कितना भला करेगी स्टार्टअप कल्चर

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पुष्परंजन। प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा के बारे में पहले अच्छी-अच्छी बातें कर लें। मोदी जी के मित्र बराक ओबामा ने दो टूक कह दिया कि मसला-ए-कश्मीर भारत-पाक मिलकर ही सुलझाएं। पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर को लेकर जो गुब्बारे फुलाये थे, उनकी हवा निकल गई। मोदी जी ने संयुक्त राष्ट्र में इसका संकल्प लिया कि विश्व को हम स्वच्छ वातावरण देंगे। ऐसा पहली बार हुआ कि हमारे देश के प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र में ऐलान किया कि भारत में कोयले पर कर दोगुना कर देंगे। यानी, देश में कोयला महंगा होगा, तो उससे पैदा बिजली भी महंगी होगी, उससे मिले पैसे से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन का जुर्माना भरेंगे। प्रधानमंत्री मोदी इस बार भी राजनीति के रॉक स्टार साबित हुए। न्यूयार्क से कैलीफोर्निया तक मोदी-मोदी के खूब नारे लगे। अमेरिका के सैन जोस में कोई 18 हजार लोगों ने दमदार तरीके से पीएम मोदी का स्वागत किया। मोदी ने इस बार नया नारा दिया है-भारत में स्टार्टअप कल्चर को विकसित करना है। गांव की गली से लेकर दिल्ली तक किसी आम आदमी से पूछिएगा कि स्टार्टअप किस चिडिय़ा का नाम है, तो वह बगलें झांकता मिलेगा।
स्टार्टअप से सीधा मतलब है, छोटे से व्यापार की शुरुआत कीजिए, और उद्योग की दुनिया में छा जाइये। अमेरिका में प्रोडक्ट, सर्विसेज, टेक्नोलॉजी, मार्केटिंग जैसे क्षेत्र में नये आइडियाज के साथ जो लोग उतर रहे हैं, उसे स्टार्टअप कहा जाने लगा है। ऐसा माना जाता है कि इस समय अमेरिका में दो-तिहाई नौकरियां स्टार्टअप के कारण लोगों को मिली हुई हैं। सिलिकॉन वैली के सीरियल उद्यमी और अकादमिशियन स्टीव ब्लांक और बॉब डोर्फ ने स्टार्टअप की अवधारणा विकसित की थी, और गूगल, अमेजन, उबेर जैसी कंपनियों के विश्वव्यापी बनने को एक नजीर के रूप में प्रस्तुत करने का काम किया था।
इस बार मोदी जी की भाषा सिलिकॉन वैली जाते ही बदल गई। मेक इन इंडिया का नारा अब पुराना हो चला है। उसकी जगह अब स्टार्टअप ने ले ली है। प्रधानमंत्री पूरे यकीन के साथ बोल चुके हैं कि स्टार्टअप कल्चर के कारण देश में नई नौकरियों का अवसर मिलेगा, और भारत विकास की ओर राकेट की रफ्तार से बढ़ेगा। सिलिकॉन वैली के सेंट जोस के स्पोट्र्स अरीना में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि स्टार्टअप केवल व्यावसायिक सफलता की कहानियां नहीं हैं, बल्कि सामाजिक नवाचार के शक्तिशाली उदाहरण भी हैं। ऐसा आकलन किया जा रहा है कि स्टार्टअप के कारण देश में दस लाख युवाओं को रोजगार के अवसर मिलेंगे।
नास्कॉम द्वारा आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा-जिस गति से भारत के लोग डिजिटल तकनीकों को अपना रहे हैं, वह उम्र, शिक्षा, भाषा और आय के सभी घिसे-पिटे विचारों को झुठलाता है। मोदी जी की इस यात्रा में गूगल ने भारत के 500 रेलवे स्टेशनों पर मुफ्त वाई फाई की व्यवस्था कर इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध कराने पर सहमति दे दी है। माइक्रोसाफ्ट ने देश के पांच लाख गांवों को सस्ता ब्राड बैंड पहुंचाने का वादा किया है। प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा की ये तमाम उपलब्धियां हैं।
