर्षों से सत्ता से बाहर रहने के बाद गुजरात की सत्ता हासिल करने का मंसूबा पाल कर फूले नहीं समा रहें हैं। नये जातिगत समीकरण को पोडा कहा जा रहा है, जिसका तात्पर्य पी-पाटीदार, ओ-ओ0बी0सी0, डी-दलित, ए-आदिवासी है। अब देखना होगा कि कांग्रेस पोडा समीकरण के सहारे 22 वर्षों के बनवास को खत्म कर सत्ता पर काबिज भाजपा को पीछे कर सत्ता की कुर्सी हासिल करने में सफल रहती है, या फिर पांच वर्षों तक इन्तेजार करेगी। गुजरात चुनाव-2017 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चुनावी कौशल व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के चुनाव प्रबंधन व रणनीति कौशल की परख होगी। गुजरात चुनाव के लिए भाजपा को 2014 लोक सभा चुनाव की स्थिति दोहरा पाना भी आसान नहीं है और न 2012 के विधान सभा चुनाव जैसी स्थिति ही दिख रही है। इस बार कांग्रेस काफी मजबूती से चुनाव समर में उतरी है, लेकिन प्रचार तंत्र, रणनीति, कैडर बेस वर्कर व प्रबंधन में भाजपा से काफी पीछे है। कांग्रेस के पास बूथ स्तर के हार्ड वर्कर की कमी है वहीं भाजपा 30 मतदाताओं के पीछे एक-एक कैडर को लगा दिया है। पोडा समीकरण के सहारे सत्ता प्राप्ती का अतिविश्वास कांग्रेस के लिए घातक भी साबित हो सकता है। सामाजिक न्याय चिन्तक लौटन राम निषाद ने कहा कि अल्पेश, हार्दिक, जिग्नेश व छोटू भाई वसावा के साथ मिल जाने से कांग्रेस खुशफहमी व अतिविश्वास की शिकार हो गयी है। इन चारों नेताओं में छोटू भाई वसावा के अलावा कोई अपने जाति व जमात का वोट बहुमत के साथ कांग्रेस की झोली में नहीं डलवा सकता।
राजनीति कवि गणित के फार्मूला पर नहीं चलती है कि 1$1=2 या 2ग्2 =4 ही हो। अगर ऐसा होता तो गुजरात में इन चार जातियों की एकता होने के पश्चात चुनावी परिणामों को लेकर कोई संशय नहीं रहता। गुजरात के जातिगत समीकरण में पाटीदार-14.53 प्रतिशत ;कड़वा पटेल-6.11 प्रतिशत, लेउआ पटेल-8.42 प्रतिशतद्ध ओ0बी0सी0-39 प्रतिशत, दलित-7.17 प्रतिशत व आदिवासी-17.61 प्रतिशत है। ऐसा कतई सम्भव नहीं कि हार्दिक पटेल के फरमान से सभी कड़वा पटेल, लेउआ पटेल, मोती, जुबना व अंजना पटेल कांग्रेस को वोट दे ही दें। कारण कि पूर्व मंत्री केशू भाई पटेल, आनन्दी बेन पटेल लेउआ पटेल हैं, जो भाजपा के साथ है और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष जीतू भाई बवानी, उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल सहित दर्जनों पाटीदार नेता भाजपा के साथ है। गुजरात में कोली समाज की संख्या सबसे अधिक लगभग 25 प्रतिशत है, जो मुख्यत: मछुआरे व कुछ किसान है और कच्छ-सौराष्ट्र व दक्षिणी गुजरात के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में भी फैले है, लेकिन दक्षिणी गुजरात व सौराष्ट्र में तो इनका वर्चस्व है। 24 नवम्बर को राहुल गांधी सौराष्ट्र में मछुआरों से मिले। 