किसानों को खुशहाल बनाने में जुटी योगी सरकार

डॉ. सीमा उपाध्याय। उप्र के 11.27 लाख किसानों से सीधे 52.9 लाख मीट्रिक टन गेंहू खरीद कर योगी आदित्यनाथ सरकार ने प्रदेश का चरित्र बदल दिया है। सीधे किसान के खाते में न्यूनतम समर्थन मूल्य की शतप्रतिशत रकम पहुंचाना क्रांतिकारी है। यह अन्नदाता किसानों का हौसला बढ़ाने वाला कदम है। किसान के घर में खुशहाली तभी आ सकती है। जब उसे उपज की कम से कम न्यूनतम समर्थन कीमत मिले। माना जा सकता है कि यह प्रधानमंत्री के लक्ष्य 2022 तक किसानों की आय को दुगना करने की दिशा में बुनियादी कदम है। यह खास इसलिए है कि गेंहू की खरीद में उप्र पहली बार पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश से होड़ कर रहा है।
उप्र देश में सबसे ज्यादा गेंहू उत्पादन करने वाला राज्य है। दूसरे नंबर पर मध्य प्रदेश है। जबकि खरीद के मामले में उप्र का नंबर पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश के बाद है। उप्र अब गेंहू की खरीद के मामले में ऊंची छलांग लगा चुका है। पिछले साल प्रदेश में सरकारी एजेंसियों ने कुल 36.99 लाख टन की खरीद की थी। जबकि पिछले साल पंजाब सरकार ने 117 मी.टन और हरियाणा में 74.32 लाख मी.टन और मध्यप्रदेश सरकार ने 67.25 लाख मी. टन गेहूं की खरीद की थी।
इस साल यह आंकड़ा चौकाने वाला है। प्रदेश में सरकारी एजेंसियों ने अब तक 52.9 लाख मी. टन गेंहू खरीद कर ली है। यह खरीद प्रदेश के गेंहू की खेती करने वाले 11.27 लाख किसानों से की गई है। गेंहूं के बदले इन किसानों के खाते में 9.32 हजार करोड़ से अधिक रकम सीधे आरटीजीएस से भेजी गई है।
किसानों के हित में यह ज्यादा महत्वपूर्ण इसलिए भी है, क्योंकि योगी सरकार के दोनों साल में गेंहू की खरीद में अढ़तियों की भूमिका नही थी। जबकि किसान हितैषी होने का दावा करने वाली सपा सरकार के दौरान प्रदेश में अढ़तियों से ही खरीद का प्रचलन था। अढ़तिये किसानों से 9 सौ से एक हजार रूपये प्रति कुंतल के दामों पर गेंहूं खरीदते थे। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकार को बेंचते और मुनाफे से जेब भरते थे। उप्र में सरकारी एजेंसियां गेंहू की खरीद सीधे किसानों से करती है, जबकि पंजाब और हरियाणा में अढ़तिए सरकार के लिए खरीदते है। खरीद के लिए सरकार उन्हे कमीशन देती है। मध्य प्रदेश में गेंहू की खरीद का ‘भावांतर’ तरीका बिल्कुल अलग है। राज्य में योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद अधिकारियों ने छत्तीसगढ़ के खरीद मॉडल का वहां जा कर अध्ययन किया, लेकिन संसाधनों के अभाव में लागू नही कर सके। फसली वर्ष 2017-18 (जुलाई-जून) में उत्पादित रबी फसलों में प्रमुख, गेहूं के लिए केंद्र सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 1,735 रुपये प्रति क्विंटल तय किया था, जिस पर प्रदेश सरकार ने 10 रूपये ढुलाई के जोड़ कर 1745 रूपये प्रति कुंतल किसानों को भुगतान किया है। पिछले साल गेहूं का एमएसपी 1,625 रुपए प्रति क्विंटल था। यह खरीद प्रदेश भर के 6458 क्रय केन्द्रों पर की गई है। गेंहू प्रदेश की मुख्य फसलों में है। सरकार की खरीद का असर रहा कि सीजन में बाजार में गेंहू की कीमत कम नही हुई, और समर्थन मूल्य से अधिक 1800 रूपये प्रति कुंतल के आसपास बनी रही। जाहिर है कि किसान के पास अपनी उपज बाजार में बेंचने का विकल्प खुला था जहां ज्यादा कीमत मिल रही थी। न्यूनतम समर्थन मूल्य का सिद्धांत भी यही है। जबकि सपा सरकार के कार्यकाल के वर्ष 2013-14 में गेंहू की खरीद 60 लाख मी.टन के लक्ष्य के मुकाबले महज 6.8 लाख मी.टन, 2014-15 में 45 लाख मी.टन के मुकाबले 6.2 लाख मी.टन और 2015-16 में 30 लाख मी.टन के मुकाबले 22.67 लाख मी.टन की खरीद अढ़तियों के माध्यम से की गई थी। जिसमें किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य का वास्तविक लाभ नही मिला। योगी सरकार के लिए किसानों से सीधे 52.9 लाख मी. टन गेंहू खरीद प्रदेश सरकार के लिए आसान नही थी। कर्मचारी और अधिकारी खरीद में कमायी के नये नये रास्ते निकलने में माहिर है। इससे निपटना चुनौती थी। जहां सवाल उठे वहां कार्रवाई भी हुई। सरकार को खरीद में लगे कर्मचारियों में से 3 को गिरफ्तार कराना पड़ा, 61 के खिलाफ एफआईआर दर्ज करनी पड़ी। इसके अलावा 39 को निलंबित करना पड़ा 32 के खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू की गई। 240 कर्मचारियों को कारण बताओं नोटिस और 102 को चेतावनी और 19 को प्रतिकूल प्रविष्टी देनी पड़ी। जबकि खरीद को प्रभावित करने में लगे 66 व्यापारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। एक की गिरफ्तारी हुई और एक पर जुर्माना लगाया गया। खाद्यान्न मामलों में प्रदेश सरकार की सख्ती के चलते दो डीएम भी निलंबित किये गए।
