मिसाइलरोधी स्वदेशी सुरक्षा कवच

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एलएस यादव। भारत ने हाल ही में स्वदेश में विकसित सुपरसोनिक इंटरसेप्टर मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया। यह मिसाइल शत्रु की तरफ से आने वाली किसी भी बैलिस्टिक मिसाइल को बीच में ही ध्वस्त करने में सक्षम है। ओडिशा के धामरा के अब्दुल कलाम द्वीप पर इस मिसाइल को जैसे ही शत्रु की मिसाइल के आने का संकेत मिला, वैसे ही इसने उसे हवा में दो किलोमीटर की अंत:वायुमंडलीय ऊंचाई पर इलेक्ट्रॉनिक लक्ष्य को सफलतापूर्वक भेदते हुए नष्ट कर दिया।
परीक्षण के बाद डीआरडीओ के वैज्ञानिकों ने बताया कि परीक्षण के नतीजों का अध्ययन किया जा रहा है। इस इंटरसेप्टर को एडवांस एयर डिफेंस (एएडी) मिसाइल के नाम से जाना जाता है। यह मिसाइल पूरी तरह से भारत में बनी है। इसे डीआरडीओ ने विकसित किया है। डीआरडीओ का यह 11वां परीक्षण है। इससे पहले अप्रैल माह का परीक्षण कामयाब नहीं रहा था। लांचिंग के कुछ सेकेंड बाद यह मिसाइल बंगाल की खाड़ी में जा गिरी थी। इस बार के सफल परीक्षण से भारत का एयर डिफेंस सिस्टम मजबूत हुआ है। यह तकरीबन साढ़े सात मीटर लम्बी है। फिलहाल यह मिसाइल 2000 किलोमीटर तक हवा में मार करने में सक्षम है। भविष्य में इसे अपग्रेड किया जाएगा।
इस तरह भारत बहुस्तरीय बैलेस्टिक मिसाइल रक्षा तंत्र को विकसित करने की दिशा में धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है। इससे पहले 27 अप्रैल 2014 को उसने इस रक्षा तंत्र के विकास में एक कामयाबी हासिल करते हुए इन्टरसेप्टर मिसाइल का सफल परीक्षण किया था। इस परीक्षण में पृथ्वी डिफेन्स व्हीकल (पीडीवी) की मदद से मिसाइल द्वारा लक्ष्य को मार गिराया गया था। बंगाल की खाड़ी में एक जहाज से छोड़े गए लक्ष्य को भेदा गया। इससे यह पुष्टि हुई थी कि भारत इस मिसाइल की सहायता से पृथ्वी की कक्षा से बाहर लक्ष्य को भेद सकेगा। इस मिसाइल तंत्र का यह आठवां परीक्षण था।
परीक्षण के बाद डीआरडीओ की तरफ से जानकारी दी गई थी कि पीडीवी की मदद से पृथ्वी के वायुमंडल से ऊपर तकरीबन 120 किलोमीटर तक लक्ष्य को भेदा जा सकेगा। यह कारनामा तकरीबन 2000 किलोमीटर तक की दूरी से आने वाली किसी भी शत्रु की मिसाइल के खिलाफ सम्भव हो सकेगा। रेडार पर आधारित इस प्रणाली में लक्ष्य को खोजने का कार्य उससे मिलने वाले डाटा से किया जाता है। पृथ्वी के वातावरण से बाहर जाते ही हीट शील्ड निकलती है और इन्फ्रारेड सीकर खुल जाता है। तब लक्ष्य को निशाने पर लिया जाता है। यह मिसाइल नौवहन प्रणाली, एक अत्याधुनिक कम्यूटर और एक इलेक्टो-मैकेनिकल एक्टिवेटर से लैस है। इसे दिल्ली व मुम्बई की सुरक्षा में लगाया जा सकता है।
23 नवम्बर 2012 को ओडिशा के तट से कुछ ही दूर अभ्यास के तौर पर आवाज की रफ्तार से भी तेज अर्थात सुपरसोनिक इंटरसेप्टर मिसाइल का सफल परीक्षण किया गया था। तब चांदीपुर से 70 किलोमीटर दूर स्थित व्हीलर द्वीप से इंटरसेप्टर मिसाइल ने रेडार से संकेत मिलते ही तकरीबन चार मिनट में ही हवा में आने वाली पृथ्वी मिसाइल को समुद्र के ऊपर आसमान में लगभग 15 किलोमीटर की ऊंचाई पर अपने निशाने में लेकर ध्वस्त कर दिया था। इस तरह का यह सातवां परीक्षण था।
