उत्तर प्रदेश शासन कर रहा प्राधिकरण के रिटायर्ड कर्मियों की उपेक्षा

श्यामल मुखर्जी/दिनेश शर्मा, गाजियाबाद। अगर सरकारी कर्मियों की राय माने तो भाजपा शासित सरकार हमेशा सरकारी कर्मचारियों के हितों की शोषक रही है। खास उदाहरण अटल बिहारी वाजपेई के शासन के समय का है जब 2005 के बाद के नियुक्त हुए सरकारी सेवकों के बुढ़ापे का एकमात्र सहारा पेंशन बंद कर दी गई थी। लेकिन वाजपेई सरकार ने जनप्रतिनिधियों (सांसद,विधायक आदि) की पेंशन बंद नहीं की मगर गाज डाली तो सरकारी सेवकों पर उनकी एकमात्र बुढ़ापे का सहारा पेंशन बंद करके । ऐसी अनगिनत उपेक्षा पूर्ण नीतियों से नाराज होकर ही कर्मचारियों द्वारा संगठन का निर्माण कर आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ता है। कहने को तो लोकतंत्र है कि जनता की लोकतंत्र में सुनी जाएगी लेकिन आज भी नौकरशाही और राजतंत्र का बोलबाला है और नौकरशाही ही जनप्रतिनिधियों को चला रही है। आंदोलनरत कर्मचारी गण आंदोलन में नारा भी लगाते हैं कि अंधी बहरी गूंगी सरकार नहीं चलेगी क्योंकि जब सरकार अपने सेवकों की ना सुने तो उसे खुद यह सुनना पड़ता है। ऐसा ही एक उपेक्षा का उदाहरण उत्तर प्रदेश विकास प्राधिकरण सेवानिवृत्त कर्मचारी संगठन के प्रांतीय अध्यक्ष श्री एमपी शर्मा को झेलना पड़ रहा है । श्री एमपी शर्मा द्वारा सेवानिवृत्त कर्मियों के गुजारा मात्र के एक साधन पेंशन के समय से भुगतान किए जाने व वर्तमान कार्यरत कर्मचारियों को दिए जाने वाले वेतन का भुगतान समय से किए जाने हेतु प्रमुख सचिव आवास एवं शहरी नियोजन विभाग उत्तर प्रदेश शासन को जनसुनवाई पोर्टल शिकायत संख्या 40014020039012 के माध्यम से शिकायत/सूचना प्रेषित की। अपने निवेदन में श्री शर्मा द्वारा यह पीड़ा व्यक्त की गई कि प्राधिकरण ठेकेदारों व अन्य भुगतान को तो प्राथमिकता पर करता है लेकिन सेवानिवृत्त कर्मियों की पेंशन का भुगतान व कार्यरत कर्मचारियों के वेतन के भुगतान को आवश्यक श्रेणी में नहीं मानता है। श्री एम पी शर्मा द्वारा यह मांग की गई कि ठेकेदारों व अन्य मदों में होने वाले भुगतान को रोककर प्राथमिकता पर सेवानिवृत्त कर्मियों का एकमात्र गुजारे का सहारा पेंशन व कार्यरत कर्मचारियों के वेतन का प्राथमिकता पर अविलंब भुगतान किया जाना चाहिए लेकिन कोई असर ना तो शासन और ना ही प्रशासन पर दिख रहा है। इन सब से नाउम्मीद होकर ही सेवानिवृत्त कर्मचारियों द्वारा प्रदेश स्तर पर संगठित होकर संगठन का निर्माण किया गया है तथा प्रांतीय अध्यक्ष के अनुसार यदि शासन प्रशासन का यही रवैया रहा तो जल्द माननीय उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपने हितों की रक्षा के लिए गुहार लगानी पड़ेगी ।