दरअसल इस तरह की सख्ती से किसानों का सरकारी सिस्टम पर भरोसा बहाल हुआ है। राज्य सरकार खरीद की व्यवस्था को और चुस्त करने के उपाय कर रही है। बचेखुचे बिचौलियों और भ्रष्ट कर्मचारियों के हस्तक्षेप को समाप्त करने की ओर कदम भी बढ़ा रही है। इसके लिए फसलवार किसानों का पंजीकरण और उसे आधारकार्ड से जोडऩे की तैयारी है। अभी तक किसान पंजीकरण में इस बात व्यवस्था नही थी कि वह वास्तव में गेंहू किसान है या नही। दूसरी फसल बोने वाले किसानों के दस्तावेजों का उनके नाम पर दुरूपयोग किया जाता है। इससे किसान पंजीयन योजना वास्तविक लाभ नही दे सकी थी। गेंहू खरीद के अनुभव के आधार पर सरकार आगामी धान खरीद में किसान पंजीयन में आधार कार्ड अनिवार्य करने जा रही है। साथ ही किसान के फसली रकबे की सत्यता के लिए राजस्व विभाग की भूलेख ‘वेबसाईट’ से मदद ली जाएगी। किसानों के पंजीकरण में फसल के साथ गाटा संख्या से लिंकेज स्थापित किया जा रहा है। जिससे किसान के पंजीकरण करते वक्त उसकी गाटा संख्या से उसके भूखंड का विवरण पंजीकरण प्रपत्र में स्वत: लिंक हो जाएगा। इससे बिचौलियों एवं नकली किसानों से मुक्ति मिलेगी। खेती को लाभदायक बनाना है तो सिर्फ योजनाएं बनने से नही हो सकता उसे जमीन पर उतारना होगा। तरीकों में अमूलचूल बदलाव भी करने होगें। लोकतंत्र में ऐसे बदलाव सरकारें ही कर सकती है। योगी आदित्यनाथ ने इसकी पहल कर उप्र की 22 करोड़ जनता को एक सुखद संकेत दिये है। हालांकि कृषि क्षेत्र में ऐसे ठोस फैसले वर्षो पहले हो जाने चाहिए थे। पंजाब-हरियाणा को छोड़ दे तो भी पड़ोसी राज्य मप्र ने पिछले सालों में ऐसा कर दिखाया है। उप्र में फसल वर्ष 2017-18 के रबी फसल में गेंहू का उत्पादन करीब 3.5 लाख मी.टन अनुमान* किया गया है। यह सर्वाधिक है। पिछले कुछ वर्षो में प्रदेश में गेंहूं का उत्पादन 200 लाख मिट्रिक टन से 316 लाख मिट्रिक टन के बीच झूलता रहा है। उप्र की अर्थव्यवस्था का मूल आधार कृषि है, राज्य की लगभग 65 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। इसीलिए राज्य के आर्थिक विकास में कृषि क्षेत्र का योगदान महत्वपूर्ण है। वर्ष 2014-15 के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में लगभग 165.98 लाख हैक्टेयर (68.7 प्रतिशत) क्षेत्र में खेती की जाती है। कृषि गणना वर्ष 2010-11 के अनुसार राज्य में 233.25 लाख किसान हैं। उप्र सरकार ने 2018-19 में खाद्यान्न उत्पादन का 5 प्रतिशत से अधिक वृद्धि के लक्ष्य के साथ 581 लाख 60 हजार मी.टन तथा तिलहन उत्पादन का लक्ष्य 11 लाख 28 हजार मी.टन रखा है।
उप्र की भूमि उर्वर है, गंगा, यमुना, सरयू, गोमती सहित दर्जनों नदियों के कारण इसके बड़े खेतिहर इलाके की गिनती दुनिया के सबसे उपजाऊ क्षेत्र में होती है, फिर भी हमारा किसान आत्म निर्भर नही हैै। आत्म निर्भरता के लिए कृषि की आधुनिक तकनीक का उपयोग जरूरी है। उपज का वाजिब मूल्य किसान को हौसला देता है। खेती को आत्मनिर्भर बनाने के लिए लाभदायक मूल्य उसकी बुनियादी जरूरत और सबसे बड़ा सहारा है। यह किसानों को उसके कर्जो से भी मुक्त रखने में मददगार होगा। योगी सरकार ने लगातार दो साल गेंहू किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य दिला कर खेती को मजबूती दी है। खरीफ सीजन 2017-18 के दौरान योगी सरकार ने 42 लाख मी.टन धान की खरीद भी है, जो एक रिकार्ड है। इसके साथ ही पिछले साल 85 लाख किसानों की कर्ज माफी ने ग्रामीण उप्र की अर्थव्यवस्था में 22 हजार करोड़ से अधिक रकम पहुंचा दी है। पूंजी का प्रवाह ग्रामीण उप्र में होने से उपभोक्ता वस्तुओं की मांग पर उसका असर होगा, जो प्रदेश के विकास में मदद और गति देगा। योगी सरकार ने इस ओर सधे कदम बढ़ा दिये है। किसानों की स्थिति सुधरेगी तो उप्र के निवासियों को इस बात से दोहरी खुशी होगी कि देश की राजनति के साथ खुशहाली का रास्ता भी उप्र से होकर जाता है।