दलित एसआई के रिर्जवेशन पर उपभोक्ता परिषद ने किया बड़ा खुलासा

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लखनऊ। आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति द्वारा पदोन्नति बिल को लोकसभा से पास कराने के लिए चलाये जा रहे आन्दोलन को व्यापक रूप देते हुए पुलिस विभाग में सब इंस्पेक्टरों की पदावन प्रक्रिया पर बड़ा खुलासा किया है। गौरतलब है कि प्रदेश में जिन 212 दलित सब इंस्पेक्टरों को रिवर्ट करके हेड कांस्टेबल व सिपाही बनाया गया है। यह सभी नियुक्तियां विभागीय परीक्षा के आधार की गयी थीं और यह मामला उच्च न्यायालय से लेकर सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ के सामने भी गया था। जिस पर सिविल अपील सं या-6549/2014 में 11 मई 2015 को सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ द्वारा अपना फैसला सुनाते हुए इस पूरी पदोन्नति प्रक्रिया को संवैधानिक करार दिया गया था। परीक्षा के माध्यम से 1176 सब इंस्पेक्टर की नियुक्ति की गयी थी, जिसमें अनुसूचित जाति/जनजाति के कुल 262 सब इंस्पेक्टर चयनित हुए थे, जिसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा वैध माना गया था। ऐसे में पुलिस विभाग के उच्चाधिकारियों द्वारा इन सब पहलुओं को नजरअंदाज करते हुए दलित पुलिस कर्मियों को महज इसलिए रिवर्ट किया गया क्योंकि वह अनुसूचित जाति/जनजाति संवर्ग से आते हैं।
आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक के संयोजक अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि जिस तरीके से पुलिस विभाग में सब इंस्पेक्टरों को रिवर्ट करने के मामले में पुलिस विभाग द्वारा जल्दबाजी करते हुए रिवर्ट करने का निर्णय लिया गया है, वह पूरी तरह असंवैधानिक है। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि सब इंस्पेक्टरों की भर्ती प्रक्रिया में जो मुख्य मानक पुलिस विभाग की नियमावली में प्राविधानित है, उसमें सिविल पुलिस के वे सभी हेड कांस्टेबल,कांस्टेबल व पीएसी, जीआरपी, फायर सर्विस व अन्य संवर्गो के समतुल्य पुलिस कर्मी जिनकी सेवा 3 वर्ष या अधिक एवं आयु अधिकतम 40 वर्ष है, वही इस परीक्षा में बैठने के पात्र हैं। नेताओं ने कहा कि पूरे प्रदेश में सभी विभागों में दलित कार्मिकों का मनमाने तरीके से उत्पीडऩ किया जा रहा है, लेकिन पुलिस विभाग में दलित उत्पीड़ऩ यह जो मामला सामने आया है, यह सबसे अलग है। उन्होने प्रदेश के मुख्यमंत्री से मामले पर हस्तक्षेप करते हुए दलित पुलिस कर्मियों को न्याय दिलाने की मांग की है।