सवाल यह है कि गूगल और माइक्रोसाफ्ट जैसी कंपनियां जिस तरह से भारत में अपने कारोबार का विस्तार करने जा रही हैं, उनमें क्या मेक इन इंडिया कार्यक्रम का अब कोई काम है? न्यूयार्क से लेकर कैलीफोर्निया तक मीडिया मालिक, कार निर्माता, साफ्टवेयर दिग्गज हर कोई मोदी जी को महान बनाने के लिए कसीदे पढ़ रहा है। रूपर्ट मर्डोक ने उन्हें आज़ादी के बाद से अब तक का सर्वश्रेष्ठ नेता बताया। सिस्को प्रमुख जॉन चेंबर्स उन्हें भारत का बेजोड़ राजदूत बता रहे थे। मोदी जी इसे सहर्ष स्वीकार करते समय भूल गये कि अटल बिहारी वाजपेयी जैसा प्रधानमंत्री भी उनकी पार्टी ने इस देश को दिया था। न्यूयार्क में दिग्गज कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों ने मोदी जी को सलाह दी है कि आर्थिक सुधारों को रफ्तार दें। इन सीईओज ने कहा कि आप जो भी कर रहे हैं, करते रहिए। लेकिन थोड़ा तेजी से करिये। मोदी जी ने उन सुझावों को सिर-आंखों पर लिया है।
मोदी जी को फील गुड कराकर फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्ग ने जितनी पब्लिसिटी हासिल की है, उस पर गौर करना चाहिए। यों मोदी जी अपने देश में पत्रकारों को इंटरव्यू देने से कतराते हैं, लेकिन मंच पर मार्क के सवालों का जवाब देने में उन्हें सहजता महसूस हो रही थी। फेसबुक ने अपने यूजर्स के 40 हजार सवालों में से एक भी मुश्किल प्रश्न को मोदी जी के लिए नहीं चुना, जो बेरोजगारी, धार्मिक आजादी में अवरोध, धर्म-जाति के आधार पर भेदभाव, खान-पान पर रोक और मोदीगेट पर प्रधानमंत्री की चुप्पी को लेकर भेजे गये थे। बल्कि मार्क जुकरबर्ग टाउनहाल इंटरव्यू के कारण हिट हो गये, जब मोदी से उनकी मां से संबंधित सवाल पूछा था। क्या यह सब कुछ प्रायोजित था? जुकरबर्ग ने अपनी प्रोफाइल पिक्चर में भारत के राष्ट्रध्वज के रंगों का इस्तेमाल कर नये विवाद को जन्म दे दिया है। मुफ्त में प्रचार का इससे अच्छा माध्यम क्या हो सकता है?
लेकिन जुकरबर्ग ने एक बात पते की कही है कि भारत में अब भी एक अरब लोग इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। मुराद यह कि मोदी जी के कार्यकाल में एक अरब का पचास प्रतिशत भी इंटरनेट यूजर्स हो जाएं, तो देश की तस्वीर दूसरी होगी। आभासी दुनिया, यानी वर्चुअल वल्र्ड से देश की सारी समस्याओं का निदान होगा। तब फेसबुक जैसी कंपनियां अपने विस्तृत प्लेटफार्म पर दिग्गज निर्माताओं के उत्पादों का प्रचार करेंगी, और भारत के छोटे उत्पादक इनके मुकाबले खड़े नहीं हो पायेंगे। कुछ दिन पहले इसी फेसबुक ओआरजी द्वारा नियमों की अनदेखी को लेकर विवाद हुआ था, लेकिन अब सब कुछ ठीक चलने लगा है।
अमेरिका में डिजिटल व्यापार के लिए मैन पावर भले ही भारतीय हों, लेकिन उनके मालिक गोरे ही हैं। क्या यही भारत में होने जा रहा है? क्या देश में बिजली, पेयजल, स्वास्थ्य, शिक्षा, यातायात, किसानों की आत्महत्या, भ्रष्टाचार, अपराध जैसी समस्याएं स्टार्टअप कल्चर के आने से सुधर जाएंगी? सवाल यह है कि हम जाने-अनजाने डिजिटल गुलामी की ओर तो नहीं बढ़ रहे हैं? जिस दिन प्रधानमंत्री न्यूयार्क पहुंचे, उसी दिन चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग वाशिंगटन में थे। शी से भी इन सारी कंपनियों के मालिकानों ने संपर्क किया था, लेकिन चीन का रवैया संतुलित था। चीन के साइबर क्षेत्र में खुद का कंट्रोल है, उसकी नेटवर्किंग साइट वाइबो किसी और की एंट्री होने नहीं देती। फेसबुक को तो चीन ने अपने देश में कदम तक नहीं रखने दिया है!