श्रीरामलला मंदिर: पौराणिक काल के भी होंगे दर्शन

अमृतांशु मिश्र ,
अयोध्या। 2020 में पूरे साल श्रीरामलला जन्मस्थान मंदिर निर्माण की गतिविधियों से भरपूर रहने वाला है। 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के आदेश से अयोध्या में बनने वाले श्रीराम जन्मभूमि मंदिर न सिर्फ नये जमाने का होगा बल्कि भूमि के नीचे मौजूद पौराणिक अवशेषों को भी इस मंदिर का हिस्सा बनाया जाएगा। श्रद्धालुओं को आधुनिक मंदिर के साथ विक्रमादित्य काल तक के मंदिर के अवशेषों के दर्शन होगें। यह हिस्सा मंदिर से जुड़ी ‘हेरिटेज प्रापर्टी’ होगा। मूल मंदिर का ‘फ्लोर’ नये मंदिर का धरोहर होगा। मंदिर निर्माण के पहले 2.77 एकड़ जमीन के भीतर मौजूद पौराणिक मंदिर की फर्श, दिवारों से भी मिट्टी हटा कर सामने लाने की योजना है। ताकि आने वाले श्रद्धालु नये मंदिर में श्रीरामलला के नये मंदिर के साथ उनके उस प्राचीन मंदिर के अवशेषों का भी दर्शन कर सकेगें, जिसका जिक्र स्थल की खुदायी के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षेण ने अपनी रिपोर्ट में की थी। यह रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के फैसले का महत्वूपर्ण आधार है। जिसके बारे में माना जाता है कि विक्रमादित्य काल में मंदिर को विशाल रूप दिया गया था। स्थल के ऊपरी सतह पर 12वीं सदी तक के मंदिर अवशेष की मौजूदगी भी बतायी गई है। विहिप सूत्रों का कहना है कि मंदिर के प्राचीन अवशेषों को किस तरह उभारना है यह काम विशेषज्ञ करेगें। आर्किकेक्ट नयी तकनीकों से उसे नये मंदिर का आधार बनाएगें। मंदिर के पौराणिक अवशेषों का कितना हिस्सा श्रद्धालुओं के लिए खोला जा सकता है, यह भूमि की खोदायी से साफ होगा। प्राचीन मंदिर के अवशेष हमारी संस्कृति का धरोहर है।

विहिप उपाध्यक्ष चंपतराय का कहना है कि ‘हमनें जिस मॉडल को 30 साल तक ‘सिद्ध’ किया है, उसमें कोई बदलाव नही होगा। मंदिर विहिप के मॉडल के अनुसार ही बनेगा, हमने 60 प्रतिशत पत्थरों की तराशी का काम पूरा कर लिया है। लोग अब नये नये सुझाव दे रहें है, लेकिन ये लोग पहले कहां थे।’
श्रीरामलला का मंदिर नये मॉडल से बनाने की तैयारी है, सूत्रों का कहना है कि जब विहिप के मंदिर का मॉडल बना, तब हमें यह पता नही था कि जमीन के नीचे रामलला का पौराणिक मंदिर किस रूप में है। हाईकोर्ट के आदेश पर कनाडा की कंपनी ने तरंगों से मंदिर की नींव को तलाशा और एएसआई की खोदाई में उसका आधा अधूरा स्वरूप हमारे सामने आया। अब हम पौराणिक ढांचे को सामने लाएंगें। इसके अलावा पुराने मॉडल के पत्थरों के कॅलर में समानता नही है।
यह बहुत रोचक है कि अयोध्या के श्रीरामजन्म भूमि के नजदीक जिसे कुबेर टीला बताते हुए एएसआई ने संरक्षित रखा था, असल में वह वो जगह नही थी। एएसआई ने 1920 में कुबेर पर्वत को संरक्षित करने का नोटिफिकेशन जारी किया था। कुबेर पर्वत नामक जगह श्रीरामलला जन्मभूमि से दूर है। राजस्व विभाग ने नोटिफिकेशन के दस्तावेजों से उसकी प्रमाणिकता से पहचान कर ली है। एएसआई ने गलती से संरक्षित स्थान का बोर्ड कुबेर टीले पर लगा दिया। इसके बाद वर्षो तक किसी ने ध्यान नही दिया। श्रीरामजन्म भूमि के 67 एकड़ का दायरा तीन राजस्व ग्रामों