हिन्दू और जैनियों में लोकप्रिय है माउंट आबू

Mount-Abu
फीचर डेस्क। देशी रेगिस्तान राजस्थान में माउंट आबू मतलब राजस्थान का स्वर्ग। यह राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन है। यह समुद्र तल से 1220 मीटर की ऊंचाई पर नीलगिरी की पहाडिय़ों पर बसा है। माउंट आबू की भौगोलिक स्थित और वातावरण राजस्थान के अन्य शहरों से भिन्न व मनोरम है। यह स्थान राज्य के अन्य हिस्सों की तरह गर्म नहीं है। माउंट आबू हिन्दू और जैन धर्म का प्रमुख तीर्थस्थल है। यहां का ऐतिहासिक मंदिर और प्राकृतिक खूबसूरती सैलानियों को अपनी ओर खींचती है। माउंट आबू हनीमून पॉइंट भी है। फरवरी से जून और सितंबर से दिसंबर के बीच जाना उपयुक्त। निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर यहां से 185 किमी. दूर है। उदयपुर से माउंट आबू पहुंचने के लिए बस या टैक्सी की सेवाएं ली जा सकती हैं। देश के सभी प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा है। दिल्ली के कश्मीरी गेट बस अड्डे से माउंट आबू के लिए सीधी बस सेवा है। राजस्थान रोडवेज की बसें दिल्ली के अलावा अनेक शहरों से माउंट आबू के लिए उपलब्ध हैं। माउंट आबू पहले चौहान साम्राज्य का हिस्सा था। बाद में सिरोही के महाराजा ने इसे राजपूताना मुख्यालय के लिए अंग्रेजों को पट्टे पर दे दिया। ब्रिटिश शासन के दौरान माउंट आबू मैदानी इलाकों की गर्मियों से बचने के लिए अंग्रेजों का पसंदीदा स्थान था। माउंट आबू प्राचीन काल से ही साधु संतों का निवास स्थान रहा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार हिन्दु धर्म के 33 करोड़ देवी-देवता इस पवित्र पर्वत पर भ्रमण करते हैं। कहा जाता है कि महान संत वशिष्ठ ने पृथ्वी से असुरों के विनाश के लिए यहां यज्ञ किया था। जैन धर्म के चौबीसवें र्तीथकर भगवान महावीर भी यहां आए थे। उसके बाद से माउंट आबू जैन अनुयायियों के लिए एक पवित्र और पूज्यनीय तीर्थस्थल बना हुआ है। इन मंदिरों का निर्माण ग्यारहवीं और तेरहवीं शताब्दी के बीच हुआ था। यह शानदार मंदिर जैन धर्म के तीर्थंकरों को समर्पित है। दिलवाड़ा जैन मंदिर परिसर में पांच मंदिर संगमरमर से निर्मित हैं। मंदिरों के लगभग 48 स्तम्भों में नृत्यांगनाओं की आकृतियां बनी हैं। दिलवाड़ा के मंदिर और मूर्तियां मंदिर निर्माण कला का उत्तम उदाहरण हैं। नक्की झील माउंट आबू का एक बेहतरीन पिकनिक स्थल है। कहा जाता है कि एक हिन्दू देवता ने अपने नाखूनों से खोदकर यह झील बनाई थी। इसीलिए इसे नक्की (नख या नाखून) नाम से जाना जाता है। झील से चारों ओर के पहाडिय़ों का नजारा बेहद सुंदर दिखता है। इस झील में नौकायन का भी आनंद लिया जा सकता है। इस मंदिर परिसर में गाय की एक मूर्ति है, जिसके सिर के ऊपर प्राकृतिक रूप से एक धारा बहती रहती है। इसी कारण इस मंदिर को गोमुख मंदिर कहा जाता है। संत वशिष्ठ ने इसी स्थान पर यज्ञ का आयोजन किया था। मंदिर में अरबुआदा सर्प की एक विशाल प्रतिमा है। संगमरमर से बनी नंदी की आकर्षक प्रतिमा को भी यहां देखा जा सकता है। नक्की झील के दक्षिण-पश्चिम में स्थित सनसेट पॉइंट से डूबते हुए सूरज की खूबसूरती को देखा जा सकता है। यहां से दूर तक फैले हरे भरे मैदानों के दृश्य आंखों को सुकून पहुंचाते हैं। सूर्यास्त के समय आसमान के बदलते रंगों की छटा देखने सैकड़ों पर्यटक यहां आते हैं। माउंट आबू से 15 किमी. दूर गुरु शिखर अरावली पर्वत शृंखला की सबसे ऊंची चोटी है। पर्वत की चोटी पर बने इस मंदिर की शांति दिल को छू लेती है। मंदिर की इमारत सफेद रंग की है। यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार दत्तात्रेय को समर्पित है। मंदिर से कुछ ही दूरी पर पीतल की घंटी है जो माउंट आबू को देख रहे संतरी का आभास कराती है। गुरु शिखर से नीचे का दृश्य बहुत की सुंदर दिखाई पड़ता है।