नगालैंड: समझौता और संभावनाएं

nagaland_map_s
विचार डेस्क। केंद्र सरकार ने नगालैंड के उग्रवादी संगठन नैशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (इसाक-मुइवा) के साथ समझौता कर संकेत दिया है कि वह नगालैंड सहित पूरे पूर्वोत्तर में शांति कायम करने को लेकर गंभीर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नजर में यह एक ऐतिहासिक करार है। उनका उत्साह अपनी जगह सही है, पर अभी इस समझौते से बहुत उम्मीद नहीं बंधती। पहले भी नॉर्थ-ईस्ट के कई संगठनों से सरकार के समझौते हुए हैं, लेकिन ये कभी भी ज्यादा दिनों तक नहीं चले।
जहां तक एनएससीएन (आइएम) का प्रश्न है, तो इस संगठन ने काफी पहले ही हिंसा छोड़कर नरम रुख अपना लिया था और इससे केंद्र की बातचीत होती रही है। इसे नॉर्थ-ईस्ट तो क्या, नगा उग्रवादियों का भी प्रतिनिधि नहीं माना जा सकता। फिर भी एक संगठन के खुलकर भारत सरकार के पक्ष में आने से अमन की आशा में कुछ बढ़त जरूर दर्ज की जा सकती है। संसद का सत्र चलने के कारण समझौते की शर्तों का खुलासा नहीं किया गया है। यानी अभी यह स्पष्ट नहीं है कि एनएससीएन (आइएम) की कौन सी मांगें मानी गईं हैं, कौन सी नहीं। यह संगठन वृहत्तर नगालैंड (नगालिम) की मांग करता रहा है- यानी नगालैंड के अलावा मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और असम यहां तक कि म्यांमार (बर्मा) के भी नगा आबादी वाले सारे इलाकों को मिलाकर नगाओं का एक अलग देश।
इस मांग के पक्ष में जरा सी भी नरमी नॉर्थ-ईस्ट में भयंकर उथल-पुथल की वजह बन सकती है। और अगर समझौते में यह बात नहीं है, तो क्या हम यह मान कर चलें कि एनएससीएन (आइएम) ने अपनी मुख्य मांग ही छोड़ दी है? मान लीजिए, ऐसा हो गया तो क्या एसएस खापलांग की अगुआई वाला एनएससीएन का दूसरा धड़ा इससे सहमत होगा? माना जाता है कि जून महीने में मणिपुर में सेना पर हुए हमले के पीछे खापलांग गुट का ही हाथ था, जिसमें 18 जवान मारे गए और 18 घायल हो गए थे। इस घटना के बाद भारतीय सेना ने म्यांमार के इलाके में घुसकर उसके खिलाफ कार्रवाई की थी।
आज की तारीख में दिल्ली के सामने सबसे बड़ी परेशानी पूर्वोत्तर के कई आतंकी गुटों को मिलाकर बना यूनाइटेड नैशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ वेस्टर्न साउथ ईस्ट एशिया है, जिसमें एनएससीएन (खापलांग गुट) के अलावा कुछ मणिपुरी उग्रवादी संगठन, कामतापुर लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन, एनडीएफबी का सोनबिजित गुट और उल्फा का परेश बरुआ गुट शामिल हैं।
पूर्वोत्तर की उलझन को सुलझाने के क्रम में सरकार ने नगालैंड के एक गुट को ही महत्व दिया, दूसरे यानी खापलांग गुट से संवाद तक की गुंजाइश नहीं रखी। इस समझौते का मकसद खापलांग गुट को अलग-थलग करना हो सकता है। संभव है, इससे उसके ऊपर हिंसा छोड़कर बातचीत करने का दबाव बने। लेकिन यह समझना होगा कि कोई भी समझौता तभी कारगर होगा जब पूर्वोत्तर में इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास हो और लोगों को रोजी-रोजगार मिले। लोग अगर खुद को देश की विकास प्रक्रिया का हिस्सा समझेंगे तो उग्रवादी संगठनों पर समझौते का रास्ता अपनाने का दबाव अपने आप बनेगा।