में फैला है। यह गांव है, ज्वालापुर, और अवधखास। उप्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश से श्रीरामलला विराजमान को दी गई 67 एकड़ भूमि व उससे जुड़ी भूमि को मिला कर नया राजस्व ग्राम ‘श्रीरामलला विराजमान’ बनाने की तैयारी कर रही है। इसका पूरा क्षेत्र करीब 100 एकड़ तक हो सकता है। विहिप के सूत्रों का दावा है कि श्रीरामलला राजस्व ग्राम अयोध्या नगर निगम में दर्ज होकर ‘श्रीरामलला शहर’ हो जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश से तीन में श्रीरामलला विराजमान ट्रस्ट केन्द्र सरकार को बनाना है। केन्द्र सरकार में ट्रस्ट बनाने की प्रक्रिया चल रही है। विहिप सूत्रों का कहना है कि केन्द्र सरकार के ट्रस्ट में संरक्षक मंडल, जिसमें प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, उप्र के राज्यपाल व मुख्यमंत्री के रहने की संभावना है। कार्यकारणी में 12 से 15 सदस्य होगें, जो अध्यक्ष का चुनाव करेंगें। ट्रस्ट में निर्माण समिति होगी, जो मंदिर निर्माण का पूरा दायित्व निभाएगी। जिसमें 7 सदस्य होने की संभावना है। ट्रस्ट में एक सीईओ व दो कार्यकारी अधिकारी हो सकते है। ट्रस्ट मंदिर के प्रशासन और संपूर्ण व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालेगा। श्रीरामलला विराजमान फिलहाल टेंट में है। जिसे 1992 में बनाया गया था। श्रीरामलला विराजमान के पुजारी सत्येंद्र दास के अनुसार ‘दर्शन करने वालों की संख्या 8 हजार से 13 हजार प्रतिदिन है। पर्व विशेष अवसरों पर यह संख्या बढ़ जाती है। औसतन 10 हजार श्रद्धालु प्रतिदिन दर्शन करते है।’ मंदिर के बनने के बाद श्रद्धालुओं की यह संख्या 1 लाख प्रतिदिन पहुंच सकती है। मंदिर निर्माण और उससे जुड़ी सुविधाओं को विकसित करने के वास्तुविद् सुविधाओं को इस तरह विकसित करने की योजना पर काम कर रहें है, जिससे एक लाख प्रतिदिन आने वाले श्रद्धालुओं को किसी असुविधा का सामना न करना पड़े। इसके लिए श्रद्धालुओं के पूजन प्रसाद, जूते चप्पल आदि रखने के लिए इसी अनुपात में योजनाएं बनायी जा रहीं है।
आमतौर पर किसी भी क्षेत्र का प्रशासनिक और नागरिक सुविधाओं के लिए सरकार के अलग-अलग विभाग काम करते है। सूत्रों का कहना है कि मंदिर निर्माण की योजना को मूर्तरूप देने के लिए भारत सरकार का गृह विभाग नोडल एजेंसी होगा। जिसकी देखरेख में मंदिर निर्माण और उसके आसपास अयोध्या के क्षेत्र को विकसित किया जाएगा। योजनाकारों ने मंदिर फोरलेन सडक़ से जोडऩे का प्लान तैयार किया है। इस फोरलेन को मुख्य हाईवे से जोड़ा जाएगा। इसमें पैदल मार्ग अलग से होगा। जल्दी ही अयोध्या रेल, सडक़ तथा वायु मार्ग के नक्शे पर महत्वपूर्ण स्थल के रूप में उभर कर सामने आयेगा। रेल महकमा अयोध्या में नये प्लेटफॉर्म की रूपरेखा तैयार कर चुका है। जिसमें 9 प्लेटफार्म होगें। उप्र में बहुत कम बड़े शहरों के रेलवे स्टेशन पर 9 प्लेटफॉर्म है। अयोध्या को देश भर से आने वाली ट्रेन से जोड़े जाने की तैयारी भी है। अयोध्या में नये हवाई अड्डे के निर्माण का काम चल रहा है। इसके साथ ही अयोध्या को जोडऩे वाले हाईवे को 2 से 4 लेन और 4 लेन के हाईवे को 6 लेन करने की योजना तैयार की जा रही है।