उप्र के महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह ने की हाई कोर्ट की अवमानना

कोर्ट ने मुख्य सचिव को 3 अगस्त को किया तलब
 मुख्य सचिव को दिया निर्देश कि वे प्रकरण को मुख्यमंत्री के सामने आवश्यक कार्यवाही हेतु रखें
विधि संवाददाता । लखनऊ। इलाहाबाद हाई केार्ट की लखनउ बेंच ने विभिन्न गम्भीर आपराधिक मामलों में जांच एजेंसियों की लापरवाही और असफलता के सम्बंध में राज्य सरकार का पक्ष रखने के लिए महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह को  बार बार बुलाए जाने के बावजूद उनके उपस्थित न होने को अदालत की अवमानना मानते हुए सभी मामले सीधा मुख्यमंत्री को भेज दिए हैं। केार्ट  ने चीफ सेके्रटी को  इस सम्बंध में दिए ऑर्डर को मुख्यमंत्री के समक्ष रखने का आदेश  दिया है। साथ ही मुख्य सचिव को 3 अगस्त को तलब भी कर लिया है।
     यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रेखा दीक्षित की खंडपीठ ने विंदेश्वरी प्रसाद की एक याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। न्यायालय ने जांच एजेंसियों की लापरवाही सम्बंधी उक्त याचिका समेत कई मामलों का जिक्र करते हुए, महाधिवक्ता को जानकारी देने व कोर्ट के सहयोग के लिए बुलाया था।
महाधिवक्ता राघवेंद्र सिहं के न हाजिर होने का कारण बताते हुए, सरकारी वकीलों आर के द्विवेदी व स्मृति सहाय ने कहा कि वह अभी एक मीटिंग में हैं। इस पर न्यायालय ने कहा कि यह परेशान करने वाली बात है कि न्यायिक कार्य के समय जब महाधिवक्ता को कोर्ट के सहयोग की जरूरत है तब वह मीटिंग में व्यस्त हैं।
 न्यायालय ने पुनः अपरान्ह सवा एक  बजे तक का समय दिया। बावजूद इसके महाधिवक्ता के न आने पर न्यायालय ने कहा कि कोर्ट महाधिवक्ता का सहयोग चाहती थी लेकिन कोर्ट में उपस्थित न होकर उन्होंने जो रवैया दिखाया है, वह न्यायालय की अवमानना है। न्यायालय ने आगे कहा कि महाधिवक्ता के रुख को देखते हुए, हम उन्हें नोटिस भेज सकते हैं लेकिन ऐसा करने से हम खुद को रोक रहे हैं और इस मुद्दे को मुख्यमंत्री को भेजना ज्यादा उचित समझते हैं।
केार्ट ने कहा कि  हम आशा करते हैं मुख्यमंत्री  इसे देखेंगे और कार्रवाई करेंगे, जैसा कि उनसे राज्य के नागरिक उम्मीद करते हैं। न्यायालय ने कहा कि राज्य का ईमानदार इरादा अपने नागरिकों के कल्याण के लिए काम करने का हो सकता है लेकिन इसके सभी प्रयास व्यर्थ हैं यदि राज्य की मशीनरी नागरिकों के जीवन की सुरक्षा प्रभावी ढंग से नहीं कर सकती।
न्यायालय ने मुख्य सचिव को अग्रिम सुनवाई पर हाजिर होने का आदेश देते हुए कहा कि वह कोर्ट द्वारा उठाए मामलों में राज्य का रुख स्पष्ट करें। साथ ही अगली सुनवाई पर हलफनामा दाखिल करते हुए यह भी बताने का आदेश दिया कि कोर्ट का यह आदेश उन्होंने मुख्यमंत्री के समक्ष कब रखा। इस दौरान न्यायालय ने बलरामपुर जिले के सरकारी अस्पताल में अव्यवस्था सम्बंधी  में आई खबर का संज्ञान भी लिया।
जांच एजेंसियों की लापरवाही के ये हैं मामले
– हत्या के एक मामले में पुलिस ने अब तक शिकायतकर्ता व अन्य गवाहियों का बयान तक दर्ज नहीं किया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी कोर्ट ने विसंगति पाई। इसके अलावा याची का आरोप था कि अभियुक्त उस पर सुलह का दबाव बना रहे हैं।
– लखीमपुर खीरी जनपद के एक मामले में दस साल की बच्ची का बलात्कार करने के बाद हत्या की गई थी। इस मामले के चार में से तीन अभियुक्तों को अब तक पुलिस गिरफ्तार ही नहीं कर पाई। एक अभियुक्त जो गिरफ्तार हुआ था, वह भी जेल से फरार हो चुका है। इस मामले में न्यायालय ने प्रमुख सचिव (गृह) को तलब भी किया था।
– भ्रष्टाचार के एक मामले में एफआईआर दर्ज होने के 27 साल बाद भी जांच पूरी नहीं हो सकी। इस मामले में न्यायालय ने मुख्य सचिव से जवाब तलब भी किया था।
– एक अन्य आपराधिक मामले में सीबीसीआईडी ने न्यायालय को बताया कि चार्जशीट निचली अदालत में दाखिल कर दी गई है। जबकि याची के अधिवक्ता ने सीजेएम, लखनऊ कोर्ट से प्राप्त प्रश्नोत्तरी पेश की जिसमें चार्जशीट न दाखिल होने की बात कही गई थी।
– हत्या के एक और मामले में चार्जशीट दाखिल होने के बावजूद न तो अभियुक्त ने सरेंडर किया और न ही पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया।