जानिए परशुराम ने कहां थी शिवलिंग की स्थापना

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फीचर डेस्क। भगवान शंकर को सावन में कावड़ से जल चढ़ाने की परम्परा कब शुरू हुई यह विषय काफी प्राचीन है। इसके अलग-अलग प्रसंग मिलते हैं। लेकिन माना जाता है कि शिव के परम भक्त भगवान परशुराम पहले कांवडिय़े थे जिन्होंने इसकी शुरूआत की। कावड़ लाकर भोले नाथ का जलाभिषेक करने की शुरुआत कब और कहां से हुई कुछ ठीक तरह से कहना मुश्किल है। पर यह जरूर कहा जा सकता है कि भगवान परशुराम पहले कावडिय़े थे जिन्होंने गंगा जल से भगवान शिव का जलाभिषेक किया।
पंडित संजय पांडे बताते हैं कि शास्त्रों में इसका उल्लेख मिलता है। परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि कजरी वन में अपनी पत्नी रेणुका के साथ रहते थे। वह बड़े शांत स्वभाव और अतिथि सत्कार वाले महात्मा थे। एक बार प्रतापी और बलशाली राजा सहस्त्रबाहु का कजरी वन में आना हुआ। तो ऋषि ने सहस्त्रबाहु और उनके साथ आए सैनिकों की सभी तरह से सेवा की। सहस्त्रबाहु को पता चला कि ऋषि के पास कामधेनु नाम की गाय है। इस गाय से जो भी मांगा जाए, मिल जाता है। इसी के चलते ऋषि ने तमाम संसाधन जुटाकर राजा की सेवा की है। इस पर सहस्त्रबाहु ने ऋषि जमदग्नि से कामधेनु गाय की मांग की। जब ऋषि ने देने से मना कर दिया तो राजा ने उनकी हत्या कर दी और गाय को अपने साथ लेकर चला गया।इसकी जानकारी जब परशुराम को मिली तो उन्होंने सहस्त्रबाहु की हत्या कर दी और अपने पिता ऋषि जमदग्नि को पुनर्जीवित कर लिया। ऋषि को जब परशुराम द्वारा सहस्त्रबाहु की हत्या की बात पता चली तो उन्होंने परशुराम को गंगा जल लाकर शिवलिंग का जलाभिषेक कर प्रायश्चित करने की सलाह दी। परशुराम ने अपने पिता की आज्ञा मानते हुए कजरी वन में शिवलिंग की स्थापना की। वहीं उन्होंने गंगा जल लाकर इसका महाभिषेक किया। इस स्थान पर आज भी प्राचीन मंदिर मौजूद है।
मेरठ के पास, बालौनी कस्बे के एक छोटे से गांव पुरा में शिव का एक प्राचीन मंदिर है, जो कजरी वन क्षेत्र मेरठ के आस पास ही स्थित है तथा शिवभक्तों का श्रद्धा का केंद्र है। जिस स्थान पर परशुराम ने शिवलिंग स्थापित कर जलाभिषेक किया था। उस स्थान को पुरा महादेव कहते हैं। इसे अन्य नाम परशुरामेश्वर कहकर भी पुकारा जाता है। इसके बाद से यहां दूर-दूर से लोग आते हैं और हरिद्वार, गोमुख और गंगोत्री से कावड़ में गंगा जल लाकर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं।