योगी के विभाग में भ्रष्टाचार का पलीता

 

लखनऊ। योगी सरकार ने चुनावी वादे के मुताबिक किसान ऋणमाफी योजना शुरू कर दी है। जिसके तहत 1 लाख रुपए तक का कर्ज लेने वाले किसानों का कर्ज माफ होना है। कई किसानों को मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के लोग ऋणमाफी का सर्टिफिकेट बांट चुके हैं। पहले चरण की प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है और अब दूसरे चरण की शुरुआत होने वाली है। मगर इस योजना में भ्रष्टाचार का कितना बड़ा खेल चल रहा है, इसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते हैं। हैरानी की बात यह है कि जिस राजस्व विभाग के जिम्मे ऋणमाफी का यह काम है, उसके मुखिया खुद सीएम योगी आदित्यनाथ हैं। इससे भी बेखौफ जिले और तहसील स्तर के अधिकारी और कर्मचारी ऋणमाफी की आड़ में सरकार को बड़ा चूना लगाने का काम कर रहे हैं।
ऋणमाफी के लिए योगी सरकार ने जो सीमा तय की है, उसके मुताबिक लघु और सीमांत किसानों का एक लाख रुपए तक का लोन माफ किया जाना है। इसका मतलब ऐसे किसान जिनके पास 2 हेक्टेयर से भी कम जमीन है, उन्हीं का एक लाख रुपए तक का कर्ज माफ होना है। तय प्रक्रिया के तहत बैंक प्रशासन को कर्ज लेने वाले किसानों की लिस्ट सौंप देते हैं, जिसके बाद लेखपालों को घर-घर जाकर किसानों की माली हालत का फिजिकल वेरिफिकेशन करना होता है और यहीं से गड़बड़ी का खेल शुरू होता है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि लेखपाल कुल जमीन में अंश-निर्धारण के नाम पर किसानों से 100 से 1000 रुपए तक वसूलते हैं और प्रशासन बैंक को लिस्ट सौंप देता है कि फलां किसान के इतने उत्तराधिकारी हैं। इस तरह जो किसान पहले कर्जमाफी के दायरे से बाहर जा रहा था, वह अंश निर्धारण के बाद उसके दायरे में आ जाता है। बैंकों को भी प्रशासन की रिपोर्ट माननी ही होती है।
इसके अलावा कर्जमाफी की लिस्ट दिखाने के लिए भी किसानों से 100-200 रुपए तक लिए जाते हैं। काम सिर्फ इतना होता है कि किसान को वह लिस्ट दिखानी होती है, जिसमें पात्र-अपात्र लोगों का नाम होता है। लेखपालों के इस खेल को जिले और तहसील स्तर के अधिकारी भी अच्छी तरह जानते हैं, मगर कोई कुछ नहीं बोलता। कई लेखपाल तो गांव जाना भी जरूरी नहीं समझते हैं। ग्राम प्रधान को फोन कर लिस्ट मंगवा लेते हैं और मनमानी रिपोर्ट बैंक को सौंप देते हैं।