आरती रानी प्रजापति। भारतीय समाज स्त्री को अनेक नियम कानूनों में बांध देता है ओर आश्चर्य की बात यह है कि स्त्री खुद अपने बंधन को नहीं जानती। भारतीय समाज में रखे जाने वाले व्रत इसी परम्परा की एक छोटी-सी कड़ी हैं जो वास्तव में स्त्री के चरित्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बचपन से स्त्री इस बात के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार किया जाता है कि वह अपने पति की होकर रहे। उसे बार-बार यह एहसास करवाया जाता है कि यह घर उसका नहीं वह पराया धन है। उसे पति के लिए जीना सिखाया जाता है। पति ठीक मिले इसके लिए सोमवार का व्रत रखवाया जाता। कुल मिलाकर उसे इस तरह ढाला जाता है कि वह पतिनुमा किसी व्यक्ति के सपने बुनती रहती है। लड़कों के लिए ऐसा नहीं है उन्हें इन व्रत के झंझट में नहीं डाला जाता अधिकत्तर भारतीय लड़के ईश्वर में उतना विश्वास नहीं रखते जितनी महिलाऐं। यही कारण है कि स्त्री विवाह के उपरांत और पहले ईश्वर में जुटी रहती है7 वह अच्छे पति के लिए कितने ही व्रत क्यों न कर ले उसे पति कभी संदेह की निगाह से देखता है, कभी सभी के सामने जलील करता है। वास्तव में हमारा समाज लड़की को कभी इंसान रूप में समझता ही नहीं उसे एक मशीन समझा जाता है जो किसी के लिए जीती है लगातार उससे प्रताडि़त होकर भी।
भारतीय समाज में करवा-चौथ, अहोई अष्टमी पुरुषों के लिए रखे गए व्रतों में से प्रमुख है। करवा-चौथ में स्त्री अपने संभावित या हो चुके पति के लिए पूरे दिन भूखे-प्यासे रहती हैं। पुरुष यदि कभी कोई व्रत कभी रख लेता है तो घर में उसे अतिरिक्त आराम दिया जाता है जैसे वह व्रत रख कर कोई महान कार्य कर रहा है पर करवा चौथ के व्रत में स्त्रियों में अंधेरे मुंह खाने का प्रावधान है और यह खाना कोई पुरुष नहीं वही महिलाएं बनाती हैं जो व्रत रखती हैं। यानि स्त्री को आराम तो क्या उस दिन दोगुना काम उससे करवाया जाता है। घर के रोज के देह-तोड़ काम से थकी स्त्री सुबह का खाना जिसे सगरी कहा जाता है बड़े ही उत्साह से बनाती है। व्रत के साथ अक्सर ऊर्जा शक्ति को जोड़ किया जाता है। मतलब हमने व्रत किया चाहे हम कितनी बीमार थी पर व्रत रखने की ताकत ने हमसे यह सब करावा लिया। सदियों से स्त्री का शोषण इसी ताकत के तहत होता है। घर में जब कोई और काम करेगा नहीं उसे ही सब काम करने हैं तो ताकत हो या न हो वह करेगी पर हमारे भारतीय समाज की महिलायें इसको ईश्वरीय ताकत से जोड़ देती हैं। एक तरफ तो स्त्री को व्रत करके ताकत मिलती है दूसरी ओर व्रत करने से पुरुष में कमजोरी आई होगी यह सोच हमारा समाज रखता है।
माना जाता है कि इस व्रत से पति की आयु लम्बी होती है, पति-पत्नी में प्रेम बढ़ता है। क्या ऐसा हो सकता है कि एक व्रत से किसी की आयु बढ़ जाए? और आयु बढ़ जाएगी यह सोच कर व्रत करने का लाभ क्या पति की आयु बढ़ जायेगी पत्नी की कम हो जायेगी वो जल्दी मर जायेगी ऐसे में आयु बढ़ा कर क्या लाभ? क्या इससे यह साबित नहीं होता कि स्त्री की इस समाज को जरूरत नहीं इसलिए पुरुष ही लम्बी आयु को प्राप्त करे? पति के लिए करवा-चौथ जैसे व्रत समाज की पति-परमेश्वर की अवधारणा को मजबूत करने का साधन है। आज पढ़ी-लिखी लड़कियां भी इस व्रत को करने में लगी हुई हैं। वह खुद अपनी अहमियत को समझना नहीं चाहती। पहले कहा जाता था कि स्त्री ही क्यों यहाँ व्रत रखे तो आजकल एक नया तरीका निकाला है समाज की पितृसत्ता ने आजकल पुरुष भी करवा-चौथ रखते हैं। जिससे स्त्री समाज यह सोचता है कि पुरुष कितना प्यार करते हैं उन्हें जबकि ऐसा नहीं है किसी के प्यार को व्रत रखा कर नहीं समझा जा सकता यह पुरुषों के द्वारा व्रत रखा जाना इस पितृसत्ता को मजबूत करने का साधन है। जब पुरुष इस व्रत को रखने लगेंगे तो स्त्री भी जरुर करेगी। समाज आज आधुनिक समय में है तो लोगों को बंधक बनाने के तरीके भी नए होंगे पुराने नहीं। आजकल टी.वी. सीरियल इस बांधने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। जो भी त्यौहार आने वाला होता है सभी सीरियल की स्त्रियाँ उसे मनाने में जुट जाती हैं। जैसे इनके पास कोई काम नहीं सिवा इस त्यौहार को मनाने के और हम एकता कपूर की जितनी भी आलोचना करे आज भी समाज में उसके वही पितृसत्ता को मजबूत करने वाले सीरियल चल रहे हैं। किसी भी सीरियल में स्त्री के सशक्तिकरण की बात एकता नहीं रखती मर्द और उसके आस-पास स्त्री की दुनिया कपड़े-गहने बस। क्या वास्तव में स्त्री यह चाहती है? नहीं वह बराबरी करना चाहती है समाज में हर जगह पर लोग स्त्री को बार-बार उसी खांचे में खींच रहे हैं। आज करवा-चौथ पर जितना उत्साह युवा वर्ग में दीखता है वह चिंतनीय है। क्यों हर बार स्त्री को अपने देह के आधार पर किसी के साथ अपने प्रेम को साबित करना पड़ता है। किसी को जिंदा रखने का काम स्त्री क्यों करें। वैसे आप बड़े शक्तिशाली बनते हैं और स्त्री से व्रत रखवाते हैं ताकि उम्र लम्बी हो? क्या स्त्री के व्रत रखने से आपके रिश्ते में प्यार बढ़ेगा? प्यार की जिम्मेदारी आपको तब क्यों नहीं याद आती जब यह स्त्री सड़कों पर नंगी करवाई जाती है, उसको आप पीटते हैं, हर वक्त घर के काम में जुटी रहती है, कभी बच्चे, कभी आपको संभालती है, हर वो काम करती है जो उसके हिस्से व्यवस्था ने धकेल दिया है तब प्यार को बढऩे की जिम्मेदारी भी उसकी ही क्यों? यदि पुरुष अपने अहम् को छोड़ कर स्त्री का घर के कामों और उसकी चिंताओं में सहयोग करे तो न आपकी उम्र, न रिश्ते में खत्म हो रहे प्यार को बढऩे के लिए स्त्री को भूखा रहना पड़े।