अवैध खनन के चलते हुए हुई कैफियत की दुर्घटना, डंफर ड्राइवर बल्लू की गिरफ्तारी से खुलेगा सच

कानपुर । उप्र के औरैया के अछलदा रेलवे स्टेशन के पास कैफियत एक्सप्रेस की दुर्घटना का खलनायक डंपर अवैध खनन कर रहा था। इस डंपर का रहस्य रेल अधिकारियों के चुनौती बन गया है। अधिकारी कह रहें है कि यह फ्रेट कॉरिडोर के काम में नही लगा था। दुर्घटना के पीछे अवैध खनन जिम्मेदार है। एसपी जीआरपी आगरा ने कहा कि इस बात से पर्दा तभी उठेगा जब डंफर का ड्राइवर बल्लू पकड़ा जाएगा। डंफर फ्रेट कॉरिडोर का काम रही राज कांस्ट्रक्शन कंपनी से जुड़ा बताया जा रहा है। फिलहाल ड्राइवर बल्लू लापता है।
फ्रेट कारिडोर के काम में मिट्टी की जरूरत नही है, लेकिन डंफर मिट्टी से लदा था ट्रेन ट्रैक पर मिट्टी डाल कर उसे आने जाने लायक बनाया गया था। डंफर मिट्टी लेकर कहां जा रहा था। जबकि कॉरिडोर का काम रात को बंद रहता है। दुर्घटना स्थल के निकट ही मिट्टी खोदायी के सबूत मौजूद है।
दुर्घटना के लिए जिम्मेदार डंफर हरियाणा के कैथल का है। उसकी नंबर प्लेट पर एचआर 63 89115 लिखा है। जबकि नंबर एचआर 63 8915 है। ऑन लाइन वाहन रजिस्ट्रेशन सिस्टम के मुताबिक इस डंपर का फिटनेस सार्टिफिकेट 22 फरवरी 2016 तक ही थी। नंबर प्लेट के साथ डंपर की फोटो रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने खुद ट्वीट की है।
ट्रेन ट्रैक पर मिट्टी के मामले में रेल अधिकारी बुधवार को कुछ भी साफ बोलने से कतराते रहे। जीएम एनसीआर एमसी चौहान और इलाहाबाद के डीआरएम एसके पंकज इस मामले में गोलमोल बात करते रहे। फ्रेट कारिडोर का काम कौन करा रहा है यह भी साफ नही बता सके।
स्थानीय लोगों का कहना है कि फ्रेट कॉरिडोर का काम करने वाले डंफर अवैध खनन का भी काम कर रहें है। डीआरएम इलाहाबाद एसके पंकज का कहना है कि ‘फ्रेट कॉरिडोर का काम दिन में ही चलता है रात में नही।’ तो सवाल उठता है कि डंफर रात में मिट्टी लाद कर कहां जा रहा था।
पूरे दिन राहत और बचाव मंे जुटे अधिकारी अब अपना पूरा ध्यान दुर्घटना के कारण पर लगा रहें है।

क्या है फ्रेट कारिडोर

भारतीय रेल के स्वर्णिम चतुर्भुज में दो विकर्णों (दिल्ली-चेन्नई और मुम्बई-हावड़ा) सहित चारों महानगरों दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई और हावड़ा (कोलकाता) को जोड़ने वाला रेलवे नेटवर्क शामिल है। इसके कुल मार्ग की लम्बाई 10, 122 किलोमीटर है और यह मालढुलाई से रेलवे को प्राप्त होने वाले राजस्व का 58 प्रतिशत से अधिक हिस्से का वहन करता है।
स्वर्णिम चतुर्भुज पर भीड़भाड़ से रेलवे की दक्षता प्रभावित हो रही है और वह आर्थिक प्रगति के कारण माल ढुलाई के यातायात में हो रही वृद्धि में अपना हिस्सा बरकरार रखने अथवा बढ़ाने में सक्षम नहीं हो पा रहा है। रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने वर्ष 2015-16 के अपने बजट भाषण में कहा था कि इसका मूलभूत कारण रेलवे में‘’दीर्घकालिक अल्पनिवेश’’ है। इसकी वजह से उपनुकूलित फ्रेट और यात्री यातायात तथा अल्प वित्तीय संसाधनों के साथ भीड़-भाड़ और अतिशय उपयोग में वृद्धि हुई है।
