डेढ़ सौ साल पुराना है कैथेड्रल चर्च का इतिहास

लखनऊ। शहर का कैथेड्रल चर्च का इतिहास शहर के कैथोलिक गिरिजाघरों में सबसे पुराना है। ब्रिटिश हुकूमत के अधीन रहे आइरिस मूल के सैनिकों ने वर्ष 1860 में जब चर्च की आधारशिला रखी, तब पहली प्रार्थना सभा में मात्र दो सौ लोग शामिल हुए। चर्च के पहले पादरी के रूप में आइरिस मूल के ग्लिसन की नियुक्ति की गई। इसके बाद चर्च के कई पादरी हुए और अब बिशप डॉ. जेराल्ड मथाइस के साथ फादर डॉ. डोनाल्ड डिसूजा चर्च की सेवा कर रहे हैं। यह चर्च शैक्षणिक और चिकित्सा कार्य में अपना योगदान तो दे ही रहा है, साथ ही अनाथालयों में रह रहे लोगों की देखभाल भी पूरी सेवाभाव से कर रहा है। पादरी डॉ. डोनाल्ड डिसूजा बताते हैं कि शहर में कैथालिक समुदाय के कदम रखने के बाद पहला चर्च डालीगंज में बना। वहां जगह की कमी के चलते वर्ष 1860 में हजरतगंज में जमीन ली गई। तब यह क्षेत्र शहर के बाहर का इलाका माना जाता था। यहीं पर छोटे से चर्च का निर्माण हुआ। इसके बाद उसी जगह पर वर्ष 1977 में वर्तमान चर्च कैथेड्रल की बिल्डिंग खड़ी हुई। नाव सा दिखने वाला कैथेड्रल चर्च की बिल्डिंग भारतीय और इटेलियन आर्किटेक्ट की देन है। पादरी डॉ. डोनाल्ड डिसूजा ने बताया कि इस आर्किटेक्ट के पीछे आध्यात्मिक सोच छिपी थी। उन्होंने बताया कि कैथेड्रल चर्च की बनावट यह संदेश देती है कि चर्च रूपी नाव में बैठकर ही स्वर्ग का रास्ता तय किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि कैथेड्रल चर्च का नाम लैटिन शब्द कतेद्रा से लिया गया है। कतेद्रा का मतलब होता है बैठका, जहां कैथोलिक समुदाय के धर्माध्यक्ष बैठते हैं। कैथेड्रल चर्च ईसाई शैक्षणिक संस्थान में पढ़ रहे गरीब परिवार के बच्चों की फीस माफ कराने के साथ-साथ अनाथालयों में भी अपनी सेवा देता आ रहा है। पादरी डॉ. डोनाल्ड डिसूजा ने बताया कि शहर में सेंट फ्रांसिस और सेंट पॉल स्कूल जैसे बेहतर शैक्षणिक संस्थान हैं। यहां पढऩे वाले गरीब बच्चों को फीस में छूट दिलाने का भी काम किया जाता है। इसके साथ ही सप्रू मार्ग पर प्रेम निवास अनाथालय में रह रहे अनाथों की सुविधा का पूरा ख्याल रखा जाता है।