क्या संघ उबार सकेगा उप्र भाजपा को

rss-app.लखनऊ मार्च। उप्र में भाजपा विधानसभा आम चुनाव के दस महीने पहले ही लस्तपस्त नजर आ रही है। प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर पिछले छह महीनों से अटकल बाजी का दौर चल रहा है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की रणनीति भी हवा में है। कार्यकर्ता पूछ रहें है कि क्या संघ के एजेंडे में उप्र भाजपा नही है। खुद को नेता तैयार करने की फैक्ट्री होने का दावा करने वाले इस संगठन के पास प्रदेश अध्यक्ष और राज्य के लिए मुख्यमंत्री पद के लिए न तो नाम है न चेहरा। भाजपा की फजीहत घर से लेकर घाट तक हो रही है। पार्टी की रीतिनीति पुराने जमाने की कांग्रेस जैसी हो गई है। हालात ऐसे है कि पार्टी के आधा दर्जन महामंत्री दिल्ली में डेरा डाले हुए। प्रदेश प्रभारी मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष को बैठकों में नही बुला रहें है।
उप्र में भाजपा ने चुनावी युद्ध के पहले ही हथियार डाल दिये है। पार्टी के कार्यकर्ताओं का कहना है कि दल का लक्ष्य 2017 नही है बल्कि 2019 है। लोकसभा चुनाव के बाद से पार्टी अनिर्णय और अनिश्चय के भंवर में फंसी दिख रही है। संगठनात्मक ढांचा भी पूरा नहीं हो पाया है। भाजपा नेता 17 जिलों में भी पूरा संगठन नहीं खड़ा कर पाए। 58 जिला-महानगरों में ही अध्यक्ष बने हैं। बाकी 32 जिलों में अध्यक्ष बनना बाकी है। संघ से आये संगठन मंत्री अपनी खिचड़ी पका रहें है। प्रदेश प्रभारी जरूरत से ज्यादा व्यस्त है। प्रदेश भाजपा के धुरंधर दरकिनार है। जिनमें विनय कटियार, ओमप्रकाश सिंह, सूर्य प्रताप शाही, लालजी टंडन जैसे तमाम नेताओं को अपनी भूमिका की जानकारी ही नही है। रोचक है कि बसपा ने सभी 403 विधानसभा क्षेत्रों में अपने भावी उम्मीदवारों को विधानसभा क्षेत्र प्रभारी घोषित कर दिये है। कांग्रेस भी सक्रिय हो रही है। प्रदेश प्रभारी ओम माथुर कहते हैं कि भाजपा किसी चेहरे को मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करके चुनाव में नहीं उतरेगी, इस पर अंतिम फैसला संसदीय बोर्ड करेगा, फिलहाल पार्टी के भीतर कोई नीति अभी तय नहीं हो पाई है। बहरहाल प्रदेश भाजपा की बेहद बदहाली को लेकर पार्टी के कार्यकर्ता भी खुश नही है। कार्यकर्ता पूछ रहें है कि लोकसभा चुनाव में जीत का श्रेय लेने वाले संघ के लोग कहां है क्या वे उप्र में भाजपा को 100 सीट जीताने का दावा करने की स्थिति में है।   ————