अतिशय भीड़भाड़ वाले स्वर्णिम चतुर्भुज पर स्थितियों को सुगम बनाने के लिए भारत सरकार ने पहले चरण में, दो गलियारों, 1504 मार्ग किलोमीटर वाले डब्ल्यूडीएफसी और 1856 मार्ग किलोमीटर वाले ईडीएफसी का निर्माण करने को मंजूरी दी है। पश्चिम बंगाल के दनकुनी से प्रारम्भ हो रहा ईडीएफसी झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश और हरियाणा से होकर गुजरेगा और पंजाब के लुधियाना में समाप्त होगा। उत्तर प्रदेश के दादरी को मुम्बई-जवाहरलाल नेहरू पोर्ट (जेएनपीटी) से जोड़ने वाला डब्ल्यूडीएफसी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र से होकर गुजरेगा। डब्ल्यूडीएफसी दादरी में ईडीएफसी से जुड़ेगा।
डब्ल्यूडीएफसी की स्वीकृत लागत 46,718 करोड़ रुपये और ईडीएफसी की स्वीकृत लागत 26, 674 करोड़ रुपये है। पूंजीगत व्यय की पूरी लागत रेल मंत्रालय द्वारा ऋण एवं इक्विटी के माध्यम से वित्त पोषित है। ऋण की व्यवस्था बहुपक्षीय प्रमुख एजेंसियों से कर्ज लेकर की जाएगी। पिछले एक साल में 17, 590 करोड़ रुपये मूल्य की संविदाओं को अंतिम रूप दिया गया है, जबकि पिछले छह वर्षों में 13,000 करोड़ रुपये मूल्य की संविदाओं को अंतिम रूप दिया गया था।
डब्ल्यूडीएफसी ने प्रथम चरण में रिवाड़ी से इकबालगढ़ तक 625 किलोमीटर लम्बी रेलवे लाइन और दूसरे चरण में वडोदरा से वैतरणा तक 322 किलोमीटर लम्बी रेलवे लाइन के निर्माण के लिए 11,028 करोड़ रुपये मूल्य की लोक कार्य संविदाएं प्रदान की हैं। इसके अलावा, प्रथम चरण में 950 किलोमीटर के लिए 5,486 करोड़ रुपये मूल्य की इलैक्ट्रिकल एवं सिग्नल एवं दूरसंचार संबंधी संविदाएं भी प्रदान की गई हैं। ईडीएफसी ने कानपुर और खुर्जा के बीच 343 किलोमीटर लम्बी डबल ट्रैक लाइन के निर्माण के लिए 3300 करोड़ रुपये मूल्य की संविदा प्रदान की है। कानपुर से खुर्जा तक इलैक्ट्रिकल एवं सिग्नल एवं दूरसंचार संबंधी संविदा भी प्रदान की गई है। एक अन्य संविदा में ईडीएफसी ने मुगलसराय- न्यू भाउपुर (कानपुर) के बीच 402 किलोमीटर डबल ट्रैक लाइन के निर्माण के लिए 5080 करोड़ रुपये मूल्य की संविदा प्रदान की है।
जेएनपीटी से दादरी तक की 1504 किलामीटर लम्बी डबल लाइन ट्रेक वाले पश्चिमी कोरिडोर में विमार्गों को छोड़कर, ज्यादातर मौजूदा लाइन्स के समानांतर ही संरेखन किया है और रेवाड़ी से दादरी तक और सांनंद से वडोदरा तक पूरी तरह नया संरेखन किया है। डब्ल्यूडीएफसी के दादरी, प्रिथाला, रेवाड़ी, अटेली, फुलेरा, बांगुरग्राम,मारवाड़, पालनपुर, चतोदर, मेहसाणा, सांणंद (एन), सांणंद (एस), मकरपुरा, उधना,खरबाओ और जेएनपीटी में भारतीय रेलवे प्रणाली के साथ लिंक्स होंगे।
डब्ल्यूडीएफसी मुख्यतः पेट्रोलियम, तेल और ल्यूब्रीकेंट्स, आयातित खाद एवं कोयला, अनाज, सीमेंट, नमक तथा लोहा और इस्पात के अलावा निर्यात-आयात कंटेनर यातायात को लाभ पहुंचाएगा। 2021-22 में डब्ल्यूडीएफसीपर यातायात 152.24 मिलियन टन होने की संभावना है।
