यूपी में सीएम के हाथ होगी लोकायुक्त की कमान

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लखनऊ। यूपी सरकार लोकायुक्त के चयन में इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की भूमिका को खत्म कर रही है। चीफ जस्टिस ने उप्र के सरकार के मनमाफिक लोकायुक्त रवींद्र सिंह यादव के चयन को हरी झंडी नहीं दी थी। लोकायुक्त की नियुक्ति अब मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय कमेटी करेगी। सरकार ने लोकायुक्त तथा उप लोकायुक्त अधिनियम 1975 में संशोधन के प्रस्ताव को कैबिनेट बाई सर्कुलेशन से मंजूरी दे दी है। सरकार विधानमंडल के मानसून सत्र में संशोधन विधेयक पेश करेगी। विधेयक पास होते ही सीएम की अध्यक्षता वाली कमेटी को लोकायुक्त चयन का अधिकार मिल जाएगा। सरकार के इस फैसले से लोकायुक्त चयन में चीफ जस्टिस की कोई भूमिका नहीं रह जाएगी।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद उप्र सरकार ने फरवरी में राज्य के नये लोकायुक्त का नाम चीफ जस्टिस के पास भेजा था। हाईकोर्ट के पूर्व न्यायधीश रवींद्र सिंह यादव के नाम पर चीफ जस्टिस ने असहमति जता दी है। जिसके बाद राज्य सरकार लोकायुक्त के चयन में उनकी भूमिका ही खत्म कर रही है। उप्र लोकायुक्त तथा उप लोकायुक्त अधिनियम 1975 की धारा 3-क के अनुसार मुख्यमंत्री और नेता विरोधी दल की चयन समिति लोकायुक्त का नाम तय करके उसे परामर्श के लिए हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के पास भेजती है। उनकी सहमति के बाद राज्यपाल लोकायुक्त की नियुक्ति करते हैं। प्रावधान के अनुसार लोकायुक्त की नियुक्ति मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष, विधानसभा अध्यक्ष, सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री तथा मुख्य न्यायाधीश द्वारा नामित उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की समिति करेगी। लेकिन मनमाफिक लोकायुक्त की नियुक्ति न होने से सरकार ने चीफ जस्टिस की सहमति का प्रावधान ही खत्म कर दिया है।
दरअसल, उप्र में लोकायुक्त का पद बेहद अहम हो चुका है। लोकायुक्त की रिपोर्ट के बाद 2007-12 की मायावती सरकार के कार्यकाल में 11 मंत्रियों को पद से हटा ना पड़ा था। सपा सरकार के तीन मंत्री लोकायुक्त की जांच के दायरे में है। मौजूदा लोकायुक्त की नियुक्ति 2007 में तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार ने किया था। मार्च 2012 में बहुमत से सत्ता में आने पर अखिलेश सरकार ने लोकायुक्त को इसका तोहफा दिया। 16 मार्च 2012 को उप्र लोकायुक्त तथा उप लोकायुक्त अधिनियम 1975 में अध्यादेश जारी कर लोकायुक्त को दो साल बढ़ा दिया। यह प्रावधान कर दिया कि अगले लोकायुक्त की नियुक्ति होने तक कार्यरत रहेेंगे।
लोकायुक्त का कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी नयी नियुक्ति का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट ने कड़े रुख के साथ प्रदेश सरकार को नसे लोकायुक्त की नियुक्ति के निर्देश दिये थे। मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य सचिव से पूछा है कि पिछले साल अप्रैल में दिए गए आदेश के बाद अभी तक क्या कार्यवाही की गई है। इसके लिए बुधवार तक विस्तृत हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया गया है।