बिस्तर गीला करता है बच्चा: बचाएगा यह अलार्म

bedwettingहेल्थ डेस्क। बेड वेटिंग यानी बिस्तर गीला करने की बीमारी। अगर यह आदत पांच साल की उम्र के बाद भी जारी रहती है तो यह बीमारी मानी जाती है और समय पर इलाज नहीं करवाने से किडनी इस लेवल तक खराब हो जाती है कि ट्रांसप्लांट तक की नौबत आ जाती है। लेकिन अब एक बेड वेटिंग अलार्म डिवेलप किया गया है, जो बच्चों की यह आदत 3 से 6 महीने तक इस्तेमाल के बाद दूर कर देता है।
डॉक्टरों का कहना है कि यह एक ऐसी बीमारी है, जिससे बच्चा डिप्रेशन में चला जाता है और उसकी मेंटल से लेकर फिजिकल और सोशल लाइफ पर असर डालता है। अब डब्लूएचओ ने इसे गंभीर समस्या मानते हुए हर साल 17 अक्टूबर को बेड वेटिंग डे मनाने का फैसला किया है।
अलार्म : गंगाराम अस्पताल में रविवार को बेड वेटिंग डे मनाया गया। वहां के चाइल्ड नेफ्रलॉजिस्ट डॉ. कनव आनंद ने बताया कि बेड वेटिंग अलार्म इस बीमारी का बेहतर इलाज साबित हो रहा है। अमेरिका में हुई स्टडी से यह साफ हो चुका है कि अलार्म का यूज करने से 66 पर्सेंट बच्चों ने अगले 14 रातों तक बेड गीला नहीं किया। आजकल एक नया अलार्म आया है, जिसमें सेंसर लगा होता है। यह सेंसर बच्चे के अंडरगार्मेंट में लगा दिया जाता है और अलार्म कंधे के पास सेट कर दिया जाता है। जैसे ही यूरिन का एक भी बूंद बाहर आता है, अलार्म बजने लगता है और बच्चे की नींद खुल जाती है। इससे बच्चे की बीमारी तीन से छह महीने तक यूज के बाद बिल्कुल ठीक हो जाती है। यूं तो इस अलार्म की कीमत 45-50 हजार रुपए है, लेकिन यह मशीन किराए पर भी मिलती है। तीन से छह महीने का किराया 6 से 8 हजार है।
क्या है बेड वेटिंग : इसे बिस्तर गीला करने की बीमारी कहते हैं। छोटे बच्चों में यह कॉमन समस्या है। पांच से सात साल की उम्र तक सुधार नहीं होने पर दिक्कत ज्यादा बढ़ सकती है। ऐसे बच्चों में कॉम्प्लेक्स आ जाता है। छोटे बच्चे कंट्रोल नहीं कर पाते हैं और कई बार यूरिन पास होने के बारे में उन्हें पता भी नहीं लगता। हालांकि, तीन साल की उम्र तक बच्चे को यह पता नहीं चल पाता है कि उनका ब्लैडर फुल है या नहीं, लेकिन पांच साल की उम्र तक बच्चे यह समझने लगते हैं। अगर पांच साल की उम्र के बाद भी बच्चे महीने में दो बार बिस्तर गीला करें तो उनकी आदत बदलने की जरूरत है। 85 पर्सेंट बच्चे पांच साल की उम्र के बाद इस पर कंट्रोल कर लेते हैं। उम्र बढऩे के साथ यह बीमारी कम होती है। दस साल की उम्र के बाद यह बीमारी 5 पर्सेंट बच्चों में रह जाती है और 15 साल की उम्र के बाद सिर्फ एक पर्सेंट लोगों में यह प्रॉब्लम रहती है। लड़कों में यह समस्या कॉमन है।
जेनेटिक फैक्टर : अगर सिंगल पैरंट में यह समस्या है तो 50 पर्सेंट केसों में बच्चों में भी यह बीमारी होती है और दोनों पैरंट्स में यह समस्या हो तो 75 पर्सेंट केसों में बच्चे में यह बीमारी होती है। अगर पैरंट्स को समस्या न हो तो केवल 15 पर्सेंट केसों में ही बच्चों में यह बीमारी होती है। बॉडी में यूरिन कंट्रोल करने के लिए हार्मोन होते हैं, इसे एंटिटीयूरेटिक हार्मोन कहा जाता है। जब रात में यह हार्मोन कम होता है तो यूरिन कंट्रोल नहीं होता है। कुछ बच्चों में ब्लैडर की क्षमता की वजह से यह परेशानी होती है। 12 साल की उम्र तक ब्लैडर की क्षमता अडल्ट के साइज के बराबर यानी 400 से 500 एमएल तक हो जाता है।
इलाज: कई बार बच्चे 500 एमएल यूरिन करते हैं, लेकिन 20 बार यूरिन के लिए जाते हैं। कुछ बच्चे इतना यूरिन करने के लिए चार से आठ बार ही जाते हैं। डायरी मेनटेन करने से इसका हल निकाला जा सकता है। 40 पर्सेंट लिक्विड सुबह लें, 40 पर्सेँट दोपहर को और शाम को सिर्फ 20 पर्सेंट ही लिक्विड लें। सोने से दो घंटे पहले लिक्विड नहीं लें। आठ से दस साल की उम्र के बाद ही दवा से इसका इलाज किया जाता है। इसके पहले बच्चों और पैरंट्स की काउंसिलिंग की जाती है।