योगी जी: क्या केवल जुगाली करेंगी यूपी की 34 लाख भैंसे

bhainsलखनऊ। यूपी में अवैध बूचडख़ानों पर पाबंदी लगने के बाद से प्रदेश में मांस का उत्पादन तेजी से घटा है। आलम यह है कि प्रदेश में जिस तरह का माहौल है उसमे मांस के वैध उत्पादक भी डर सहमकर बाजार में काम कर रहे हैं। जो स्थिति उसे देखकर साफ़ लग रहा है कि आने वाले समय में प्रदेश में भैंसों की संख्या बेहद तेजी से बढ़ेगी। मांसबंदी और अवैध बुचडख़ानों के खिलाफ की जा रही इसी कारवाई का यूपी के करोड़ों खेतिहर किसानों पर कितना असर पड़ेगा। यह जानना बेहद जरुरी है नहीं भूला जाना चाहिए कि उत्तर प्रदेश में पशुपालन भी खेती किसानी का ही हिस्सा है। गौरतलब है कि प्रदेश में 66 फीसदी आबादी खेती किसानी से ही जुड़ी है यहाँ पर पशुपालन का कारोबार ज्यादातर खेतिहरों के हाथ में हैं।
पशुगणना के नये आंकड़ों के मुताबिक देश में भैंस प्रजाति के पशुओं की संख्या यूपी में सर्वाधिक है देश में इनकी संख्या 10 करोड़ 80 लाख है। इसका एक चौथाई से ज्यादा हिस्सा केवल यूपी में है। यूपी में भैंसों की संख्या राजस्थान से ढाई गुनी, आंध्रप्रदेश और गुजरात से तीन गुनी, महाराष्ट्र और बिहार से लगभग चार गुनी ज्यादा है। चौका देने वाली बात यह है कि पशुगणना के आंकड़ों के मुताबिक यूपी में भैंस प्रजाति के 3 करोड़ (कुल 3,062,5,334) पशुओं में मादा भैंस की संख्या लगभग ढाई करोड़ (2,57,10629) है। लेकिन दुखद यह है कि इसमें 34 लाख से ज्यादा (34,11,943) भैंसे विसूख चुकी हैं यानि कि वो दूध नहीं देती न ही इन 34 लाख मादा भैंसों का और कोई उपयोग है।
इतना ही नहीं इनमे से लगभग साढ़े 11 लाख(11,53,581) भैंसे एक बार भी गर्भवती नहीं हुई है। जबकि सवा तीन लाख ( कुल 3,28844) मादा भैंसों को पशुगणना में अन्य की श्रेणी में रखा गया है। मतलब तीन साल या इससे ज्यादा उम्र की इन भैंसों के बारे में दूध देने, बिसूखने या बिआन करने- ना करने के लिहाज से नहीं सोचा जा सकता। ठीक इसी तरह यूपी में नर भैंसों की संख्या लगभग सवा 49 लाख है और उनमें केवल 14 लाख (कुल1408142) नर भैंसों से प्रजनन या परिवहन का काम लिया जा रहा है बाकी 35 लाख भैंसों का कोई आर्थिक उपयोग नहीं है। इस प्रकार यूपी में 48 लाख से ज्यादा मादा भैंस और करीब 35 लाख नर भैंस अनुत्पादक हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि पहले से कर्जदारी और बेमौसम की बरसात से बेहाल यूपी का किसान पौने 1 करोड़ से ज्यादा पशुओं का भरण-पोषण कर सकता है?यह बात सरकारी आंकड़ों में भी बार बार आती है कि कोई भी किसान पशुपालन से महीने में 600-800 रूपए से ज्यादा नहीं कमाता।
छोटी कमाई में बड़ी हिस्सेदारी वो भी बेकाम की
यूपी में खेतिहर किसानों की संख्या देश में सर्वाधिक है लेकिन महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि यहाँ पर ज्यादातर किसान छोटी जोत के या सीमांत है। अगर यह किसान किसी बेकाम के भैंस का पालन करेगा तो उसे प्रतिदिन 20 से 28 रूपए खर्च करने होंगे जबकि औसतन उसकी मासिक कमाई 4152 रूपए से 7318 रूपए तक है। ऐसे में उसके लिए यह खर्च बेहद ज्यादा होगा जबकि ऐसे पशुओं को छोड़कर वो उतनी ही रकम बचाता है।निस्संदेह ऐसे में बूचडख़ानों की बंदी कामगारों के साथ साथ प्रदेश के खेतिहर किसानो पर भी कहर बनकर गिरेगी।