बीएसएनएल: सरकार के लिए घाटे का सौदा

bsnlनई दिल्ली। देश की सबसे बड़ी दूरसंचार की दिग्गज एवं सरकारी कंपनियों के बीच सबसे लाभदायक कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड को पांचवे वित्तीय वर्ष में भारी भरकम नुकसान हुआ है। सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2014-15 में बीएसएनएल को 3,785 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है। वर्ष 2009-10 से लगातार घाटे में जा रही कंपनी का समग्र नुकसान 36,000 करोड़ रुपए ( 6 बिलियन डॉलर ) तक पहुंच गया है। बीएसएनएल का लाभ/घाटा जैसा कि इस श्रृंखला के पहले भाग में बताया गया है कि वर्ष 2014-15 में 71 सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा दिखाए गए आंकड़ों के अनुसार 20,000 करोड़ रुपए के हुए नुकसान में बीएसएनएल की हिस्सेदारी 30 फीसदी है। यदि बीएसएनएल के घाटे पर काबू पाया गया तो सरकार के पास खर्च करने के लिए अधिक राशि होगी। बीएसएनएल को जबरदस्त रूप से झटका तब लगा जब ग्राहक लैंडलाइन फोन से मोबाईल फोन की ओर जाने लगे और ने वेतन के रुप में बड़ी राशि कंपनी के 2.38 लाख कर्मचारियों पर खर्च किए। संचार और सूचना प्रौद्योगिकी रविशंकर प्रसाद ने मंत्री दिसंबर 2014 में संसद को ये बताया है। हालांकि यदि पिछले एक दशक में दूरसंचार उद्योग के आंकड़ों और घटनाओं पर नजर डाली जाए तो स्पष्ट होता है कि किस प्रकार सरकारी नीतियों के कारण कंपनी डूब रही है। राजस्व में गिरावट पूर्व निश्चित नहीं थी बल्कि कंपनी के सामाजिक दायित्वों बरकरार रखते हुए सरकार द्वारा किए गए सब्सिडी के वादे में यथाक्रम कटौती का परिणाम था। उन दायित्वों में ग्रामीण लैंडलाइन नेटवर्क का विस्तार, जो लागत का मात्र एक दसवां भाग ही वसूल कर पाया, 3 जी स्पेक्ट्रम या दूरसंचार बैंडविड्थ की अनिवार्य खरीद एवं उपकरणों की खरीद में देरी होना शामिल है। इंडियास्पेंड ने बीएसएनएल के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक अनुपम श्रीवास्तव से कई बार बात करने की कोशिश की लेकिन निराशा ही हाथ लगी है।
ग्रामीण लैंडलाइन : नुकसान का मुख्य कारण संसद की वेबसाइट से संकलित दूरसंचार मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2002 के बाद मोबाइल फोन क्रांति का प्रसार होने से बीएसएनएल लैंडलाइन के ग्राहकों में भारी गिरावट दर्ज हुई। वर्ष 2006-07 में जहां ग्राहकों की संख्या 33.7 मिलियन थी वहीं 2014-15 में ग्राहकों की संख्या मात्र 16 मिलियन ही दर्ज की गई है। बीएसएनएल लैंडलाइन ग्राहक वर्ष 2013-14 में लैंडलाइन विभाग ने 14,979 करोड़ रुपए का नुकसान दिखाया है। सरकार कहती है कि लैंडलाइन ग्राहकों का पीछे हट जाना सबसे बड़ा झटका है, और यह है भी, लेकिन कंपनी के नुकसान के लिए ग्रामीण नेटवर्क का विस्तार होना भी उतना जिम्मेदार था। बीएसएनएल के वर्ष 2008-09 के अंकेक्षित खातों के अनुसार, हर महीने बीएसएनएल ग्रामीण लैंडलाइन सेवाओं पर औसतन 702 रुपए प्रति लाइन खर्च कर रही थी जबकि प्रति माह प्रति लाइन पर 78 रुपये का राजस्व प्राप्त कर रही थी। वर्ष 2003-04 में पीएसयू ने लैंडलाइन खंड में करीब 9,528 करोड़ रुपये का घाटा दिखाया है। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार, देश के 593,601 बसे हुए गांवों में दिसंबर 2014 तक बीएसएनएल ने 586,000 सार्वजनिक टेलीफोन स्थापित किया है। चूंकि इसमें फायदा कम है, निजी दूरसंचार ऑपरेटरों गांव लैंडलाइन नेटवर्क की अनदेखी करते हैं। परिणाम स्वरुप वर्ष 2010 तक केवल 2 फीसदी कनेक्शन ही रह गए। इकोनेमिक्स टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2010 में बीएसएनएल ने ब्रॉडबैंड वायरलेस एक्सेस और 3 जी स्पेक्ट्रम के लिए 18,000 करोड़ रुपये का भुगतान किया है जबकि भारती, वोडाफोन, एयरसेल और अन्य ऑपरेटरों 2,000 से 6,000 करोड़ रुपये के बीच भुगतान किया है। संसद में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार 18,000 करोड़ रुपए बीएसएनएल की नकदी भंडार से कम हो गया, 29,300 करोड़ रुपये से 1,700 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। कम नकदी भंडार और बढ़ते वित्तीय संकट के साथ बीएसएनएल के परिचालन कमजोर पड़ गया और लगभग 800,000 मोबाइल उपभोक्ताओं ने अन्य ऑपरेटरों को ओर रुख कर लिया। बाजार में बीएसएनएल की हिस्सेदारी में 16 फीसदी से 10 फीसदी तक की गिरावट आई है। बीएसएनएल की ओर एवं बीएसएनएल से परिवर्तित होने वाले सदस्य 4) किस प्रकार निविदाओं एवं आदेशों के साथ सरकार ने खेला वर्ष 2006 में जब बीएसएनएल सफलता के शिखर पर था तब संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के हस्तक्षेप से इसके विस्तार योजनाओं में विलंब की गई थी। इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2006 में 45.5 मिलियन मोबाइल लाइनों के लिए एक निविदा में छह महीने से अधिक की देरी की गई थी। अंत में , एक साल बाद , तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए राजा ( 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले के लिए फरवरी 2011 में गिरफ्तार कर लिया ) निविदा का आकार कम कर 14 मिलियन कर दिया था। दो वर्ष बाद, 2008 में, 93.3 मिलियन का मोबाईल लाइन टेंडर एक बाद फिर विवाद में आया जब प्रतिस्पर्धा में केवल एरिक्सन छोड़ कर नोकिया सीमेंस को तकनीकी आधार पर अयोग्य घोषित कर दिया गया एवं मार्च 2010 में जिसे रद्द कर दिया गया।