लोकायुक्त नियुक्ति: राजभवन और सरकार की बढ़ती तल्खी

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लखनऊ। यूपी में सरकार और राजभवन के बीच तनातनी कम होने का नाम नहीं ले रही है। बार-बार सरकार अपने कामों की फाइल राजभवन भेज रही है और राज्यपाल भी पड़ताल करने के बाद फाइलों को वापस भेजने में लगे हैं। मामला चाहे लोकायुक्त की नियुक्ति का हो या फिर विधान परिषद सदस्यों का सबमें सरकार बैकफुट पर नजर आ रही है। लोकायुक्त पद पर न्यायमूर्ति रवीन्द्र सिंह को नियुक्त करने पर सरकार अड़ी है, लेकिन राज्यपाल राम नाईक सरकार से सहमत नहीं हैं। लोकायुक्त के चयन संबंधी फाइल को चौथी बार राजभवन ने आज सरकार को वापस भेज दिया है।
लोकायुक्त के चयन की तय प्रक्रिया का पालन न होने और इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की आपत्ति के चलते राज्यपाल राम नाईक ने जस्टिस रविन्द्र सिंह को लोकायुक्त बनाने के प्रस्ताव पर असहमति जताते हुए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को फाइल लौटाई है। राज्यपाल राम नाईक ने फिर फाइल सरकार को बैरंग लौटा दी है। चार बार फाइल लौटने के बाद लोकायुक्त के चयन पर सरकार तथा राज्यपाल राम नाईक के बीच तकरार फिर बढ़ गई है। फिलहाल न्यायामूर्ति एन के मेहरोत्रा लोकायुक्त का काम देख रहे हैं।
लोकायुक्त नियुक्ति को लेकर उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक और प्रदेश की अखिलेश सरकार के बीच तकरार और बढ़ गई है। राज्यपाल ने लोकायुक्त के पद पर न्यायमूर्ति रविन्द्र सिंह की फाइल सरकार को बैरंग लौटा दी है। फाइल को राज्यपाल ने चौथी बार लौटाया है। सरकार लोकायुक्त के पद पर न्यायमूर्ति रविन्द्र सिंह के नाम पर ही अड़ी है जबकि राज्यपाल ने बीस दिन के अंदर चौथी बार फाइल लौटाकर अपनी असहमति जता दी है। जहां सरकार न्यायमूर्ति रविन्द्र सिंह को लोकायुक्त नियुक्त करने पर अड़ी है, वहीं राज्यपाल राम नाईक का कहना है कि सरकार लोकपाल की नियुक्ति को लेकर सही कानूनी प्रक्रिया नहीं अपना रही है। इस बार राजभवन ने फाइल लौटाने की अभी कोई वजह नहीं बतायी है।
अखिलेश यादव सरकार जब जब सत्ता में आई थी तब भी लोकायुक्त को लेकर तत्कालीन राज्यपाल और प्रदेश सरकार के बीच टकराव की स्थिति बन गई थी, लेकिन वह स्थिति लोकायुक्त के कार्यकाल को छह वर्ष से बढ़ाकर आठ वर्ष करने को लेकर पैदा हुई थी। तब राजभवन ने सरकार की बात मान ली थी और तत्कालीन लोकायुक्त न्यायामूर्ति एन के मेहरोत्रा का कार्यकाल दो साल के लिए बढ़ा दिया गया था।