भाजपा व कांग्रेस की अतिपिछड़े वर्ग को पटाने पर लगी नजर

Congress-BJP

सी. लाल। भाजपा लोक सभा चुनाव-2014 में अतिपिछड़े वर्ग की बदौलत लोक सभा के चुनाव में 80 में से सहयोगी अपना दल की दो सीटों सहित 73 सीटों पर अप्रत्याशित जीत हासिल करने के बाद अतिपिछड़ों को अपने पाला में मजबूती के साथ जोड़े रखने की हर कवायद में जुटी हुयी है। वहीं कांग्रेस भी सारा टोटका करने के बाद किसी अतिपिछड़े वर्ग को प्रदेश अध्यक्ष की बागडोर सौंप कर अपने जनाधार में वृद्धि का रास्ता तलाश रही है। कांग्रेस के 17 अगस्त के सपा सरकार विरोधी प्रदर्शन में जुटी भीड़ से उनके नेताओं का मनोबल बढ़ा है फिर भी वर्तमान में कांग्रेस के साथ कोई ठोस जातिगत आधार न होने से पार्टी काफी कमजोर स्थिति में है। भाजपा व कांग्रेस दोनों दलों को सवर्णो और बनियों की पार्टी कहकर बदनाम किया जाता रहा है परन्तु वर्तमान राजनीतिक परिवेश में दोनेां दलों के लिए अतिपिछड़े वर्ग की अहमियत बढ़ गयी है। कांग्रेस ने पूर्व में लम्बे अन्तराल के बाल श्री प्रकाश जायसवाल को उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाकर पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ पटाने के कोशिश किया, पर कांग्रेस को इसका कोई लाभ नहीं मिला, कारण कि जायसवाल को पिछड़ा वर्ग पिछड़ा नहीं माना और न ही प्रदेश में कलवार जयसवाल का कोई मजबूत जनाधार है। उत्तर प्रदेश की जातीय समीकरण में पिछड़े वर्ग की जनसंख्या में कलवार मात्र 0.72 प्रतिशत हैं। ऐसी स्थिति में कांग्रेस प्रदेश की राजनीति को प्रभावित करने वाले किसी अतिपिछड़े/अत्यन्त पिछड़े निषाद, पाल, लोधी, कुर्मी को यह जिम्मेदारी देकर अपने जनाधार को बढ़ाना चाह रही है। उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी का प्रदेश प्रभारी गुजरातीय अतिपिछड़े वर्ग (विश्वकर्मा) के मदूसूदन मिस्त्री को तो बनाया परन्तु उप्र के सामाजिक समीकरण में ये अपनी जातिगत पहचान नहीं बना पाये।
पार्टी सूत्र बताते है कि आला कमान को पटाने के लिए श्री श्रीप्रकाश जायसवाल गुणागणित बैठाने में लगे हैं वहीं बेनी प्रसाद वर्मा व आरपीएन सिंह भी प्रदेश अध्यक्ष के दौड़ में शामिल है। निर्मल खत्री को प्रदेश अध्यक्ष बनाने से कांग्रेस को कोई लाभ नहीं मिला ऐसे में इनके वारिस के तौर पर किसी ब्राह्मण या अतिपिछड़े, अत्यन्त पिछड़े को आगे कर विधान सभा चुनाव 2017 में वोट बैंक बढ़ाने की चिन्ता में पार्टी हाई कमान मंथन कर रहा है। ब्राह्मण चेहरे में औरंगाबाद कोठी के पण्डित राजेशपति त्रिपाठी या जतिन प्रसाद के नाम पर विचार चल रहा है। वहीं भाजपा को जवाब देने के लिए पार्टी नेतृत्व व प्रदेश प्रभारी मिस्त्री किसी अतिपिछड़े दाव खेलने का मन बनाये हैं। कांग्रेस के अगले अध्यक्ष के लिए जिन लोगों का चर्चा में है उसमें रूद्रपुर के विधायक व राष्ट्रीय प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह, पूर्व राज्यमंत्री आर0पी0एन0 सिंह (मल्ल/कुर्मी) पार्टी सूत्र बताते हैं कि पार्टी इस बार नई केमिस्ट्री पर घमभीर है।
