गोत्र में शादी, हो सकता है, डायबीटीज, हाइपरटेंशन और कैंसर,

उप्र के तिवारी, सैयद और दक्षिण भारत से कोंडवा, वैश्य, रेड्डी और नायडू जाति के 40 हजार नमूनों के डीएनए की होगी जांच
लखनऊ नवम्बर। सगोत्री व सजातीय शादियों का समर्थन और इसका विरोध करने वाली खापों की आलोचना करने वालों का तर्क विज्ञान की कसौटी पर खरा नही है। एक ही जातियों के बीच विवाह के कारण डायबीटीज, हाइपरटेंशन और कैंसर जैसी बीमारियां हो रही है। ऐसी बीमारियों के अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों की एक टीम देशभर से अलग-अलग जातियों के डीएनए सैम्पल जुटाकर इनकी जांच में जुटी है। जिसमें उत्तर प्रदेश से ब्राह्मणों से तिवारी, मुस्लिम से सैयद और दक्षिण भारत से कोंडवा, वैश्य, रेड्डी और नायडू जाति के करीब दो हजार डीएनए सैम्पल इकट्ठा किये जा चुके हैं। सैम्पल इकट्ठा करने के लिए गांव के प्रधान या जाति के समूह के माध्यम से लोगों के लार या खून का सैम्पल लिया जाता हैं। संस्थान के डीएनए लैब के इंचार्ज डॉ. नीरज राय ने बताया है कि प्रॉजेक्ट के तहत 40 हजार डीएनए के सैम्पल की जांच करने का लक्ष्य है। इस पर तीन संस्थानों के एक साथ काम करने से महीने भर में रिजल्ट आने के आसार हैं। बाकी दो संस्थान हैदराबाद का सीसीएमबी और यूएसए का हॉर्वर्ड मेडिकल स्कूल शामिल है। तीनों संस्थान मिलकर जातियों के डीएनए की जांच करेंगे।
डॉ. राय का कहना है कि देश के कई इलाकों में तीन हजार साल से अंतःजातीय विवाह हो रहे हैं। ऐसे विवाह के कारण आनुवांशिक दोष बढ़ रहे हैं और इसी कारण नई पीढ़ियां डायबीटीज, हाइपरटेंशन और कैंसर जैसी बीमारियों की चपेट में आ रही हैं।
डीएनए प्रोफाइलिंग से लैब में एक ही जाति के डीएनए नमूनों की जांच कर अंतःजातीय विवाह के कारण डीएनए के किस हिस्से में बदलाव या गड़बड़ी आई है, इसका पता लगाने के बाद यह गड़बड़ी दूर करने के लिए डीएनए आधारित दवा तैयार करने में मदद मिलेगी। उन्होने बताया कि अंतःजातीय विवाह के कारण एक ही समुदाय में शादी के कारण दक्षिण भारत की वैश्य जाति स्यूडोकॉलिनेस्ट्रेस की कमी से पीड़ित है। यहूदी महिलाओं में स्तन कैंसर के मामले बढ़ें हैं। अंडमान की ओंगो जनजाति के पुरुषों में वाई क्रोमोसोम का हिस्सा खत्म हो गया है। इससे उनके शरीर में स्पर्म बनने की प्रक्रिया आम लोगों के मुकाबले कम हो गई है।
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