बिहार में एमवाई समीकरण और ओवैसी की धमक

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दीपेन्द्र सिन्हा
पटना। बिहार में जदयू, राजद और कांग्रेस के महागठबंधन के साथ विधानसभा चुनाव में कांटे के मुकाबले का सामना कर रही भाजपा नीत राजग मुस्लिम यादव मतों के विभाजन पर नजरें लगाये हुए है, साथ ही वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकास के एजेंडे और युवाओं में उनकी लोकप्रियता को भी तवज्जो दे रही है। राजग के घटक लोजपा के प्रमुख एवं केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान को विश्वास है कि बिहार की राजनीति में बदलाव का समय आ गया है और बिहार में आगामी चुनाव में नीतीश और अरविंद केजरीवाल के प्रभाव को नकार दिया जाएगा। पासवान ने कहा, बिहार के मुख्यमंत्री राज्य में राजद प्रमुख लालू प्रसाद के साथ गठजोड़ करने के दाग को धोने का प्रयास कर रहे हैं जबकि आप के नेता की युवा अपील दिल्ली से आगे नहीं है। पासवान ने इस बात को खारिज कर दिया कि भाजपा नीत राजग का मुस्लिम-यादव वोट बैंक में कम आधार है। केंद्रीय मंत्री ने विपक्ष के उन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया कि एमआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी राजग की शह पर बिहार चुनाव में उतर रहे हैं, साथ ही कहा कि हैदराबाद के सांसद निश्चित रूप से मुस्लिम वोटों को प्रभावित करेंगे और प्रतिद्वन्द्वी महागठबंधन के घटकों के लिए मुस्लिम यादव वोट को बनाये रखना कठिन होगा। उन्होंने कहा, लालू और नीतीश ने अब तक बिहार में मुसलमानों का इस्तेमाल केवल वोट बैंक के तौर पर किया है। ओवैसी अगर मुस्लिम बहुल सीटों पर उम्मीदवार उतारते हैं तो क्या होगा। एक बात जो अभी तक तय है वो ये कि मुस्लिमों का वोट एक तरफा लालू-नीतीश गठबंधन को मिलने जा रहा है। इक्के दुक्के सीटों पर जहां मुस्लिम उम्मीदवार होंगे एनडीए के वहीं वोट इधर उधर होने की संभावना है। बाकी ठोस वोट लालू और नीतीश के साथ है। रही बात सीमांचल की तो कोसी और पूर्णिया को मिलाकर सीमांचल के इलाके में विधानसभा की 37 सीटें हैं। 2010 में जेडीयू और बीजेपी को 14-14 सीटों पर जीत मिली थी। लालू गठबंधन में तब आरजेडी को 3, एलजेपी को 2 पर जीत मिली थी। कांग्रेस को 3 और अन्य को एक सीट पर जीत मिली। पूर्णिया प्रमंडल की 24 में से 8 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार जीते थे। कोसी प्रमंडल के तीनों जिलों में एक भी सीट मुस्लिम उम्मीदवार के खाते में नहीं गई थी। किशनगंज की सभी 4 सीटें, अररिया की 2 और पूर्णिया जिले की 2 सीटें मुस्लिम उम्मीदवारों ने जीती थी। कटिहार में तब एक भी मुस्लिम उम्मीदवार की जीत नहीं हुई थी। ओवैसी की नजर इसी इलाके की 25 विधानसभा सीटों पर है। इस इलाके में ओवैसी अपने उम्मीदवार उतार देते हैं तो फिर लालू-नीतीश गठबंधन के वोट में सेंध तय है। ऐसा नहीं कि मुस्लिमों का पूरा का पूरा वोट ओवैसी को ही मिलेगा लेकिन युवा वोटरों में जिस तरह का झुकाव दिख रहा है उससे ये कहना गलत नहीं होगा कि ओवैसी के उम्मीदवार जीत हार के समीकरण को उलट सकते हैं। ओवैसी को बिहार लेकर आने वाले पूर्व विधायक अख्तरुल इमान 2010 में आरजेडी के टिकट पर किशनगंज की कोचाधामन सीट से जीते थे। लालू के जमाने में किशनगंज में कभी तस्लीमुद्दीन का एकछात्र राज चलता था। लेकिन अब इसी किशनगंज में तस्लीमुद्दीन को बूढ़ा शेर कहा जाने लगा है। स्थानीय सांसद असरारुल हक वोटों के ध्रुवीकरण की लड़ाई में जीत गए।
जानकार भी कहते हैं कि असरारुल का दो बार जीतना किसी भी पॉलिटिकल पंडित की समझ से परे रहा है. कहा जा रहा है कि ओवैसी चुनावी लड़ाई में उतरने के बाद सिर्फ किशनगंज तक ही सीमित होकर नहीं रहना चाहेंगे। सीतामढ़ी और सीवान में उनकी सभाएं प्रस्तावित हैं। इन इलाकों में ओवैसी की चुनावी एंट्री का मतलब है ध्रवीकरण होना या फिर मुस्लिमों में सेंध लगना। ऐसी चर्चा भी है कि लालू और नीतीश की पार्टी से निराश होने पर कई मुस्लिम नेता, विधायक, पूर्व विधायक और पूर्व सांसद ओवैसी का झंडा थाम सकते हैं। ऐसा होता है तो सीधा फायदा बीजेपी को होगा। बिहार में करीब 16-17 फीसदी मुस्लिम आबादी है। सीमांचल में सबसे ज्यादा मुसलिम हैं। किशनगंज में करीब 70 फीसदी। 2010 के विधानसभा चुनाव में 19 मुस्लिम विधायक बने थे। एनडीए ने तब 15 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे। 14 जेडीयू और 1 बीजेपी से। सबसे ज्यादा इनमें से जेडीयू के 7 मुस्लिम जीते। बीजेपी से 1 विधायक। लालू का पार्टी से 6, कांग्रेस से 3 और एलजेपी से 2 मुस्लिम विधायक बने। 35 मुस्लिम उम्मीदवार ऐसे थे जो महज 1000 से कम वोटों से हार गए। राज्य में करीब 40 से 45 ऐसी सीटें हैं जहां मुस्लिम वोट परिणाम को प्रभावित करते हैं। ओवैसी की राजनीतिक ताकत भले ही बिहार में जीरो हो लेकिन शुरुआत होती है तो लालू-नीतीश का खजाना ही खाली होगा।