उत्तर प्रदेश के जातीय समीकरण में मल्ल/कुर्मी/सैन्थवार 7.56 प्रतिशत, लोधी राजपूत/किसान-6.06, निषाद/मछुआरा-12.91 प्रतिशत तथा पाल/गड़ेरिया-4.3 प्रतिशत की संख्या बल में है, इस पार्टी इन्हीं नामों में से किसी को आगे कर सकती है। वैसे पार्टी सूत्र बताते हैं कि पाल या निषाद पर पार्टी हाई कमाल मोहर लगा सकता है। अतिपिछड़े/अत्यन्त पिछड़ों में पूर्व सांसद राजाराम पाल, मछलीशहर से लोक सभा प्रत्याशी तूफानी निषाद, पार्टी प्रवक्ता राजेन्द्र राजपूत का नाम भी तेजी से चल रहा है।
दूसरी तरफ भाजपा खेमे में भी विधान चुनाव-2017 के लिए काफी गम्भीरता से नये प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर विचार चल रहा है। लोक सभा चुनाव भाजपा के जनाधार में गिरावट आई है, ऐसे में पार्टी नेतृत्व अतिपिछड़ों को अपने पाले में पुन: लाने के लिए विचार मंथन में डूबी हुयी है। मोदी-अमितशाह फार्मूला के तहत किसी अतिपिछड़े को ही प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने की पूरी सम्भावना है। वैसे जहां तक आकलन है कि अतिपिछड़ा वर्ग सपा के तुच्छ जातिवाद व परिवारवाद से खासा नाराज है ऐसे में भाजपा नेतृत्व के चिन्ता इस बात की है कि कहीं यह वर्ग बसपा के पाल में न चला जाये। वह भाजपा अतिपिछड़ों को पटाने के लिए कवायद में जुटी हुयी है। वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी का कार्यकाल जल्दी ही खत्म होने वाला है, उनके कारण पार्टी के अन्दर खासा नाराजगी है, अतिपिछड़ों की जातिगत व वर्गीय ताकत को देखते हुए भाजपा नेतृत्व किसी जनाधार वाले नेता को अध्यक्ष पद की कमान सौंप कर मिशन-2017 पर लगाना चाहता है। पार्टी के अन्दर चर्चा है कि झांसी की सांसद व केन्द्रीय मंत्री उमा श्री भारती, फतेहपुर से जीत कर राज्यमंत्री बनी निरंजन ज्योति फूलपुर के सांसद केशव प्रसाद मौर्य, विधायक धर्म पाल सिंह लोधी, पूर्व संगठन मंत्री प्रकाश पाल, प्रदेश महामंत्री व चुनाव के समय कई रैलियों का संयोजन कर चुके स्वतंत्र देव सिंह में से किसी के नाम पर सहमति बन सकती है। वैसे इनमें से धर्म पाल सिंह व प्रकाश पाल काफी अव्वल साबित हो सकते हैं। प्रकाश पाल अपनी मिलन सारिता के बदौलत सभी वर्गों में अच्छा स्थान तो रखते ही हैं अतिपिछड़ो वर्ग में पूरे प्रदेश के अन्दर इनकी अच्छी शाख व पकड़ है।
उत्तर प्रदेश की वर्तमान राजनीति व जातिगत समीकरणों को देखते हुए प्रकाश पाल व धर्म पाल सिंह लोधी, मे से किसी के नाम पर सहमति बन सकती है। सामाजिक चिन्तक व अतिपिछड़े वर्ग के प्रखर नेता चैधरी लौटन राम निषाद ने स्पष्ट तौर पर कहा कि अब अतिपिछड़ों की उपेक्षा किसी भी पार्टी के लिए बेईमानी होगी। अब अतिपिछड़ा 80-90 के दशक का समाज नहीं है, अब यह सामाजिक न्याय व राजनीतिक भागीदारी के लिए काफी सजग हुआ है। अतिपिछड़ी व अत्यन्त पिछड़े वर्ग में जातिगत व वर्गीय चेतना जागृत हुयी है। कांग्रेस के पाले में तो अतिपिछड़ों का जाना फिलहाल असम्भव ही दिख रहा है। 17 अतिपिछड़ी जातियों व निषाद मछुआरों के आरक्षण मुद्दे पर कांग्रेेस ने कई वर्षों तक दौड़ाने के बाद भी कोई निर्णय नहीं लियाहै। बकौल निषाद – विधान सभा चुनाव 2017 में सत्ता की चाभी अत्यन्त पिछड़े वर्ग के ही हाथ में होगी क्येांकि उत्तर प्रदेश की राजनीति में 34 प्रतिशत से अधिक संख्या रखने वाले अत्यन्त पिछड़ा वर्ग ही राजनीतिक दलों का भाग्य विधाता बनेगा। अतिपिछड़ों का जिसको साथ मिलेगा, उत्तर प्रदेश में उसी पार्टी की सरकार बनेगी।

राजनीतिक विशलेषक स्वतंत्र टिप्पणीकार