बात टीम इंडिया की, नजर बिहार चुनाव पर

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इस बार जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देश को संबोधित करने आए तो बीते साल की स्मृतियां बाकी थीं। पहले संबोधन में उन्होंने लीक तोड़ते हुए कई ऐसी घोषणाएं की थी जो जनता के दिल को छू गई थीं। इस बार वे लाल किले की प्राचीर से बोले तो देश जानने-सुनने को उत्सुक था कि क्या नया कहेंगे। इस बार वे ज्यादा समय सरकार की उपलब्धियों का जिक्र करते रहे। पिछले साल घोषित योजनाओं का रिपोर्ट-कार्ड उन्होंने पढ़ा। हालांकि, उन्होंने इस मौके पर विपक्ष से कटुता का जिक्र नहीं किया लेकिन कहीं न कहीं उसकी प्रतिछाया का दबाव नजर आया। हालांकि, सीबीआई की अदालतों में भ्रष्टाचार के मामले बढ़े हैं मगर सरकार को उन्होंने भ्रष्टाचार मुक्त बताया। संबोधन की खास बात यह कि उन्होंने गरीब-किसान के मुद्दों को प्राथमिकता दी। अब तक सरकार को पूंजीपतियों का हितैषी बताया जाता रहा है। वे सरकार के महत्वाकांक्षी भूमि सुधार कानून पर मौन रहे। मोदी ने देश के सवा लाख सरकारी बैंकों का आह्वान किया कि वे एक दलित, आदिवासी या महिला को अपना उद्यम शुरू करने के लिए आर्थिक संसाधन उपलब्ध करायें। कयास लगाये गये कि उनकी रीति-नीतियां बिहार के चुनाव को केंद्र में रखकर सामने आई हैं। प्रधानमंत्री ने पिछले एक साल के कामकाज का लेखा-जोखा प्रस्तुत करने को इस मंच को चुना। उन्होंने स्वच्छता अभियान का जिक्र करते हुए दो लाख विद्यालयों में सवा चार लाख शौचालय बनाने का काम पूरा करने की बात कही। जनधन योजना में 17 करोड़ लोगों के खाते खुलवाने का जिक्र किया और बीमा योजना के लक्ष्यों का जिक्र किया। मगर उन खातों का जिक्र नहीं हुआ जिनमें कोई पैसा जमा नहीं हुआ। इसके अलावा मेक इन इंडिया और सांसद आदर्श ग्राम योजना के हासिल लक्ष्यों का खाका उन्होंने नहीं खींचा। मोदी ने गैस उपभोक्ताओं के बैंक खातों में सीधे सब्सिडी पंहुचाने से दलाली पर रोक लगाने और बीस लाख लोगों द्वारा स्वेच्छा से गैस सब्सिडी छोडऩे को सरकार की बड़ी उपलब्धि बताया। इसके अलावा कोयले की नीलामी में पारदर्शिता लाने और सरकार के कोष में तीन लाख करोड़ रुपये जुटाने को सफलता के तौर पर दर्शाया।
प्रधानमंत्री के संबोधन में समाज के कामगार तबके के काम को प्रतिष्ठा देने का आग्रह रहा। नये बदलाव के तौर पर इस बार देश की सवा सौ करोड़ जनता को बार-बार टीम इंडिया के रूप में संबोधित किया। उन्होंने गांव-गरीब और अदिवासियों- दलितों के उत्थान पर बल दिया। जातिवाद के जहर व सांप्रदायिकता के जुनून को न पनपने देने का आह्वान करते हुए इसे राष्ट्रीय एकता के लिए बड़ी चुनौती बताया। अपनी नीति को किसानों पर केंद्रित करते हुए घोषणा की कि अब कृषि मंत्रालय को कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय के रूप में जाना जाएगा। बिजली से वंचित साढ़े अ_ारह हजार गांवों में एक हजार दिनों में बिजली पंहुचाने का वादा भी किया। हालांकि, उन्होंने भूतपूर्व सैनिकों के योगदान को सराहा और स्वीकारा कि सिद्धांत रूप में सरकार वन रैंक-वन पेंशन योजना पर सहमत हैं, मगर इससे जुड़ी तकनीकी दिक्कतों के चलते विभिन्न संगठनों से बातचीत की बात की। जाहिरा तौर पर आंदोलनरत भूतपूर्व सैनिक इस मौके पर किसी बड़ी घोषणा की उम्मीद कर रहे थे। स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया उनका नया नारा रहा। स्टार्टअप योजना में नए उद्योग लगाने के लिए बेहतर वातावरण बनाने की जरूरत पर उन्होंने बल दिया। हालांकि, इस बार के सम्बोधन में पिछले साल जैसी लय व ओज नजर नहीं आया, मगर उनके उत्साह में कमी नहीं थीं। कहीं न कहीं उन्होंने देश के मूड को भांपा और राजनीतिक माहौल का जायजा भी लिया। यही वजह रही कि वे बड़ी-बड़ी घोषणाएं करने से बचे। उन्हें एहसास था कि जनता अब घोषणाओं को जल्द हकीकत में बदलना देखना चाहती है। उन्होंने यह दिखाने का यत्न किया कि सरकार काम करने में यकीन रखती है। भले ही पिछले दिनों आए राजनीतिक गतिरोध,व्यापम व ललित मोदी प्रकरण, आतंकवाद की हालिया घटनाओं और पाकिस्तान से संबंधों का जिक्र नहीं किया, मगर यह भी जता दिया कि उनकी रीति-नीतियों में निराशा के लिए कोई स्थान नहीं है। साथ ही उन्होंने सांप्रदायिकता, जातिवाद और भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का भी इजहार किया।