इससे पहले 10 फरवरी 2012 को भारतीय वैज्ञानिकों ने मिसाइलरोधी सुरक्षा प्रणाली का शानदार छठा सफल परीक्षण किया था। इस मिसाइलरोधी परीक्षण को ओडिशा के समुद्र तट पर दो स्थानों से संचालित किया गया। परीक्षण के दौरान दुश्मन मिसाइल के रूप में पृथ्वी मिसाइल का इस्तेमाल करते हुए इसे प्रक्षेपण स्थल-3 से एक मोबाइल लांचर से दागा गया। इसके ठीक तीन मिनट बाद चांदीपुर से लगभग 70 किलोमीटर दूर व्हीलर द्वीप पर तैनात इंटरसेप्टर एडवांस्ड एयर डिफेन्स मिसाइल को समुद्र तटीय रेखा के किनारे पर लगे रेडारों से संकेत मिले और इसने दुश्मन मिसाइल पृथ्वी को ध्वस्त करने के लिए उड़ान भरी। इस मिसाइल ने समुद्र से तकरीबन 15 किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी मिसाइल का रास्ता रोका और उसे ध्वस्त कर दिया।
विदित हो कि शत्रु की किसी भी हमलावर मिसाइल को जमीन पर गिरने से पहले उड़ान के दौरान आसमान में ही उसे नष्ट कर देने वाली मिसाइल को इंटरसेप्टर मिसाइल कहा जाता है। दुश्मन की आक्रामक मिसाइलों के खतरे से निपटने के लिए अभेद्य कवच विकसित करने के प्रयास सन् 1999 में प्रारम्भ कर दिए गए थे। इसका परिणाम सन् 2006 में तब सामने आया जब 27 नवम्बर को इसका प्रथम सफल परीक्षण किया गया। इसे बाद 6 दिसम्बर 2007 एवं 6 मार्च 2009 को इसके दूसरे व तीसरे सफल परीक्षण हुए। इंटरसेप्टर मिसाइल के संशोधित स्वरूप का अगला परीक्षण 14 मार्च 2010 को व्हीलर द्वीप से किया जाना था, लेकिन मिसाइल की उपप्रणाली की तकनीकी खामियों के कारण इसे टाल दिया गया था। फिर 15 मार्च, 2010 को परीक्षण के समय पृथ्वी मिसाइल अपने पूर्व निर्धारित पथ से भटक गई, जिससे वैज्ञानिकों को अंतिम समय में परीक्षण टालना पड़ा। इसके बाद 26 जुलाई 2010 एवं 6 मार्च 2011 के चौथे व पांचवें परीक्षण सफल रहे थे।
इस सुरक्षा प्रणाली सिस्टम में शत्रु की तरफ से आ रही हमलावर मिसाइल को पहले रेडार या अन्य उपकरण पकड़ते हैं। इसके बाद इसके संकेत सिस्टम इंटरसेप्टर को जानकारी देते हैं। फिर इंटरसेप्टर तेज गति से आगे बढ़कर शत्रु की मिसाइल को ध्वस्त करती है। 7.5 मीटर लम्बी इंटरसेप्टर एक चरणीय ठोस रॉकेट प्रोपेल्ड निर्देशित मिसाइल है। इसमें उन्नत किस्म की इंटीरियल नैवीगेशन प्रणाली लगी है जो इसे सही दिशा देने और उसमें जरूरत के हिसाब से बदलाव करने में सक्षम है। इसे मोबाइल लांचर से भी छोड़ा जा सकता है। इसलिए युद्धकाल में इस मिसाइल की क्षमता और भी बढ़ जाती है। इस मिसाइल को द्विस्तरीय बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा प्रणाली (बीएमडी) की योजना के तहत विकसित किया गया है।
अभी तक मिसाइल रोधी तकनीक अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, इटली व इस्राइल के पास है। अब भारत भी इस सूची में जुड़ गया है। भारत की बैलिस्टिक मिसाइल सुरक्षा व्यवस्था (बीएमडी)आने वाले कुछ वर्षों में तैयार हो जाएगी। बैलिस्टिक मिसाइल का सुरक्षा रेडार एक साथ 200 लक्ष्यों को सरलता से पकडऩे में सक्षम है। बीएमडी सिस्टम अत्याधुनिक होने के कारण अमेरिका की पैट्रियाट पैक-3 मिसाइल सिस्टम से काफी बेहतर है। इसलिए ये बैलिस्टिक मिसाइलें पाकिस्तान की हत्फ श्रेणी की मिसाइलों तथा चीन की डोंगफोंग व जुलेंग मिसाइलों को नष्ट करने की क्षमता रखती हैं। बीएमडी सिस्टम के तैयार होने के बाद यदि इसे चीन व पाकिस्तान से लगने वाली सीमा पर तैनात किया गया तो इन देशों की तरफ से आने वाली हमलावर मिसाइलों को ध्वस्त करना आसान हो जाएगा।