यूपी में गुमनामी बाबा के लिए बनेगा म्यूजियम

gumnami baba
लखनऊ। नेताजी सुभाषचंद्र बोस यानी फैजाबाद के गुमनामी बाबा के लिए उप्र सरकार म्यूजियम बनाएगी। सरकार ने सोमवार को पेश किये अपने अनुपूरक बजट में फैजाबाद अयोध्या में रहे गुमनामी बाबा की सामग्रियों को अंतर्राष्ट्रीय रामकथा संग्राहलय एवं आर्ट गैलरी भवन में प्रदर्शित करने के लिए डेढ़ करोड़ रूपये के बजट की व्यवस्था की है। यह काम उप्र का संस्कृति विभाग करेगा। नेताजी की मौत की जांच के लिए गठित मुखर्जी आयोग ने भी गुमनामी बाबा के सुभाष चंद्र बोस होने का संकेत दिया था।
16 सितंबर, 1985 को फैजाबाद शहर के सिविल लाईन्स में स्थित राम भवन में गुमनामी बाबा की मृत्यु हुई थी। मृत्यु के दो दिन बाद बड़ी गोपनीयता से इनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। लेकिन लोग उस समय चौंक उठे जब गुमनामी बाबा के कमरे में मिले सामान को देखा गया। जबकि भारतीय सरकार और इतिहास के अनुसार सुभाष चंद्र बोस की 1945 में एक विमान दुर्घटना में मौत हो गई थी। बाबा के संपर्क में रहने वाले तमाम लोग दावा करते हैं कि वे सुभाष चंद्र बोस थे। वे अपने छिपने के लिए परिस्थतियों को जि मेदार ठहराते थे। उन्होंने कहा था कि उनके सामने आने से भारत को विश्व शक्तियों से प्रतिबंध का सामना करना पड़ सकता है।
याद रहे सुभाष चंद्र बोस की मौत की जांच के लिए कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश पर गठित मुखर्जी आयोग ने विमान हादसे में नेताजी के मौत को खारिज कर दिया था। आयोग ने उनकी गुमशुदगी से जुड़े पांच सिद्धांत सामने रखे थे। आयोग का पहला सिद्घांत था कि अगस्त 1945 में जापान के तायहीको फारमोसा में दुर्घटना में नेताजी की मौत हुई। दूसरा यह कि अगस्त, 1945 में रेडफ्रोट में उनकी हत्या की गई। तीसरा यह कि साधु का जीवन जीते हुए 1977 में उनकी मृत्यु हुई। चौथा कि वह मध्य प्रदेश शिव पुकलम में मरे। पांचवां यह कि नेताजी की मौत गुमनामी बाबा के रूप में फैजाबाद में हुई। मुखर्जी आयोग ने जिस गुमनामी बाबा की ओर इशारा किया था वे फैजाबाद के राम भवन में रहते थे। सितंबर, 1985 को उनकी मौत हुई। बताया जाता है कि नेताजी के रिश्तेदार अक्सर उनसे मिलने आते थे। मुखर्जी आयोग ने गुमनामी बाबा से जुड़े सामानों की भी जांच की थी।
फैजाबाद के लोगों के अनुसार गुमनामी बाबा या भगवनजी 1970 के दशक में अयोध्या की लालकोठी में बतौर किराएदार रहा करते थे और कुछ ही दिन बाद बस्ती में जाकर रहने लगे थे। लेकिन बस्ती उन्हें बहुत रास नहीं आया और भगवनजी वापस अयोध्या लौटकर पंडित रामकिशोर पंडा के घर रहने लगे। कुछ वर्ष बाद अयोध्या सब्जी मंडी के बीचोबीच स्थित लखनऊवा हाता में रहे। इनके साथ इनकी एक सेविका सरस्वती देवी रहीं जिन्हें यह जगद बे के नाम से बुलाया करते थे। अपने अंतिम समय में, गुमनामी बाबा के नाम से थोड़े मशहूर हो चुके थे और फैजाबाद के राम भवन में पिछवाड़े में बने दो कमरे के मकान में रहे। सुभाष चंद्र बोस के माता-पिता,परिवार की निजी तस्वीरें, कलकत्ता में हर वर्ष 23 जनवरी को मनाए जाने वाले नेताजी जन्मोत्सव की तस्वीरें। लीला रॉय की मृत्यु पर हुई शोक सभाओं की तस्वीरें। नेताजी की तरह के दर्जनों गोल चश्मे। 555 सिगरेट और विदेशी शराब का बड़ा जखीरा। रोलेक्स की जेब घड़ी। आजाद हिन्द फौज की एक यूनिफॉर्म। 1974 में कलकत्ता के दैनिक आनंद बाजार पत्रिका में 24 किस्तों में छपी खबर ताइहोकू विमान दुर्घटना एक कहानी की पन्ने। जर्मन, जापानी और अंग्रेजी साहित्य की ढेरों किताबें। भारत-चीन युद्ध स बन्धी किताबें जिनके पन्नों पर टिप्पणियां लिखी गईं थीं। सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु की जांच पर बने शाहनवाज और खोसला आयोग की रिपोर्टें। सैंकड़ों टेलीग्राम, पत्र आदि जिन्हें भगवनजी के नाम पर संबोधित किया गया था। हाथ से बने हुए नक्शे जिनमे उस जगह को इंकित किया गया था जहाँ कहा जाता है नेताजी का विमान गिरा था। आजाद हिन्द फौज की गुप्तचर शाखा के प्रमुख पवित्र मोहन रॉय के लिखे गए बधाई सन्देश।