व्यापमं के बाद उठे सवालों का जवाब ढूंढ पाएंगे अमित शाह?

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कृष्णमोहन झा
व्यापमं घोटाले को लेकर देशभर में हो हल्ला मचा हुआ है इसी बीच भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अमित शाह भोपाल आ रहे है। पिछले कुछ दिनों से इस मामले के गर्माने के बाद राजनीतिक उठापटक भी तेज हो जाने से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को स्वयं सफाई देनी पड़ी। गौरतलब है कि व्यापमं घोटाले का कवरेज करने दिल्ली से एक टीवी पत्रकार की मौत के बाद लगातार तीन लोगों की मौतों से यह मामला अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में पूरी तरह छा गया था, जिससे सरकार बैकफुट पर आ गई थी। कांग्रेस ने सरकार पर हमला बोलना शुरू कर दिया था वह इस मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग पर अड़ गई थी, कई अन्य संगठन भी कांग्रेस के समर्थन में आ गए थे। ऐसे में सरकार की मुश्किलें बढ़ती जा रही थी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक दिन पहले तक इस मांग को खारिज करते रहे, लेकिन दूसरे दिन उन्होंने प्रेस वार्ता में सीबीआई जांच कराने के लिए हाईकोर्ट को पत्र लिखने का आश्वासन दिया था। तभी से यह कयास लगना शुरू हो गए थे कि दिल्ली से आए राष्ट्रीय नेतृत्व के फोन पर ही मुख्यमंत्री को व्यापमं मामले की जांच के लिए राजी होना पड़ा। अब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष 13 जुलाई को भोपाल आ रहे है ऐसे में व्यापमं मामले को लेकर उठे कई सवाल और पार्टी पर लगे आरोपों का हल वह ढूंढ पाएंगे यह भी एक बड़ा सवाल है। हालांकि अमित शाह के भोपाल आने की खबर मात्र से ही राज्य मंत्रिमंडल के उन सदस्यों की बेचैनी बढ़ गई है जो 75 वर्ष वर्ष की आयु पूर्ण कर चुके हैं अथवा अगले कुछ वर्षों के अंदर इस आयु सीमा को पार करने वाले हैं। गौरतलब है कि भाजपाध्यक्ष अमित शाह ने अपने पिछले भोपाल प्रवास के दौरान गृहमंत्री बाबूलाल गौर से जब उनकी आयु पूछी थी तब उसका यह अर्थ निकाला गया था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अगर अपने मंत्रिमंडल में 75 वर्ष की आयु सीमा में ढिलाई देने के पक्ष में नहीं हैं तो मध्यप्रदेश में यह सिद्धांत अमल में क्यों नहीं लाया जा रहा है। अमित शाह द्वारा गौर से उनकी आयु पूछे जाने का गौर ने अपने आलोचकों को यह जवाब दिया था कि 81 वर्ष की आयु में भी उनके उत्तम स्वास्थ्य को लेकर दरअसल सुखद आश्चर्य व्यक्त किया था। परंतु अमित शाह के आगामी भोपाल दौरे में भी अगर कुछ वयोवृद्ध नेताओं की आयु के बारे में सवाल कर लिया जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी परंतु इस आशंका से उन वयोवृद्ध नेताओं का बेचैन होना स्वाभाविक है जो अभी भी सत्ता या संगठन में महत्वपूर्ण पद की आस लगाए बैठे हैं। इन वरिष्ठ नेताओं में डॉ. गौरीशंकर शेजवार, सरताज सिंह, जयंत मलैया, ज्ञानसिंह आदि मंत्री सर्वाधिक परेशान मानें जा सकते हंै। इनमें से शेजवार, सरताज सिंह, ज्ञानसिंह का तो मंत्री के रूप में प्रदर्शन भी बहुत संतोषजनक नहीं रहा है। विधानसभा के अंदर भी विपक्षी सदस्यों के प्रश्रों से वे कभी कभार असहज दिखाई दिए हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान निकट भविष्य में अपने मंत्रीमंडल में फेरबदल करने का मन बना चुके हैं और संभवत: अमित शाह के आगामी भोपाल प्रवास के दौरान मुख्यमंत्री उनसे इस विषय में चर्चा भी कर सकते हैं। जहां तक गृहमंत्री बाबूलाल गौर का सवाल है उनकी चिन्ता इसलिए बढऩा स्वाभाविक है क्योंकि महिला अपराधों को लेकर उनके अनेक बयानों ने ऐसे विवादों को जन्म दिया जो मुख्यमंत्री की परेशानी का कारण बन गए हैं। गृहमंत्री ने प्राय: दुष्कर्म की घटनाओं में महिलाओं और युवतियों की आधुनिक पोशाकों को जिम्मेदार बताया है।
