दिवाली के साथ छठ पर्व की तैयारियों में भी जुटे लोग

chath pujaरायपुर। दीपावली पर्व के साथ इन दिनों छठ पर्व को लेकर भी लोगों ने तैयारियां शुरू कर दी है। छठ पर्व दीपावली पर्व के छह दिन बाद मनाया जाता है। छठ पर्व मनाने वाले लोगों में इस पर्व को लेकर काफी उत्साह बना हुआ है। हिन्दू धर्म में इस पर्व का भी बहुत महत्व है। इस व्रत को करते हुए सूर्य देव व षष्ठी देवी की आराधना कठोर व्रत करते हुए की जाती है। दिवाली के छह दिन बाद मनाए जाने वाले पर्व का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है और इस व्रत को करते हुए सूर्य देव व षष्ठी देवी की आराधना कठोर व्रत करते हुए की जाती है। आगामी 16 से 18 नवंबर तक छठ पूजा की जाएगी। इस व्रत के माध्यम से महिलाएं सुख-समृद्धि व परिवार की खुशहाली के लिए कामना करेंगी। चार दिन मनाया जाएगा छठ पर्व: छठ पूजा चार दिवसीय उत्सव है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होगी। इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते। ज्ञात हो कि छठ पर्व पहले सिर्फ बिहार व कुछ क्षेत्रों में इसे विशेष रूप से मनाया जाता था लेकिन अब धीरे-धीरे इस पर्व को छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश सहित देश के अन्य राज्यों के कुछ हिस्सो में भी मनाया जाता है। राजधानी रायपुर के खारून नदी महादेव घाट में भगवान सूर्य को अघ्र्य देने बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचेंगे। छठ का व्रत रखना आसान नहीं होता, बल्कि इसके नियमों का पालन करना कठित तपस्या की भांति होता है। हालांकि व्रत प्राय: महिलाओं द्वारा किया जाता है, कुछ पुरुष भी व्रत रखते हैं। व्रत रखने वाली महिला को परवैतिन भी कहा जाता है।
व्रत की विधि: चार दिनों के इस व्रत में व्रती को लगातार उपवास करना होता है। भोजन के साथ ही सुखद शैय्या का भी त्याग किया जाता है। पर्व के लिए बनाए गए कमरे में व्रती फर्श पर एक कंबल या चादर के सहारे ही रात बिताई जाती है। इस उत्सव में शामिल होने वाले लोग नए कपड़े पहनते हैं, पर व्रती ऐसे कपड़े पहनते हैं जिनमें किसी प्रकार की सिलाई नहीं की होती है। महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छठ पूजा करते हैं। शुरू करने के बाद छठ पर्व को सालों साल तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की किसी विवाहित महिला को इसके लिए तैयार न कर लिया जाए। पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी नहाय-खाए के रूप में मनाया जाता है। सबसे पहले घर की सफाई कर उसे पवित्र बना लिया जाता है। इसके बाद छठ व्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। घर के सभी सदस्य व्रती के भोजनोपरांत ही भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन के रूप में कद्दू-दाल और चावल ग्रहण किया जाता है। यह दाल चने की होती है। दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रत धारी दिन भर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे खरना कहा जाता है। खरना का प्रसाद लेने के लिए आस-पास के सभी लोगों को आमंत्रित किया जाता है। प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पि_ा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है। इस दौरान पूरे घर में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ का प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ बनाते है जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं। इसके? अलावा चावल के लड्डू बनाए जाते है, जिसे लडुआ भी कहा जाता है। इसके अलावा चढ़ावा के रूप में लाया गया फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है। शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बास की टोकरी में अघ्र्य का सूप सजाया जाता है और व्रती के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अघ्र्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं। सभी छठ व्रती एक नियत तालाब या नदी किनारे इकठ्ठा होकर सामूहिक रूप से अघ्र्य दान संपन्न करते हैं। सूर्य को जल और दूध का अघ्र्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूपा से पूजा की जाती है।