नेताजी मिस्ट्री: सीक्रेट फाइलों ने उगलना शुरू कर दिया राज

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कोलकाता। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के बारे में उनके भतीजे अमिय नाथ बोस के एक खत से नया खुलासा हुआ है। 1947 में आजादी के दो साल बाद एक रेडियो प्रसारण ने नेताजी के जिंदा होने की उम्मीद बांध दी थी। इस प्रसारण के बाद लोगों में नेताजी को लेकर उत्सुकता बढ़ गई थी। अमिय नाथ ने अपने भाई शिशिर कुमार को लिखे खत में इस प्रसारण का जिक्र किया था।
पश्चिम बंगाल सरकार ने नेताजी से जुड़ी 64 फाइलें शुक्रवार को सार्वजनिक की थी और उनमें फाइल 606-29 में इसका जिक्र है। इस खत में लिखा था कि, पिछले एक महीने से रेडियो पर एक अजीब प्रसारण सुनाई दे रहा है। हमें शॉर्ट वेव पर 16एमएम के पास यह प्रसारण सुनाई पड़ता है। इस प्रसारण में केवल यही आवाज आती है कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ट्रांसमिटर पर बोलना चाहते हैं। घंटों तक यही वाक्य दोहराया जाता रहता है। यह पत्र 18 नवंबर 1949 को लिखा गया था। अमिय ने पत्र में लिखा है कि, हमें नहीं पता कि यह प्रसारण कहां से आ रहा है क्योंकि इसकी घोषणा नहीं की जा रही है। इसे कोलकाता की स्पेशल पुलिस ब्रांच ने बीच में ही रोक लिया था। शिशिर उस समय लंदन में मेडिसिन की पढ़ाई कर रहे थे जबकि अमिय कोलकाता में थे। 64 फा इलों में बोस परिवार के 1970 तक के पत्र और उनकी गतिविधियों के गुप्त सर्वे भी शामिल हैं।

कहां गया नेताजी का खजाना
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की जासूसी कराने के खुलासे के बाद अब आजाद हिंद फौज की रकम को लेकर नई जानकारी सामने आई है। एक अंग्रेजी वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार आजाद हिंद फौज के लिए नेताजी ने काफी रकम इक_ी की थी जिसमें नकदी के अलावा 100 किलो सोना और जेवर भी शामिल थे। लेकिन 1945 में नेताजी की मौत के बाद इस धन को गायब कर दिया गया और तत्कालीन सरकार को भी इस बारे में जानकारी थी। लेकिन सरकार ने इस पर आंखें मूंद ली। वेबसाइट ने गोपनीय दस्तावेजों के आधार पर दावा किया कि, तत्कालीन जवाहरलाल नेहरू सरकार को इस बारे में टोक्यों से तीन बार चेतावनी जारी की गई थी। इसके अनुसार विदेश मंत्रालय में अधिकारी आरडी साठे ने नेहरू को पत्र लिखकर बताया था कि बोस ने वियतनाम के सेगोन शहर में काफी मात्रा में सोना और कीमत जवाहरात छोड़ दिए हैं। इस खजाने को कुछ लोग गायब भी कर चुके हैं। लेकिन इन सभी चेतावनियों को नजरअंदाज किया गया। किसी तरह की जांच के आदेश नहीं दिए गए। यहां तक खजाने को गायब करने के संदिग्ध व्यक्ति को आरामदायक नौकरी भी दी गई। वेबसाइट के अनुसार इस मामले से जुड़ी फाइलें प्रधानमंत्री दफ्तर के पास है और लगभग एक दशक से सरकार इन्हें सार्वजनिक करने से इनकार कर रही है। इनमें लिखा है कि 29 जनवरी 1945 को बोस को उनके48वें जन्मदिन पर रंगून में वजन के बराबर सोने से तोला गया था। उस सप्ताह दो करोड़ रूपये से ज्यादा का दान इक_ा किया गया था, जिसमें 80 किलो सोना भी शामिल था। लेकिन ब्रिटिश सेना के बर्मा में बढ़ते कदमों के चलते 24 अप्रेल को नेताजी 63.5 किलो खजाना छोड़कर बैंकॉक चले गए। 15 अगस्त 1945 को जापान ने मित्र राष्ट्रों के सामने समर्पण कर दिया।
नेताजी के साथी हबीबुर ने 1956 में शाहनवाज कमिटी के सामने बताया था कि, इसके बाद नेताजी एक जापानी विमान में सवार होकर रूस के लिए रवाना हो गए। इसी दौरान कथित तौर पर विमान क्रैश हो गया और इस दौरान सोने से भरे दो लैदर बैग भी नष्ट हो गए। बाद में जापानी सेना ने बिखरे हुए सोने को इक_ा किया और इसे सीलबंद सैन्य मुख्यालय में जमा किया था।
भारत सरकार ने इस खजाने में पहली बार 1951 में रूचि दिखाई। उस समय के जापान में भारतीय मिशन के प्रमुख केके चेत्तूर ने सरकार को एक के बाद एक कई जानकारियां दी। उन्होंने ही पहली बार इसे आईएनए खजाना कहा। इसके बाद जापान में नियुक्त किए गए भारतीय मिशन के प्रमुखों ने इस बारे में कई खत भेजे। उन्होंने आजाद हिंद फौज के पब्लिसिटी मिनिस्टर एसए अय्यर और एम रामामूर्ति पर इस खजाने को दबाने का आरोप लगाया। लेकिन इन सब बातों को नजरअंदाज कर दिया गया। 1953 में अय्यर को पंचवर्षीय आयोग में सलाहकार नियुक्त किया गया।