दरअसल जबसे शिवराज सरकार के वरिष्ठ मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को भाजपाध्यक्ष अमित शाह ने पार्टी के महासचिव पद पर मनोनीत किया है तभी से यह सवाल भी उठाया जाने लगा है कि पार्टी के ‘एक व्यक्ति एक पदÓ के सिद्धांत का पालन करते हुए क्या विजयवर्गीय अपना मंत्रिमंडल पद छोड़ देंगे। वैसे अमित शाह इस संबंध में यह राय व्यक्त कर चुके हैं कि चूंकि कैलाश विजयवर्गीय को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मंत्री मनोनीत किया था इसलिए विजयवर्गीय को मंत्री पद पर बनाए रखने या उन्हें पार्टी महासचिव पद के उतराधिकारी का बेहतर ढंंग से निर्वाह करने के लिए मंत्री पद की जिम्मेदारी से मुक्त करने का फैसला भी मुख्यमंत्री को ही करना है। इतना तो तय है कि मंत्री पद के रूप में कैलाश विजयवर्गीय के प्रदर्शन को हमेशा उत्कृष्ट माना गया है। शिवराज सरकार के पिछले कार्यकालों में हुए निवेशक सम्मेलनों का सफलता का श्रेय भी कैलाश विजयवर्गीय के खाते में दर्ज हुआ था। पिछले वर्ष हरियाणा विधानसभा के चुनावों में भाजपा की शानदार जीत को भी कैलाश विजयवर्गीय ने अपने सूझबूझ भरी रणनीति और राजनीतिक चतुराई के बल पर संभव बनाया था और हरियाणा में बहुमत हासिल कर भाजपा ने सत्तारूढ़ होने का सुनहरा स्वप्न किया था। शायद तब ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं भाजपाध्यक्ष अमित शाह ने यह तय कर लिया था कि कैलाश विजयवर्गीय के अंदर छिपे सफल राजनेता के गुणों का उपयोग पार्टी में राष्ट्रीय स्तर पर किया जाना चाहिए। और अंतत: हरियाणा में भाजपा की जीत के मुख्य रणनीतिकार कैलाश को राष्ट्रीय महासचिव के महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी सौंपकर उनकी प्रतिभा को सम्मानित किया गया।
कैलाश विजयवर्गीय की यह नियुक्ति इस प्रश्न को जन्म दे सकती है कि क्या राज्य में अब सत्ता के दो केन्द्र बन चुके हैं। विजयवर्गीय इस बात से इंकार करते हैं परन्तु यह भी एक हकीकत है कि उन्हें मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में देखा जाता रहा है। राष्ट्रीय महासचिव बनने के बाद उनका कद भी बढ़ गया है। अतीत में राष्ट्रीय महासचिव बनने के बाद शिवराज सिंह चौहान के एक घनिष्ट सहयोगी नरेन्द्र सिंह तोमर अब केन्द्रीय मंत्रिमंडल में महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाल रहे है। निश्चित रूप से कैलाश विजयवर्गीय के राष्ट्रीय महासचिव मनोनीत होने से राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा में मध्यप्रदेश की भागीदारी बढ़ी है। वैसे भाजपा की उन्नति में हमेशा ही मध्यप्रदेश की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष रह चुके प्रभात झा अब संगठन में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे है। यह फेहरिस्त इतनी लंबी है कि सारे नामों का उल्लेख यहां संभव नहीं है परंतु यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि भाजपा को वट वृक्ष का रूप प्रदान करने में मध्यप्रदेश ने अहम भूमिका निभाई है। परंतु अभी तो सवाल यह है कि क्या कैलाश विजयवर्गीय को राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त करने से मध्यप्रदेश में सत्ता के समीकरणों में परिवर्तन आ सकता है।
कैलाश विजयवर्गीय के पास भले ही मध्यप्रदेश का प्रभार न हो परंतु चूंकि मध्यप्रदेश की उनकी कर्मभूमि रही है इसलिए मध्यप्रदेश के मामलों में उनकी दिलचस्पी होना स्वाभाविक है। शिवराज मंत्रिमंडल में निकट भविष्य में होने जा रहे फेरबदल के अतिशक्त निगम मंडलों तथा अन्य महत्वपूर्ण समितियों के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष पदों पर जो नियुक्तियां की जाना हैं उनमें भी कैलाश विजयवर्गीय की राय विशेष मायने रखेगी। देखना यह है कि अगर कैलाश विजयवर्गीय की सेवाएं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने वरिष्ठ मंत्री के रूप मेें लेना अपरिहार्य समझते है तो क्या उनके बढ़े हुए कद के साथ उनसे अपने अभी तक के तालमेल को सहज रूप में जारी रख पाएंगे।
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव पद पर कैलाश विजयवर्गीय के मनोनयन से प्रदेश के उन युवा नेताओं में प्रतिभा और पार्टी के लिए समर्पण का अभी तक उचित मूल्यांकन नहीं हो पाया है। वे अब संगठन अथवा सरकार में अपनी योग्यता के सम्मान की संभावना देखने लगे हैं। निश्चित रूप से कैलाश विजयवर्गीय भी पार्टी की इसी लाइन पर चलना पसंद करेंगे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी अब पार्टी में युवा नेतृत्व को बढ़ावा देने की केन्द्रीय नेतृत्व की मंशा का सम्मान करने के लिए तत्परता दिखा सकते हैं।