कब मिलेगी मौत के पुलों से निजात

rail pul
विमल शंकर झा।
तुम किसी ट्रेन सी गुजरती हो, और मैं किसी पुल सा थरथराता हूं..। सरकारी लापरवाही और भ्रष्टाचार कितने लोगों की जान ले सकती है इसकी ताजातरीन मिसाल है हरदा रेल दुर्घटना । इस भयंकर और दर्दनाक हादसे में 40 से अधिक लोगों की जलसमाधि हो गई और पचासों लोग घायल हो गए । ङ्क्षचता की बात यह है कि सालों से चल रहे इस अंतहीन हादसे के सिलसिले का खतरा अभी भी बदस्तूर बना हुआ है। पोल छुपाने के सतही प्रयासों से परे यदि सरकार संजीजगी से इस ओर ध्यान दे तो असमय ही हमसे बिछडऩे वालों को हम अपने बीच देख सकते हैं।
हरदा के निकट हुई भयंकर रेल दुर्घटना जितनी दर्दनाक है उतनी ही सरकार की लापरवाही की शर्मनाक मिसाल भी है। बारिश के चलते खिरकिया और कुड़वा के बीच रेलवे ट्रैक पर स्थित नहर की पुलिया धंसने से कामायनी और जनता एक्सप्रेस दुर्घटनाग्रस्त होकर इनके कई डिब्बे नदी मे बह गए। रात 11 बजे हुए हादसे में नींद मेंं ही चालीस से अधिक यात्रियों की डूबने से मौत हो गई । सैकड़ों लोग घायल हो गए । इस हादसे ने मृत और हताहत हुए लोगों के परिजनों को तो रुलाया ही उनके साथ पूरे देश की आंखों में भी अंासू आ गये?। अपने टीवी स्क्रीन पर दुर्घटना के दर्दनाक दृश्य और मृतको के शवों के साथ रोते बिलखते परिजनों को देखकर लोगों के दिल दहल गए। सरकार ने वही किया जो इतने सालों से हो रहा है। घोर लापरवाही के बीच राहत और तत्परता से यात्रियों को बचा लेने का ढोल पीटा गया । तकनीकी औैर मानवीय खामी के सात प्राकृतिक आपदा को बहाना बनाया गया। दो चार छोटे कर्मियों को सस्पेंड व जांच करने की रस्मीअदायगी के बाद फिर से ठोक के तीन पात कर रहनुमा और आम जनता अपने रोजमर्रे में मसरुफ हो जाएंगे। विभागीय अफसरों की प्रशासनिक व तकनीकी टीम स्थल और आसपास के ऐसे इलाकों का दौरा कर रिपोर्ट बना कर दे देगी और कुछ छिटपुट प्रयास कर कर्तव्य की इतिश्री कर ली जाएगी। मगर इतने बड़े हादसे के मूल कारणों को पहले की तरह निदान करने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया जाएगा। कितनी ही हादसों को रोकने की जांच और सुधार रिपोर्ट गार्डनरीच में धूल खाते पड़ी है। सरकार बड़बोले नुमाइंदों को इसे देख कर अमल करने की फुरसत नहीं है। सुस्ती और लापरवाही का यह सिलसिला पिछले कई सालों से चला आ रहा है। क्योंकि यह वह दौर नहीं जब रेल हादसे होने पर लाल बहादुर शास्त्री व इसके बाद माधव राव सिंधिया ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। यह अलग बात है कि हादसों का यह जानलेवा क्रम पिछले पचास सालों में घटने के बजाय बढ़ गया है। जबकि बजट के साथ इस हाईटेक दौर में सुविधाएं भी बढ़ गई है। मगर इसके साथ ही विभागीय लापरवाही और उदासीनता भी बढ़ी है। पिछले दस सालों में तीस से अधिक रेल हादसे हो चुके हैं। इनमे हजारों लोगों की जानें गई और कई घायल हुए । मगर दुर्घटना्ओं का सिलसिला जारी