4 दिसम्बर को पोरबंदर में मछुआरों की रैली करने वाले है। यह वहीं धरती है जहां के फकीरा कोली ने महात्मागांधी को दक्षिण अफ्रीका से पानी की जहाज से उतरने पर 5 लाख मछुआरों द्वारा स्वागत कराकर नेता बनाया। 24 नवम्बर को मछुआरों से मुलाकात में राहुल गांधी ने कहा कि गुजरात में सरकार बनने पर मत्स्य मंत्रालय बनाया जायेगा। इस पर सूरत के मछुआरा नेता जोगेन्द्र निषाद व प्रदीप भाई मांछी ने चुटकी लेते हुए कहा कि यह राहुल गांधी के रणनीतिकारों व सलाहकारों की बड़ी चूक है, क्योंकि गुजरात के साथ हर राज्य में पहले से ही मत्स्य मंत्रालय है।
गुजरात चुनाव में पोडा समीकरण की सफलता का सम्पूर्ण दारोमदार इस बात पर है कि पी-हार्दिक पटेल, ओ-अल्पेश ठाकोर, डी-जिग्नेश मेवानी, ए-छोटू भाई वसावा अपनी जाति जमाति के बीच अपने समर्थन को किस हद तक वोट बैंक के रूप में परिवर्तित कर पाते है। आन्दोलन के साथ खड़ी जो भीड़ दिखाई देती है, वह इस बात की गारेण्टी नहीं होती है कि वह चुनाव के मौके पर वोट में परिवर्तत हो जाये। हार्दिक व अल्पेश परस्पर विरोधी राजनीतिक की उपज है और मेवानी जिस मुद्दे पर दलित स्वाभिमान शुरू किये उसका कारण क्षत्रिय के साथ ठाकोर व पाटीदार समाज द्वारा उत्पीडऩ ही है। तीनों युवा नेता भले ही कांग्रेस के साथ आ गये हैं, पर इनका समाज भी इनके साथ कांग्रेस का वोट बैंक बन जाये, संशय है। लौटन राम निषाद ने कहा कि गुजरात में कोली-निषाद-मछुआरा सागर पुत्र ही गेम चेन्जर हैं जिन्हें कांग्रेस बहुत ही हल्के में ले रही है। गुजरात के दर्जनों जिलों व शहरों में 8-10 प्रतिशत उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश के निषाद, केवट, मल्लाह हैं, पर कांग्रेस के पास निषादों का कोई प्रभावी नेता ही नहीं हैं। जबकि भाजपा ने अपनी रणनीति के तहत उत्तर प्रदेश बिहार से जाति आधारित राजनीति करने वाले नेताओं की फौज उतार चुकी है। कांग्रेस अन्दर खाने पोडम ;पी-पाटीदार, ओ-ओ0बी0सी0, डी-दलित, ए-आदिवासी, एम-मुस्लिमद्ध समीकरण पर काम कर रही है, पर कहीं धार्मिक धु्रवीकरण न हो जाये, इससे बचने के लिए मुस्लिम मतदाता से दूरी बनाती दिख रही है। कांग्रेस रणनीतिकारों का मानना है कि कांग्रेस ने मुस्लिमों की ओर झुकाव किया तो उसका पोडा समीकरण बेअसर हो जायेगा। उत्तर प्रदेश में जैसे कुर्मी व कोयरी हैं वैसे ही गुजरात में कड़वा पटेल व लेउआ पटेल है। मोती, अंजना, व लुबना पटेल माली सैनी, शाक्य की तरह हैं। वैसे ही उत्तर प्रदेश के मल्लाह की तरह गुजरात की कोली व कश्यप की तरह भोई माछी हैं, खारे जल में मच्छी मारी करने वाले कोली व मीठे जल यानी नदि ताल पोखरों में मछली पकडऩे वाले भोई कहते हैं। मौलिक क्रान्ति मीडिया ग्रुप व वेब पोर्टल के प्रबंध निदेशक ने अपनी टीम के साथ सौराष्ट्र की 42 तथा दक्षिणी