1856 किलोमीटर लम्बाई वाला ईडीएफसी मार्ग लुधियाना-खुर्जा तथा खुर्जा-दादरी के बीच 447 किलोमीटर का इलैक्ट्रिफाइड सिंगल लाइन खंड होगा। भारतीय रेलवे की लिंक प्वाइंट्स में चावापेल, सरहिंद, टुंडला, कानपुर, मुगलसराये, सोन नगर और दनकुनी शामिल हैं। इससे उत्तरी क्षेत्र के बिजली घरों के लिए बिहार, झारखंड और बंगाल की कोयला खानों से कोयला पहुंचाने, परिष्कृत इस्पात, अनाज और सीमेंट की ढुलाई में लाभ होगा।
माल ढुलाई यातायात में रेलवे की घटती हिस्सेदारी का हवाला देते हुए 12वीं योजना (2012-17) में कहा गया है, ‘देश में कुल माल में से 57 प्रतिशत की ढुलाई सड़क मार्ग द्वारा की जाती है, जबकि चीन में 22 प्रतिशत और अमेरिका में 32 प्रतिशत माल की ढुलाई सड़क मार्ग से की जाती है।’ इसके विपरीत भारतीय रेलवे देश के कुल माल ढुलाई यातायात में से मात्र 36 प्रतिशत की ही ढुलाई करता है, जबकि अमेरिका में 48 प्रतिशत और चीन में 47 प्रतिशत ढुलाई रेलवे द्वारा की जाती है।
12वीं परियोजना में यह बताया गया है कि रेलवे में तुरंत निवेश की कितनी आवश्यकता है और कहा गया कि ‘अगर अगले 20 वर्ष में लगातार 7 से 10 प्रतिशत की सालाना वृद्धि हासिल करनी है, तो रेलवे के माल ढुलाई और यात्री ट्रैफिक के लिए रेलवे की क्षमता अभूतपूर्व तरीके से बढ़ाने की अत्यंत जरूरत है, जो स्वाधीनता के बाद से अब तक नहीं हुआ है।’ 10वीं परियोजना में भारतीय रेल को विश्व का सबसे बड़े रेल नेटवर्क बताया गया था, 31 मार्च, 2011 को जिसका कुल 64,460 किलोमीटर लंबा मार्ग था, जिसमें से 21,034 किलोमीटर विद्युतीकृत है। कुल 1,13,994 किलोमीटर लंबी पटरियां है, जिसमें से 1,20,680 किलोमीटर ब्रॉडगेज, 8,561 किलोमीटर मीटरगेज और 2,753 किलोमीटर नैरो गेज है। 12वीं परियोजना के दस्तावेज के अनुसार देश का आकार और किफायत की आवश्यकता को देखते हुए रेलवे नेटवर्क का विस्तार पर्याप्त नहीं है, हालांकि भारतीय रेल ने स्वाधीनता के बाद से 11,864 किलोमीटर नई लाइनें जोड़ी है।
विभिन्न मार्गों की क्षमता परिपूर्ण होने के बारे में बताते हुए रेल मंत्री ने इस वर्ष अपने बजट भाषण में कहा था कि ‘भारतीय रेल को एक ही पटरी पर राजधानी और शताब्दी जैसी तेज एक्सप्रेस रेल, सामान्य धीमी गति की यात्री रेल और मालगाड़ी चलानी पड़ती है। यह आश्चर्य की बात है कि हालांकि राजधानी और शताब्दी 130 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती है और औसत रफ्तार 70 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक नहीं होती है। यह भी आश्चर्यजनक है कि सामान्य रेल या एक मालगाड़ी की औसत रफ्तार करीब 25 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक नहीं होती है।’यह ध्यान देने योग्य है कि दो डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर से रेलगाड़ी की अधिकतम गति 100 किलोमीटर प्रति घंटा हो सकती है।
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