बिहार में चुनावी एजेंडा की जंग

bihar
बिहार में विधानसभा चुनाव की तारीखें तो अभी घोषित होनी हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गया रैली के साथ ही चुनावी तेवर और रणनीति साफ होती नजर आ रही है। एक पखवाड़े में बिहार में दूसरी रैली को संबोधित करते हुए भाजपा के स्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, राजनीतिक दुश्मन से फिर उनके दोस्त बने लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस के साथ उनके गठबंधन पर तीखे प्रहार किये। कांग्रेस मुक्त भारत के नारों के सहारे पिछले साल लोकसभा चुनाव में अप्रत्याशित सफलता हासिल करने वाले मोदी जंगल राज से मुक्ति के नारे के सहारे बिहार में भाजपा को चुनावी वैतरणी पार करवाना चाहते हैं। लालू-राबड़ी शासन के लिए कभी नीतीश कुमार भी जंगल राज शब्द का इस्तेमाल करते थे, पर तब भाजपा उनकी दोस्त थी। अब जबकि भाजपा से दोस्ती टूट गयी है और लालू फिर से दोस्त बन गये हैं तो मोदी के जंगल राज वाले कटाक्ष के दायरे में नीतीश भी आ गये हैं। स्वाभाविक ही है कि बिहार के लिए बीमारू और जंगल राज सरीखे कटाक्ष पर नीतीश और लालू ने तीखा पलट वार किया है। मंडल राज—2 की वापसी का विश्वास जताते हुए भाजपा पर जवाबी कटाक्ष भी किये हैं। आश्चर्य नहीं कि दोनों ही पक्षों ने एक-दूसरे का व्यंग्यात्मक नामकरण भी किया है। मोदी ने जद यू को जनता का दमन और उत्पीडऩ तथा राजद को रोजाना जंगल राज का डर का नाम दिया है तो नीतीश ने भाजपा को भारतीय जुमला पार्टी और बड़का झुठ्ठा पार्टी करार दिया है।
इस जुमलेबाजी और वाक्युद्ध का चुनावी प्रभाव तो आनेवाला समय ही बतायेगा, लेकिन संकेत साफ है कि दोनों ही मोर्चे इस चुनाव को अपने-अपने एजेंडा पर लडऩा चाहते हैं। अतीत का अनुभव भी बताता है कि चुनाव का एजेंडा तय करनेवाला अकसर मोर्चा भी फतह कर लेता है। सोलहवीं लोकसभा के चुनाव का एजेंडा मोदी और भाजपा ने तय कर दिया था, कांग्रेसनीत संप्रग का चुनाव प्रचार सफाई देने में ही निकल गया। दिल्ली के विधानसभा चुनाव का एजेंडा अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी तय करने में सफल रही तो परिणामस्वरूप भाजपा-कांग्रेस की ऐतिहासिक दुर्गति हुई। बिहार में भी पहला मुकाबला एजेंडा तय करने का ही है। इस बीच नीतीश और केजरीवाल की मुलाकातें भी बढ़ी हैं। जाहिर है, दिल्ली के बाद बिहार मोदी की दूसरी कड़ी परीक्षा साबित होगी। मोदी आक्रामक हमले के साथ नीतीश-लालू को रक्षात्मक मुद्रा में ला देना चाहते हैं, जबकि ये दोनों इसे बिहार की अस्मिता का चुनाव बनाना चाहेंगे। नीतीश पर डीएनए संबंधी कटाक्ष के बाद मोदी के विरुद्ध शब्द वापसी अभियान का मकसद भी यही है। भाजपा और उसके मित्र दल जंगल राज को मुद्दा बना कर नीतीश-लालू को घेरेंगे तो वे जवाब में मंडल राज की दुहाई देकर पिछड़ा वोट बैंक को गोलबंद करने की कोशिश करेंगे। ऐसे में बिहार के विकास से जुड़े असल मुद्दों को चुनावी एजेंडे पर सिर्फ मतदाता और मीडिया ही ला सकते हैं।