हरियाणवी लोक संस्कृति की झांकी

Krishna Museum

अरुण नैथानी।
हरियाणा प्रदेश का इतिहास पांच हजार वर्ष से भी अधिक पुराना है। इसका प्रमाण यहां के पुरातात्विक स्थलों से मिली वस्तुएं हैं। बनावली से मिला पांच हजार वर्ष पुराना हल यहां की कृषि संस्कृति का परिचायक है। ये वो भूमि है, जहां पर महाराज कुरु ने सबसे पहले हल जोतकर कृषि करने का संदेश दिया। हरियाणा की सांस्कृतिक विरासत को सूक्ष्मता एवं शोधात्मक दृष्टि से अभी तक जो गंभीर प्रयास होने चाहिए थे, वो नहीं हुए हैं। हरियाणा की सांस्कृतिक धरोहर नामक पुस्तक में धरोहर हरियाणा संग्रहालय के प्रभारी डॉ. महासिंह पूनिया ने अपनी शोधात्मक दृष्टि के माध्यम से हरियाणा की सांस्कृतिक विरासत के उन पहलुओं को इस पुस्तक में केन्द्र बिन्दु बनाया है, जिन पर अभी तक शोध की अपार संभावनाएं हैं। पुस्तक को 26 अध्यायों में विभाजित किया गया है।
हरियाणा की सांस्कृतिक धरोहर नामक इस पुस्तक में हरियाणवी संस्कृति एवं विरासत से सम्बन्धित ऐसे विषयों का चयन किया है, जिन पर अभी तक शोध एवं लेखन कार्य अधिक नहीं हुआ है। पुस्तक के पहले अध्याय में हरियाणवी लोकजीवन में बदलती पारम्परिक दिनचर्या को केन्द्र बिन्दु बनाया गया है। दूसरे अध्याय मेंज् मैं कुएं तै पाणी ल्याई, छोर्यां नै बोल्ली मारी बहू रै कालैज् कीज् के अंतर्गत हरियाणा की लोक सांस्कृतिक पनघट परम्परा का ब्योरा दिया गया है।
तीसरे अध्याय में हरियाणा की पगड़ी की विविधता एवं उसकी प्रासंगिकता को दर्शाया गया है। चौथे अध्याय में चरखे की महिमा और लोकजीवन में उसकी महत्ता का उल्लेख है। पांचवें अध्यायज् पारसनाथ तै चाक्की भली, जो चून देवै पीसज् के द्वारा हरियाणवी लोकजीवन में चक्की तथा उससे जुड़ी हुई सांस्कृतिक विरासत को प्रस्तुत किया गया है। छठे अध्याय में चूल्हे की लोकजीवन में उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया है। सातवें अध्याय में हरियाणवी लोकजीवन के पारम्परिक परिवहन साधनों की प्रासंगिकता को शामिल किया गया है। आठवें अध्यायज् रथ मैं आवै बाबल राजाज्, मंझौली मैं ताऊज् में देहात में रथ की उपयोगिता और नौवें अध्याय में हरियाणवी लोकजीवन में मंझौली की सांस्कृतिक उपयोगिता और वर्तमान दशा का उल्लेख किया गया है। दसवें अध्याय में किसानी संस्कृति के अंतर्गत बैलगाड़ी की उपयोगिता को चित्रित किया गया है। ग्यारहवें अध्याय देहात में तेल के कोल्हू से जुड़ी विरासत का उल्लेख किया गया है।
बारहवें अध्याय द्वारा लोक में कोल्हू की सांस्कृतिक विरासत को बिम्बित किया गया है। तेरहवें अध्याय में हरियाणा की पारम्परिक चौपाल संस्कृति को समेटने का प्रयास किया गया है। चौदहवें अध्याय द्वारा गांवों में सांझी की महत्ता एवं उपयोगिता को आधार बनाया गया है। पन्द्रहवें अध्याय में किसानी संस्कृति की बीज-वस्तु हल से जुड़ी हुई परम्पराएं तथा इसके प्रकारों को केन्द्र बिन्दु बनाया गया है। सोलहवें अध्याय में हरियाणवी लोकजीवन एवं हुक्के का परस्पर क्या सम्बन्ध है, को चित्रित किया गया है। सतरहवें अध्याय में सिंचाई के साधन चड़स की किसानी में रही उपयोगिता का उल्लेख किया गया है। अठारहवें अध्याय में पानी के लिए प्रयोग की जाती रही मशक एवं पखाल की महत्ता को बताया गया है। उन्नीसवें अध्याय में देहात में खाटिया, खाट, खटोल्ली की लोक सांस्कृतिक विरासत को रेखांकित किया गया है। बीसवें अध्याय के अंतर्गत घाघरे, दाम्मण, खारे, लह आदि की लोक सांस्कृतिक उपयोगिता को अंकित किया गया है। इक्कीसवें अध्याय में हरियाणवी संगीत तथा सारंगी के योगदान एवं उसकी उपयोगिता को चित्रित किया गया है।
पुस्तक के अन्तिम अध्याय में हरियाणा की पुरातन विरासत का ब्योरा प्रस्तुत किया गया है। हरियाणवी लोकजीवन में प्रचलित रहे सभी साधनों एवं कामधंधों को चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। इसके साथ ही पुस्तक में डॉ. महासिंह पूनिया एवं राजकिशन नैन के चित्रों के माध्यम से लोक व्यावसायिक काम-धन्धों के जीवंत स्वरूप को प्रस्तुत किया है। पुस्तक शोधार्थियों एवं कलाप्रेमियों के लिए संग्रहणीय अंक है।