पटना। बिहार चुनाव में दो गुटों के बीच घमासान है। एक गुट राजग का है तो दूसरा महागठबंधन है। इन दोनों के अलावा तीसरा गुट यानि मुलायम सिंह की पार्टी सपा और असुदद्दीन की पार्टी एमआईएम पसंघा नजर आ रही है। मुलायम और ओवैसी भले ही यूपी में एक दूसरे के परम विरोधी हो मगर बिहार में एक चीज दोनों साथ-साथ कर रहे हैं वह है वोटकटवा की भूमिका। दोनों की हालत एक जैसी है। पहले तो मुलायम की पार्टी महागठबंधन में शामिल थी मगर जब सीटों का बंटवारा हुआ तो सपा को नीतीश और लालू ने हल्के में ले लिया और इतनी कम सीटें दीं कि मुलायम नाराज हो गये। मुलायम की नाराजगी इतनी बढ़ी कि वे महागठबंधन से अलग हो गये और खुद ही मैदान में अकेले चुनाव लडऩे के लिए निकल पड़े। 11 अक्टूबर से मुलायम बिहार में चुनावी धार को तेज करेंगे और धुंआधार प्रचार करेंगे। मुलायम के बिहार चुनाव के लिए दौरे का खाका भी तैयार हो गया है। मुलायम चाहते हैं कि बिहार में इतनी सीटें जीत ली जायें कि वह बारगेनिंग करने की क्षमता में आ जायें और फिर भाजपा और नीतीश दोनों को सबक सिखा सकें। मुलायम का वोटबैंक मुस्लिमों को माना जाता है और उनकी नजर भी वहीं है मगर इसी वोट को एमआईएम के सुप्रीमो ओवैसी भी अपने पाले में करने के लिए प्रयास कर रहे हैं। भले ही ओवैसी केवल 6 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं ूूमगर उनकी पार्टी का मानना है कि इन सीटों का संदेश पूरे बिहार में जायेगा और इसका फायदा भी मिलेगा। मुलायम का दर्द यह है कि महागठबंधन में उनको अपमान अपनों से मिला क्योंकि लालू और मुलायम रिश्तेदार भी हैं। ऐसे में इस अपमान का बदला लेने के लिए वह पूरा जोर लगा रहे हैं। उनके पुत्र और यूपी के सीएम अखिलेश यादव भी कह चुके हैं कि वह बिहार में युवाओं को साइकिल के जरिये जोड़ेंगे। बिहार में कई सीटें ऐसी है जहां पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब 40 फीसदी तक है और कहीं 20 और 25 फीसदी है। इन सीटों पर मुलायम की खास नजर है और यूपी का संदेश वह बिहार में भी देना चाहते हैं जहां अकलियतों की हितैषी केवल सपा ही है। रही बात ओवैसी की तो इनका जनाधार तो कुछ नहीं है मगर जिस प्रकार सोशल मीडिया और बयानों के आधार पर वह सुर्खियों में हैं उससे चुनाव में कुछ फर्क पड़ सकता है। आवैसी भले ही सीटें न जीतें मगर जीतने वाले को हरा सकते हैं।