है। बंगाल रेल दुर्घटना के बाद सरकार ने रेलवे का कायाकल्प करने की बात की थी मगर यात्री किराया और माल भाड़ा तो बढ़ा पर सुधार हवा-हवाई ही साबित हुए। दुर्घटना के बहुतेरे कारणों में सबसे सबसे बड़े सबब की ओर सरकार के सतही प्रयास ही रहे हैं। वह कारण यह है कि आज भी हजारो पुल जर्जर हैं। इन मौत के पुलों से रोज चौबीस घंटे धड़धड़ती ट्रैन गुजर रही है। हरदा हादसे के पहले भी कई बार पुल के टूटने व पटरी धंसकने से हुई दुर्घटनाओं मे हजारों ंजानें जा चुकी है मगर सरकार नीम बेहोशी में दिखाई देती है। चंंद्रशेखर सरकार के समय बिहार मे हुई दुर्घटना और फिर नीतीश के रेल मंत्री रहते हुए पुलों के कायाकल्प के सुझाव दिये गए थे। मनमोहन और फिर मोदी सरकार ने भी बजट में इसके लिए प्रावधान रखा। मगर कितने पुल-पुलियों की मरम्मत की गई और कितने नए बनाए गए? रेलवे और संसदीय कमेटियों की सर्वे रिपोर्टे बताही हैं। 31 फीसदी छोटे -बड़े पुल व ब्रिज जर्जर हो चुके हैं। कई तो अंगे्रजों के समय के हैं और कालातीत हो चुके हैं। बावजूद इसके सरकार बजट का रोना रोकर इस तरफ ध्यान न देकर लोगों की जान से खिलवाड़ कर रही है। यह अधिकार उसे किसने दिया। बंगाल, बिहार, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, छत्सीसगढ़ और आंध्र के पुलों की हालत बेहद खराब है। पूर्वोत्तर की तो स्थिति और भी बदतर है। नाईट पेट्रोलिंग का यह आलम है कि बरसात में इसकी बदहाली से ऐसे जर्जर पुलों की निगरानी भी नहीं की जा सकती । जबकि बरसात में इनसे सबसे ज्यादा खतरा है। सरकार का ्ज्यादातर ध्यान बड़ी नदियों पर बने पुलों की मरम्मत पर ही होता है। हरदा जैसे छोटे पुल और मध्यमक्रम के पुलों पर रेलवे का सिविल अमला संजीदा दिखाई नहीं देता। बड़ी नदियों व नहरों पर उत्तरप्रदेश, बिहार, असम, केरल, तमिलनाडू और मध्यप्रदेश के कई पुलों की हालत खराब है। कई पुलों के पीलर जर्जर हो चुके हैं। बालाघाट के बैनगंगा, और जबलपुर मे नर्मदा का पुल के पीलर कमजोर हो चले हैं। इसी तरह खेतों के ऊपरी सतह पर बने छोटे पुल ज्यादा दुर्घटनाजन्य साबित होते हैं, जिनकी मरम्मत का सरकार के पास कोई लाइनपैप नहीं है लगता है। आखिर क्या वजह है कि इस दिशा में सरकार गंभीर नजर नहीं आती । जबकि यह लोगों के जीवन से जुड़ा मामला है। सरकार को चाहिए कि अलग से बजट बनाकर नए सिरे सेे सर्वे करवा कर जर्जर पुलों की अविलंब मरम्म करावे ताकि हरदा के दर्दनाक हादसे को दोहराने से बचा जा सके । गौर करने वाली बाद यह है कि ऐसे हादसे रोके जा सकते थोड़ी सी इच्छाशक्ति और बजट बढा़कर । साथ ही पुलों के निर्माण में कमीशन का खेल भी अब बंद होना चाहिेए। क्योंकि यदि रेत के पुल बनाए जाएंगे तो इससे तो बेहतर है कि बनाने का नाटक ही न किया जाए। आखिर देश की अनमोल मानव क्षति की भी तो कोई कीमत होनी चाहिए। कितने प्रतिभाएं हादसों में हमसे बिछड़ जाती है। कितने लोगो अनाथ हो जाते हैं। यह खबर कौन रखेगा।