बदल रहा है लखनऊ: किताबों में ही मिलेगी लखनवी तहजीब

Lucknow

सुशील सिंह,
लखनऊ। तहजीब और तमीज के लिए मशहूर नवाबों का शहर लखनऊ तेजी से बदल रहा है। पहले वाली ना तो नफासत है और ना हीबातचीत में वह मिठास जिसके कायल सभी हो जाते थे। लखनऊ जिस रफ्तार से बढ़ रहा है उसका दर्द यहां के पुराने बाशिंदों में है क्योंकि जिस चीज के बारे में उन्होंने कभी सोचा भी ना हो और वही उनकी आंखों के सामने हो रहा हो तो यह कैसे गले उतर सकता है। लखनऊ के बदलने का मतलब सिर्फ यह नहीं है कि यहां बड़ी-बड़ी हवा में इमारतें खड़ी हो गयीं और भोग विलासिता का साधन बढ़ गये। बदलाव की हवा हर जगह है। अदब और तहजीब के शहर में का सबसे बड़ा बदलाव यही है कि यहां की भाषा शैली इतनी खराब हो गयी है कि बाहर से आने वाले लोग बड़े आश्चर्य में पड़ जाते हैं कि क्या यही लखनऊ है जिसके बारे में उन्होंने सुना था। भाषा शैली की तहजीब गायब हो गयी और उसकी जगह तल्खी ने ले ली है। लखनऊ में बाहर से आकर बसने वालों के कारण भी भाषा शैली का गड्डïमड्ड हो गया है। कोई पूरब का है तो कोई पश्चिम। ऐसे में लखनवी पहचान खतम सी हो गयी है। कमोवेश यही हाल अन्य क्षेत्रों में भी है। रहन-सहन और खान-पान सब बदल रहा है। एक समय था जब लोग शाम को चिकन का कुर्ता और पायजामा पहन कर अदब के शहर में होने का गुमान करते थे मगर अब उसकी जगह पश्चिमी कपड़ों ने ली है। जगह-जगह लोग मयखानों और अपने घरों या फिर खुफिया जगहों पर बैठकर मदिरा का सेवन करते थे मगर आज खुलेआम रोड पर लोग रात को इनज्वाय करते मिल जायेंगे। बदलाव इसको कहेंगे। रात में सड़कों पर बाइकरों के खौफ से लोग कांप जाते हैं। गांधी सेतु और जनेश्वर पार्क की ओर जाने वाले ओवरब्रिज पर बाइकरों की रफ्तार देखने वालों की धुकधुकी बढ़ा देती है। शायद इनमें किसी का डर नहीं है यही बदलाव है लखनऊ का। पहले दूसरे की समस्या कम करने के लिए लखनवी जाने जाते थे मगर आज दूसरे को समस्या ज्यादा दे रहे हैं। लखनऊ में जिस तरह से बदलाव की रफ्तार पकड़ी है वह काफी खतरनाक है क्योंकि वह दिन नहीं जब आने वाली पीढ़ी पुराने लखनऊ को सिर्फ किताबों में ही पायेगी।