गुजरात व मध्य गुजरात की 47 विधान सभा क्षेत्रों में सर्वे कर मतदाताओं का रूख भापा। भाजपा सरकार व विजय रूपाणी, अमित शाह तथा जीतू भाई से लोगों में काफी नाराजगी दिखी, लेकिन क्या यह नाराजगी 9 व 14 दिसम्बर तक बूथ तक कायम रहेगी, कहा नहीं जा सकता क्योंकि गुजरात की राजनीति में दिनो दिन समीकरण में बदलाव दिख रहा है। मछुआरा समाज के शंकर भाई कोली ;अंकलेश्वरद्ध, प्रदीप भाई माछी ;सूरतद्ध, विजय भाई ताण्डेल ;वलसाड़द्ध, देवेन्द्र भाई थारवा ;नर्मदाद्ध, नानू भाई सोलंकी ;भाव नगरद्ध, छोटू भाई कोली ;पोरबंदरद्ध, राजेश निषाद, डॉ0 भगवान दास कहार ;वड़ोदराद्ध एवं चंदन भाई कोली, सावित्री बेन ;सुरेन्द्र नगरद्ध ने भाजपा व कांग्रेस दोनों दलों के प्रति नाराजगी जताते हुए कहा कि इनकी दृष्टि में कोली मछुआरों की अहमियत नहीं है। 2001 से आज तक गुजरात मंत्री मण्डल में कोई मछुआरा कैबिनेट मंत्री नहीं बन पाया जिससे कोली मछुआरा समाज काफी नाराज है। सोमजी भाई मिस्त्री व राजेश विश्वकर्मा ने कांग्रेस पर नाराजगी जताते हुए कहा कि अतिपिछड़ा होने के कारण कांग्रेस ने मधुसूदन भाई मिस्त्री को हल्का कर दिया, वहीं अरूण कुमार प्रजापति ने भाजपा के प्रदीप नाराजगी जताते हुए कहा कि जब प्रजापति समाज ने गुजरात में आरक्षण की मांग उठाया तो मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने चिल्लर कहकर अपमानित किया। सुनील बोराट, राम जी भाई निषाद, जयन्ती भाई सोलंकी, सीके चैधरी ने कहा कि मोदी कहने को ओ0बी0सी0 ;मोढ़ घांचीद्ध हैं यदि इनके अंदर ओ0बी0सी0 के प्रति भावना होती तो सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय को निष्प्रभावी कराने के लिए पैरवी करते जिसमें निर्णय दिया गया है कि आरक्षित वर्ग को कोटा में ही कोटा मिलेगा, किसी भी दशा में अनारक्षित नहीं। गुजरात का चुनाव इस बार पूरी तरह जातिवाद हो गया है। कांग्रेस व भाजपा दोनों व जातिगत समीकरण को दुरूस्त करने के लिए उम्मीदवार उतारें हैं। भाजपा के विधान सभा चुनाव 2012 में 47 ओ0बी0सी0 व 47 पाटीदार को उम्मीदवार बनाया था। इस बार भाजपा ने 61 ओ0बी0सी0, 53 पाटीदार, 28 एस0सी0, 13 आदिवासी, 13 ब्राह्मण, 9 क्षत्रिय व 5 बनिया को उम्मीदवार बनाया है। दूसरी तरफ कांग्रेस ने 54 ओ0बी0सी0, 43 पाटीदार, 27 आदिवासी, 13 दलित, 3 ब्राह्मण, 8 क्षत्रिय, 5 बनिया के साथ 9 महिलाओं को उम्मीदवार बनाया है। जदयू के विधायक रहे छोटू भाई वसावा की नवगठित इण्डियन ट्राईबल पार्टी 5 टिकट दिया है। कांग्रेस दो दर्जन तो अपना उम्मीदवार ही घोषित नहीं कर पायी। राहुल गांधी के सलाहकार सैम पिट्रोदा की रणनीतियों पर टिप्पणी करते हुए सामाजिक न्याय चिन्तक लौटन राम निषाद का कहना था कि ज्ञान आयोग के पूर्व अध्यक्ष सैम पिट्रोदा कम्प्यूटर इंजीनियर हो सकते है, सोशल इंजीनियर नहीं।